Thursday, April 14, 2011
खाद्यान्न की बर्बादी पर विस्तृत रिपोर्ट
अप्रैल के पहले सप्ताह से गेहूं की सरकारी खरीद चालू हो गई है। लेकिन गोदामों के अभाव के चलते भंडारण का संकट गहरा गया है। खुले में रखे अनाज सड़ने का मुद्दा पिछले सालों में गंभीर विवादों में रहा है। सरकार गंभीर फजीहत झेल चुकी है। सरकार की खाद्यान्न प्रबंधन नीति को खंगालती एक विस्तृत रिपोर्ट समाचार अभियान के रूप मे तीन किश्तों पेश है। (एसपी सिंह)
निजी व्यापारियों के पौ बारह
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एफसीआई उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड व मध्य प्रदेश में गेहूं खरीद से रहेगी दूर
बेबस किसानों का लाभ उठायेंगी निजी कंपनियां
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दिखाने के लिए भले ही सरकारी खरीद के लंबे चौड़े लक्ष्य तय किये गये हों, लेकिन सरकार इस दिशा में कुछ खास करने नहीं जा रही है। गेहूं की सरकारी खरीद में एफसीआई समेत अन्य सरकारी एजेंसियां ढीला रवैया अपनाएंगी। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड समेत लगभग एक दर्जन राज्यों में एफसीआई गेहूं खरीद से दूर ही रहने वाली है। ये राज्य केंद्रीय पूल वाली खरीद में नहीं आते हैं। गेहूं खरीद में इन राज्यों में निजी व्यापारियों का दबदबा होगा, जिसके आगे किसान बेबस नजर आएंगे।
गेहूं की सरकारी खरीद शुरु होने से पहले ही एफसीआई ने पंजाब और हरियाणा के गोदामों को खाली करने के लिहाज से दूसरे राज्यों में गेहूं व चावल का स्टॉक शिफ्ट करना शुरु कर दिया था। इसे लेकर उन राज्यों ने तीखा विरोध जताना शुरु कर दिया जहां बिना जरूरत के अनाज की आपूर्ति शुरु कर दी गई थी। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारों ने इस बारे में खाद्य मंत्रालय और एफसीआई को पत्र लिखकर ऐसा करने से मना किया है।
भंडारण की समस्या से जूझ रही एफसीआई ने कारण बताए बगैर डिसेंट्रलाइज प्रोक्योरमेंट (डीसीपी) वाले राज्यों में चावल की खरीफ पर रोक लगा दी है। यही वजह है कि चावल की खरीद का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया है। डीसीपी राज्यों में एफसीआई अनाज की सीधी खरीद नहीं करती है। राज्यों की खरीद एजेंसियां एफसीआई के लिए अनाज खरीदती हैं। इस अनाज का उपयोग वहां की सार्वजनिक राशन प्रणाली में किया जाता है, जिससे लागत कम हो जाती है।
निजी व्यापारी व कंपनियों ने इस अहम समस्या को भांप लिया है। इसीलिए उन्होंने खरीद शुरु होने के साथ ही इन 11 राज्यों में अपना तंत्र फैला लिया है। गेहूं का सर्वाधिक उत्पादन करने वाले राज्य उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में कारगिल और आईटीसी जैसी बड़ी कंपनियों ने अपना खरीद केंद्र खोलना शुरु कर दिया है। मंडियों के आढ़तियों को इन कंपनियों ने अपना खरीद एजेंट बना दिया है, जिसके मार्फत ये खरीद करेंगे।
पुराने अनाज के भारी स्टॉक की वजह से गोदामों की कमी है। इसके मद्देनजर खरीद एजेंसियां गेहूं खरीद की गति धीमी ही रखेंगी। ताकि किसानों की ओर से विरोध के स्वर न उठें। इस बार निजी कंपनियों पर गेहूं खरीद के लिए कोई रोक नहीं है।
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एफसीआई उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड व मध्य प्रदेश में गेहूं खरीद से रहेगी दूर
बेबस किसानों का लाभ उठायेंगी निजी कंपनियां
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दिखाने के लिए भले ही सरकारी खरीद के लंबे चौड़े लक्ष्य तय किये गये हों, लेकिन सरकार इस दिशा में कुछ खास करने नहीं जा रही है। गेहूं की सरकारी खरीद में एफसीआई समेत अन्य सरकारी एजेंसियां ढीला रवैया अपनाएंगी। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड समेत लगभग एक दर्जन राज्यों में एफसीआई गेहूं खरीद से दूर ही रहने वाली है। ये राज्य केंद्रीय पूल वाली खरीद में नहीं आते हैं। गेहूं खरीद में इन राज्यों में निजी व्यापारियों का दबदबा होगा, जिसके आगे किसान बेबस नजर आएंगे।
गेहूं की सरकारी खरीद शुरु होने से पहले ही एफसीआई ने पंजाब और हरियाणा के गोदामों को खाली करने के लिहाज से दूसरे राज्यों में गेहूं व चावल का स्टॉक शिफ्ट करना शुरु कर दिया था। इसे लेकर उन राज्यों ने तीखा विरोध जताना शुरु कर दिया जहां बिना जरूरत के अनाज की आपूर्ति शुरु कर दी गई थी। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारों ने इस बारे में खाद्य मंत्रालय और एफसीआई को पत्र लिखकर ऐसा करने से मना किया है।
भंडारण की समस्या से जूझ रही एफसीआई ने कारण बताए बगैर डिसेंट्रलाइज प्रोक्योरमेंट (डीसीपी) वाले राज्यों में चावल की खरीफ पर रोक लगा दी है। यही वजह है कि चावल की खरीद का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया है। डीसीपी राज्यों में एफसीआई अनाज की सीधी खरीद नहीं करती है। राज्यों की खरीद एजेंसियां एफसीआई के लिए अनाज खरीदती हैं। इस अनाज का उपयोग वहां की सार्वजनिक राशन प्रणाली में किया जाता है, जिससे लागत कम हो जाती है।
निजी व्यापारी व कंपनियों ने इस अहम समस्या को भांप लिया है। इसीलिए उन्होंने खरीद शुरु होने के साथ ही इन 11 राज्यों में अपना तंत्र फैला लिया है। गेहूं का सर्वाधिक उत्पादन करने वाले राज्य उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में कारगिल और आईटीसी जैसी बड़ी कंपनियों ने अपना खरीद केंद्र खोलना शुरु कर दिया है। मंडियों के आढ़तियों को इन कंपनियों ने अपना खरीद एजेंट बना दिया है, जिसके मार्फत ये खरीद करेंगे।
पुराने अनाज के भारी स्टॉक की वजह से गोदामों की कमी है। इसके मद्देनजर खरीद एजेंसियां गेहूं खरीद की गति धीमी ही रखेंगी। ताकि किसानों की ओर से विरोध के स्वर न उठें। इस बार निजी कंपनियों पर गेहूं खरीद के लिए कोई रोक नहीं है।
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गोदाम नहीं बनवा पाई सरकार
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गोदामों की भारी किल्लत से आखिर गेहूं का भंडारण होगा कहां?
केंद्र ने फिर अलापा 1.50 करोड़ टन अतिरिक्त क्षमता बढ़ाने का राग
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देश की खाद्यान्न सुरक्षा के लिए सरकार के पास न गोदाम हैं और न ही भंडारण क्षमता बढ़ाने की कोई पुख्ता योजना है। भंडारण की किल्लत से एफसीआई मुश्किलों का सामना कर रही है। हर साल खुले में रखा करोड़ों का अनाज सड़ रहा है। इसके लिए सरकार अदालत की फटकार से लेकर संसद में फजीहत झेल चुकी है। लेकिन पिछले दो सालों से सरकार भंडारण क्षमता में 1.50 करोड़ टन की वृद्धि का राग अलाप रही है। कई दौर के टेंडर के बावजूद अभी तक किसी प्रस्ताव को मंजूरी नहीं मिल पाई है।
प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक के अमल के साथ खाद्यान्न की जितनी जरूरत होगी, देश में उतना अनाज रखने का बंदोबस्त नहीं है। भंडारण क्षमता के इस अंतर को पाटने के लिए सरकार की ओर से कोशिशें जरूर हुईं, लेकिन आधे अधूरे मन से। निजी क्षेत्रों के प्रस्ताव नियम-कानून के मकडज़ाल के चलते सरकारी दफ्तरों में धूल फांक रहे हैं। खाद्य मंत्रालय की तरफ से दो चरणों में टेंडर मांगा गया, जिसमें एक सौ से अधिक निवेशकों ने हिस्सा लिया। लेकिन किसी परियोजना प्रस्ताव को हरी झंडी नहीं मिल पाई है।
एफसीआई पंजाब और हरियाणा में ही सबसे अधिक अनाज की खरीद करती है। उसके 80 फीसदी गोदाम भी इन्हीं राज्यों में हैं। यहीं से पूरे देश के लिए अनाज भेजा जाता है। लेकिन नई व्यवस्था में सरकार ने गोदाम बनाने के लिए उन राज्यों को भी प्राथमिकता दी है, जहां अनाज की ज्यादा जरुरत है। ग्र्रामीण गोदामों का विचार भी आया है। लेकिन इन्हें अमली जामा अभी तक नहीं पहनाया जा सका है। इन्हीं मुश्किलों से गुजर रही सरकार की चिंताएं कम होने का नाम नहीं ले रही है।
भंडारण क्षमता बढ़ाने की दिशा में आ रही मुश्किलों के समाधान के लिए अधिकार प्राप्त मंत्री समूह का गठन भी किया गया है। केंद्रीय मंत्री शरद पवार ने भंडारण क्षेत्र के निवेशकों के साथ बैठक कर समस्या समाधान की कोशिश शुरु की। इसके तहत नियमों को सरल बनाते हुए गोदाम बनाने वाली निजी निवेशकों को पहले सात सालों की निश्चित अवधि तक भंडारण की गारंटी का प्रस्ताव दिया गया। लेकिन अब इसे बढ़ाकर 10 साल कर दिया गया है।
नियमों को सरल बनाने का नतीजा यह हुआ कि गोदाम निर्माण के प्रस्तावों की ढेर लग गई। एफसीआई के उतावले प्रबंधन ने इन प्रस्तावों पर विचार करने का जिम्मा राज्य एजेंसियों और सेंट्रल वेयर हाऊसिंग कॉरपोरेशन (सीडब्लूसी) को सौंप दिया है। इन्हें स्थानीय स्तर पर नोडल एजेंसी नियुक्त कर दिया गया। लेकिन संतोषजनक प्रगति नहीं हो सकी है। सीडब्लूसी ने तो पिछले सालों में खुद की भंडारण की क्षमता में वृद्धि कर ली है। इसी तरह रेलवे के साथ मिलकर उसने सेंट्रल रेलवे साइड वेयर हाऊसिंग कंपनी स्थापित की है। लेकिन निजी निवेशकों के लिए चलाई गई योजना सिरे नहीं चढ़ पा रही है। जबकि संसद में सरकार ने फिर दो सालों में डेढ़ सौ लाख टन भंडारण क्षमता बना लेने का भरोसा दिया है।
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गोदामों की भारी किल्लत से आखिर गेहूं का भंडारण होगा कहां?
केंद्र ने फिर अलापा 1.50 करोड़ टन अतिरिक्त क्षमता बढ़ाने का राग
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देश की खाद्यान्न सुरक्षा के लिए सरकार के पास न गोदाम हैं और न ही भंडारण क्षमता बढ़ाने की कोई पुख्ता योजना है। भंडारण की किल्लत से एफसीआई मुश्किलों का सामना कर रही है। हर साल खुले में रखा करोड़ों का अनाज सड़ रहा है। इसके लिए सरकार अदालत की फटकार से लेकर संसद में फजीहत झेल चुकी है। लेकिन पिछले दो सालों से सरकार भंडारण क्षमता में 1.50 करोड़ टन की वृद्धि का राग अलाप रही है। कई दौर के टेंडर के बावजूद अभी तक किसी प्रस्ताव को मंजूरी नहीं मिल पाई है।
प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक के अमल के साथ खाद्यान्न की जितनी जरूरत होगी, देश में उतना अनाज रखने का बंदोबस्त नहीं है। भंडारण क्षमता के इस अंतर को पाटने के लिए सरकार की ओर से कोशिशें जरूर हुईं, लेकिन आधे अधूरे मन से। निजी क्षेत्रों के प्रस्ताव नियम-कानून के मकडज़ाल के चलते सरकारी दफ्तरों में धूल फांक रहे हैं। खाद्य मंत्रालय की तरफ से दो चरणों में टेंडर मांगा गया, जिसमें एक सौ से अधिक निवेशकों ने हिस्सा लिया। लेकिन किसी परियोजना प्रस्ताव को हरी झंडी नहीं मिल पाई है।
एफसीआई पंजाब और हरियाणा में ही सबसे अधिक अनाज की खरीद करती है। उसके 80 फीसदी गोदाम भी इन्हीं राज्यों में हैं। यहीं से पूरे देश के लिए अनाज भेजा जाता है। लेकिन नई व्यवस्था में सरकार ने गोदाम बनाने के लिए उन राज्यों को भी प्राथमिकता दी है, जहां अनाज की ज्यादा जरुरत है। ग्र्रामीण गोदामों का विचार भी आया है। लेकिन इन्हें अमली जामा अभी तक नहीं पहनाया जा सका है। इन्हीं मुश्किलों से गुजर रही सरकार की चिंताएं कम होने का नाम नहीं ले रही है।
भंडारण क्षमता बढ़ाने की दिशा में आ रही मुश्किलों के समाधान के लिए अधिकार प्राप्त मंत्री समूह का गठन भी किया गया है। केंद्रीय मंत्री शरद पवार ने भंडारण क्षेत्र के निवेशकों के साथ बैठक कर समस्या समाधान की कोशिश शुरु की। इसके तहत नियमों को सरल बनाते हुए गोदाम बनाने वाली निजी निवेशकों को पहले सात सालों की निश्चित अवधि तक भंडारण की गारंटी का प्रस्ताव दिया गया। लेकिन अब इसे बढ़ाकर 10 साल कर दिया गया है।
नियमों को सरल बनाने का नतीजा यह हुआ कि गोदाम निर्माण के प्रस्तावों की ढेर लग गई। एफसीआई के उतावले प्रबंधन ने इन प्रस्तावों पर विचार करने का जिम्मा राज्य एजेंसियों और सेंट्रल वेयर हाऊसिंग कॉरपोरेशन (सीडब्लूसी) को सौंप दिया है। इन्हें स्थानीय स्तर पर नोडल एजेंसी नियुक्त कर दिया गया। लेकिन संतोषजनक प्रगति नहीं हो सकी है। सीडब्लूसी ने तो पिछले सालों में खुद की भंडारण की क्षमता में वृद्धि कर ली है। इसी तरह रेलवे के साथ मिलकर उसने सेंट्रल रेलवे साइड वेयर हाऊसिंग कंपनी स्थापित की है। लेकिन निजी निवेशकों के लिए चलाई गई योजना सिरे नहीं चढ़ पा रही है। जबकि संसद में सरकार ने फिर दो सालों में डेढ़ सौ लाख टन भंडारण क्षमता बना लेने का भरोसा दिया है।
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बर्बादी खरीदने की तैयारी
गेहूं की सरकारी खरीद और इसकी बर्बादी की तैयारी कर ली गई है। पहले से ही इफरात पुराने अनाज से भरे गोदाम एफसीआई की सांसत बढ़ाने वाले हैं। गेहूं की नई फसल के भंडारण के लिए गोदामों की भारी कमी है। रबी फसलों की बंपर पैदावार को देखकर खुश होने की जगह सरकारी एजेंसी एफसीआई के होश उड़ गये हैं। सुप्रीम कोर्ट से फजीहत झेलने के बावजूद खाद्य मंत्रालय ने पिछले दो सालों में मुट्ठीभर अनाज भंडारण की क्षमता नहीं विकसित की है। गेहूं की खरीद और भंडारण की बदइंतजामी इस बार सरकार पर भारी पडऩे वाली है।
पिछले दो सालों से खुले आसमान के नीचे रखे लाखों टन अनाज के सडऩे पर भी सरकार की सेहत पर कोई खास असर नहीं पड़ा है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर सरकार को आड़े हाथों लिया है। उसने यहां तक कह दिया कि अगर अनाज रखने की जगह नहीं है तो गरीबों में मुफ्त बांट दिया जाए। भंडारण की कमी के चलते इस बार भी अनाज सड़ेगा।
एफसीआई की खुद की कुल भंडारण क्षमता 1.54 करोड़ टन है। जबकि दूसरी एजेंसियों से वह सालाना आधार पर 1.33 करोड़ टन भंडारण क्षमता किराये पर है। इस तरह उसकी कुल भंडारण क्षमता 2.88 करोड़ टन ही है। इसमें केंद्रीय वेयर हाउसिंग निगम के अलावा राज्य एजेंसियों के गोदाम भी शामिल हैं। बाकी अनाज खुले में अस्थाई गोदामों (कैप) में रखा हुआ है।
वास्तविक तथ्य यह है कि चालू रबी सीजन में खाद्यान्न पैदावार 23.5 करोड़ टन से अधिक होने वाली है। जिसमें अकेले गेहूं की हिस्सेदारी 8.42 करोड़ टन है, जो अब तक की सर्वाधिक है। इसके मद्देनजर केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने चालू खरीद सीजन में 2.62 करोड़ टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य निर्धारित किया है। केंद्रीय एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को गेहूं खरीद और भंडारण के लिए पुख्ता इंतजाम करने को कहा गया है। लेकिन वास्तविक धरातल पर
एफसीआई के पास भंडारण के लिए जितने गोदाम हैं, वे पिछले सालों के गेहंू व चावल से भरे पड़े हैं। लगभग डेढ़ करोड़ टन अनाज अभी भी खुले में बने अस्थाई गोदामों में रखा पड़ा है। सरकारी स्टॉक में कुल 4.58 करोड़ टन पुराना गेहूं और चावल है। इसके खराब होने की आशंका लगातार बढ़ रही है। दरअसल तिरपाल से ढके अस्थाई गोदामों का रखा अनाज हर हाल में सालभर के भीतर खाली करा लिया जाना चाहिए। लेकिन महंगाई से भयाक्रांत खाद्य मंत्रालय अस्थाई गोदामों को खाली कराने से पीछे हट गई। ऐसी दशा में अनाज का फिर सडऩा लगभग तय है।
पिछले दो सालों से खुले आसमान के नीचे रखे लाखों टन अनाज के सडऩे पर भी सरकार की सेहत पर कोई खास असर नहीं पड़ा है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर सरकार को आड़े हाथों लिया है। उसने यहां तक कह दिया कि अगर अनाज रखने की जगह नहीं है तो गरीबों में मुफ्त बांट दिया जाए। भंडारण की कमी के चलते इस बार भी अनाज सड़ेगा।
एफसीआई की खुद की कुल भंडारण क्षमता 1.54 करोड़ टन है। जबकि दूसरी एजेंसियों से वह सालाना आधार पर 1.33 करोड़ टन भंडारण क्षमता किराये पर है। इस तरह उसकी कुल भंडारण क्षमता 2.88 करोड़ टन ही है। इसमें केंद्रीय वेयर हाउसिंग निगम के अलावा राज्य एजेंसियों के गोदाम भी शामिल हैं। बाकी अनाज खुले में अस्थाई गोदामों (कैप) में रखा हुआ है।
वास्तविक तथ्य यह है कि चालू रबी सीजन में खाद्यान्न पैदावार 23.5 करोड़ टन से अधिक होने वाली है। जिसमें अकेले गेहूं की हिस्सेदारी 8.42 करोड़ टन है, जो अब तक की सर्वाधिक है। इसके मद्देनजर केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने चालू खरीद सीजन में 2.62 करोड़ टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य निर्धारित किया है। केंद्रीय एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को गेहूं खरीद और भंडारण के लिए पुख्ता इंतजाम करने को कहा गया है। लेकिन वास्तविक धरातल पर
एफसीआई के पास भंडारण के लिए जितने गोदाम हैं, वे पिछले सालों के गेहंू व चावल से भरे पड़े हैं। लगभग डेढ़ करोड़ टन अनाज अभी भी खुले में बने अस्थाई गोदामों में रखा पड़ा है। सरकारी स्टॉक में कुल 4.58 करोड़ टन पुराना गेहूं और चावल है। इसके खराब होने की आशंका लगातार बढ़ रही है। दरअसल तिरपाल से ढके अस्थाई गोदामों का रखा अनाज हर हाल में सालभर के भीतर खाली करा लिया जाना चाहिए। लेकिन महंगाई से भयाक्रांत खाद्य मंत्रालय अस्थाई गोदामों को खाली कराने से पीछे हट गई। ऐसी दशा में अनाज का फिर सडऩा लगभग तय है।
Friday, January 7, 2011
ओबामा की उत्सुकता वाले फोटो
आप इसे देखकर हैरान न हो। आपने सही पहचाना है। दुनिया के सबसे ताकतवर देश संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ही हैं। मूंगफली छीलने की देसी मशीन देखकर सच में खुद हैरान हैं। उन्होंने इस मशीन बनाने वालों को सराहा और कहा कि असल प्रौद्योगिकी व तकनीक यही है, जो आम व गरीबों को मदद पहुंचा सकती है। उनकी इस टिप्पणी के बाद इस तरह की मूंगफली और मक्का छुड़ाने वाली मशीनों की मांग बढ़ी है। अमेरिकी अधिकारियों ने इसके आयात की संभावनाएं तलाशने में जुटे हैं। इन छोटे उपकरणों को अमेरिका अफ्रीकी गरीब देशों को भेजना चाहता है। है न कमाल की तरकीब। दूसरे फोटो में ओबामा खुद मक्के का दाना छुड़ा रहे हैं।
रबी पौध के खराब होने से प्याज खेती को झटका, प्याज निकालेगी और आंसू
प्याज की खरीफ फसल को नुकसान क्या हुआ चौतरफा हायतौबा मच गई। सरकार ने भी कहा ढाढ़स बंधाया कि घबराइये नहीं जल्दी ही रबी फसल वाली प्याज खेत से निकलने लगेगी और बात बन जाएगी। यानी प्याज की कीमतें सतह पर आ जाएंगी। लेकिन प्याज की खेती के सरकारी आंकड़े ने तो कान ही खड़े कर दिये। बताया गया है कि रबी फसल में रोपाई की जाने वाली प्याज की नर्सरी को २० फीसदी तक नुकसान हुआ है। अब इस जानकारी के बाद भी भला प्याज के मूल्य के नीचे आने की संभावना तो नहीं लगती। इसलिए सरकार हमे आपको भले ही झूठी दिलासा दिला रही हो, लेकिन माथे पर उसके भी बल पड़ने लगे हैं। उसी संबंधित कुछ जानकारी आपके लिए, ताकि आप किसी झांसे में न आयें।
प्याज के प्रमुख उत्पादक राज्यों में बेमौसम बारिश ने सिर्फ खरीफ सीजन की फसल को ही नुकसान नहीं पहुंचाया है, बल्कि रबी सीजन की पौध को भी चौपट किया है। सरकार ने माना है कि रबी सीजन की प्याज नर्सरी को 20 फीसदी तक का नुकसान हुआ है। पौध की कमी से प्याज की आगामी खेती का रकबा घटने का अंदेशा है, जिसे लेकर सरकार के माथे पर बल पडऩे हैं। उत्पादन घटने की आशंका से उपभोक्ताओं को प्याज आगे भी तंग करेगी।
प्याज को लेकर उपभोक्ताओं के साथ सरकार की मुश्किलें कम होती नहीं दिख रही हैं। खरीफ सीजन में प्याज के खेत से निकलने से पहले हुई बारिश ने फसल को भारी नुकसान पहुंचाया था, जिससे कीमतें सातवें आसमान पर पहुंच गईं। रबी फसल के लिए तैयार की जा रही नर्सरी पर भी बेमौसम बारिश का बुरा असर पड़ा है। रबी की पौध की तैयारी अक्टूबर के आखिरी सप्ताह में ही पूरी हो जाती है। सरकारी रिपोर्ट के अनुसार इन्हीं दिनों बेमौसम बारिश ने प्याज नर्सरी को 15 से 20 फीसदी तक नुकसान पहुंचाया है। इससे आगामी रबी फसल की प्याज की पैदावार के प्रभावित होने का पूरा खतरा है।
राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान व विकास फाउंडेशन के मुताबिक प्याज की कुल पैदावार में रबी सीजन की हिस्सेदारी लगभग 60 फीसदी होती है। नर्सरी के नुकसान का सीधा मतलब प्याज की खेती पर पडऩा तय है। रबी सीजन के लिए प्याज की रोपाई इस महीने से चालू हो गई है। प्याज की इस नई फसल की खुदाई मार्च से शुरू हो जाएगी।
खरीफ सीजन की प्याज की खेती को 40 फीसदी तक नुकसान होने का अनुमान है। यही वजह है कि प्याज के मूल्य पर काबू पाना मुश्किल होता जा रहा है। मांग व आपूर्ति के इस अंतर को कम करने के लिए सरकार ने आनन-फानन में पाकिस्तान समेत अन्य देशों से प्याज के आयात का फैसला ले लिया है। इसके चलते कीमतें थोड़े समय के लिए थमी जरुर, लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी प्याज के मूल्य बहुत बढ़ जाने से हालत में बहुत सुधार नहीं हुआ है।
प्याज के प्रमुख उत्पादक राज्यों में बेमौसम बारिश ने सिर्फ खरीफ सीजन की फसल को ही नुकसान नहीं पहुंचाया है, बल्कि रबी सीजन की पौध को भी चौपट किया है। सरकार ने माना है कि रबी सीजन की प्याज नर्सरी को 20 फीसदी तक का नुकसान हुआ है। पौध की कमी से प्याज की आगामी खेती का रकबा घटने का अंदेशा है, जिसे लेकर सरकार के माथे पर बल पडऩे हैं। उत्पादन घटने की आशंका से उपभोक्ताओं को प्याज आगे भी तंग करेगी।
प्याज को लेकर उपभोक्ताओं के साथ सरकार की मुश्किलें कम होती नहीं दिख रही हैं। खरीफ सीजन में प्याज के खेत से निकलने से पहले हुई बारिश ने फसल को भारी नुकसान पहुंचाया था, जिससे कीमतें सातवें आसमान पर पहुंच गईं। रबी फसल के लिए तैयार की जा रही नर्सरी पर भी बेमौसम बारिश का बुरा असर पड़ा है। रबी की पौध की तैयारी अक्टूबर के आखिरी सप्ताह में ही पूरी हो जाती है। सरकारी रिपोर्ट के अनुसार इन्हीं दिनों बेमौसम बारिश ने प्याज नर्सरी को 15 से 20 फीसदी तक नुकसान पहुंचाया है। इससे आगामी रबी फसल की प्याज की पैदावार के प्रभावित होने का पूरा खतरा है।
राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान व विकास फाउंडेशन के मुताबिक प्याज की कुल पैदावार में रबी सीजन की हिस्सेदारी लगभग 60 फीसदी होती है। नर्सरी के नुकसान का सीधा मतलब प्याज की खेती पर पडऩा तय है। रबी सीजन के लिए प्याज की रोपाई इस महीने से चालू हो गई है। प्याज की इस नई फसल की खुदाई मार्च से शुरू हो जाएगी।
खरीफ सीजन की प्याज की खेती को 40 फीसदी तक नुकसान होने का अनुमान है। यही वजह है कि प्याज के मूल्य पर काबू पाना मुश्किल होता जा रहा है। मांग व आपूर्ति के इस अंतर को कम करने के लिए सरकार ने आनन-फानन में पाकिस्तान समेत अन्य देशों से प्याज के आयात का फैसला ले लिया है। इसके चलते कीमतें थोड़े समय के लिए थमी जरुर, लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी प्याज के मूल्य बहुत बढ़ जाने से हालत में बहुत सुधार नहीं हुआ है।
Tuesday, November 23, 2010
आधी भी नहीं हो पाई अभी तक रबी की बुवाई
गेहूं बुवाई की हालत चिंताजनक, 30 लाख हेक्टेयर तक पिछड़ी
कहीं नमी की कमी से तो कहीं बारिश से प्रभावित हुई गेहूं की बुवाई
राम जी की माया कहीं धूप कहीं छाया। भला हो इस कहावत का। देश में जब मानसूनी बादल खूब पानी बरसा रहे थे तो लगा अगला सीजन रबी खूब फले फूलेगी। लेकिन हालत उलटबांसियों की सी हो गई है। जहां खूब पानी बरसा वहां नमी थी, लेकिन बुवाई से ठीक पहले फिर बारिश हो गई। और जिन इलाकों में मानसून ने दगा दिया था वहां के किसानों ने सोचा इस मौसम में थोड़ी बहुत बारिश तो हो ही जाएगी। लेकिन इस सीजन में भी बूंदे नहीं टपकीं। किसानों ने गेहूं बोने के लिए खेत में पलेवा कर डाला। अब वहां भी गेहूं की बुवाई लेट। यानी दोनों जगहों पर गेहूं की बुवाई पीछे। गेहूं की बुवाई पिछड़ने की एक कहानी और। पश्चिम उत्तर प्रदेश की चीनी मिलें नहीं चलीं तो उनकी मुश्किल यह हो गई कि पेड़ी गन्ने वाले खेत ही खाली नहीं हो पाये। आगे भी संभावना नहीं है। यह कोई कम रकबा नहीं है। सरकारी आंकड़ों पर जाएं तो कोई नौ दस लाख एकड़ है।
गेहूं कारकबा पिछले साल के मुकाबले सर्वाधिक 30 लाख हेक्टेयर तक पिछड़ चुका है। बुवाई में देरी होने से गेहूं की उत्पादकता पर विपरीत असर पडऩे का खतरा है। इसे लेकर कृषि मंत्रालय के माथे पर भी बल पडऩे लगे हैं।
मानसून की अच्छी बारिश के चलते भूमि में पर्याप्त नमी को लेकर कृषि वैज्ञानिक व सरकार बेहद खुश थे। उम्मीद थी कि रबी की प्रमुख फसल गेहूं की बुवाई इस बार जल्दी हो जाएगी, जिससे उत्पादकता बढ़ेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। गेहूं उत्पादक राज्यों- पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मानसून की अच्छी बारिश हुई थी। इससे वहां की भूमि में पर्याप्त नमी को देखते हुए बुवाई तेजी से शुरू तो हुई, लेकिन अचानक हुई बारिश ने उसे रोक दिया है। हरियाणा में गेहूं बुवाई ढाई लाख हेक्टेयर पीछे है, जबकि पंजाब में डेढ़ लाख हेक्टेयर।
इसके विपरीत पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और छत्तीसगढ़ में पर्याप्त बारिश नहीं होने से खरीफ की फसलों पर विपरीत असर पड़ा था। जिससे खेतों में पलेवा (सिंचाई) करने के बाद ही बुवाई संभव हो पा रही है। परिणामस्वरूप यहां भूमि में नमी की कमी से बुवाई पिछड़ रही है।
कहीं सूखा कहीं बारिश के चलते उत्तर प्रदेश में पिछले साल अब तक जहां 30 लाख हेक्टेयर भूमि में गेहूं बो दिया गया था, वहां अभी तक केवल नौ लाख हेक्टेयर में ही गेहूं की बुवाई हो सकी है। कृषि मंत्रालय के लिए यह गंभीर चिंता का विषय है।
कृषि मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश में गेहूं बुवाई पांच लाख हेक्टेयर पीछे चल रही है। पिछले साल अब तक 17.71 लाख हेक्टेयर में गेहूं की बुवाई हो चुकी थी, जो चालू सीजन में 12.50 लाख हेक्टेयर ही हो पाई है। छत्तीसगढ़ में 80 फीसदी और महाराष्ट्र में 35 फीसदी कम रकबा में बुआई हुई है।
कहीं नमी की कमी से तो कहीं बारिश से प्रभावित हुई गेहूं की बुवाई
राम जी की माया कहीं धूप कहीं छाया। भला हो इस कहावत का। देश में जब मानसूनी बादल खूब पानी बरसा रहे थे तो लगा अगला सीजन रबी खूब फले फूलेगी। लेकिन हालत उलटबांसियों की सी हो गई है। जहां खूब पानी बरसा वहां नमी थी, लेकिन बुवाई से ठीक पहले फिर बारिश हो गई। और जिन इलाकों में मानसून ने दगा दिया था वहां के किसानों ने सोचा इस मौसम में थोड़ी बहुत बारिश तो हो ही जाएगी। लेकिन इस सीजन में भी बूंदे नहीं टपकीं। किसानों ने गेहूं बोने के लिए खेत में पलेवा कर डाला। अब वहां भी गेहूं की बुवाई लेट। यानी दोनों जगहों पर गेहूं की बुवाई पीछे। गेहूं की बुवाई पिछड़ने की एक कहानी और। पश्चिम उत्तर प्रदेश की चीनी मिलें नहीं चलीं तो उनकी मुश्किल यह हो गई कि पेड़ी गन्ने वाले खेत ही खाली नहीं हो पाये। आगे भी संभावना नहीं है। यह कोई कम रकबा नहीं है। सरकारी आंकड़ों पर जाएं तो कोई नौ दस लाख एकड़ है।
गेहूं कारकबा पिछले साल के मुकाबले सर्वाधिक 30 लाख हेक्टेयर तक पिछड़ चुका है। बुवाई में देरी होने से गेहूं की उत्पादकता पर विपरीत असर पडऩे का खतरा है। इसे लेकर कृषि मंत्रालय के माथे पर भी बल पडऩे लगे हैं।
मानसून की अच्छी बारिश के चलते भूमि में पर्याप्त नमी को लेकर कृषि वैज्ञानिक व सरकार बेहद खुश थे। उम्मीद थी कि रबी की प्रमुख फसल गेहूं की बुवाई इस बार जल्दी हो जाएगी, जिससे उत्पादकता बढ़ेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। गेहूं उत्पादक राज्यों- पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मानसून की अच्छी बारिश हुई थी। इससे वहां की भूमि में पर्याप्त नमी को देखते हुए बुवाई तेजी से शुरू तो हुई, लेकिन अचानक हुई बारिश ने उसे रोक दिया है। हरियाणा में गेहूं बुवाई ढाई लाख हेक्टेयर पीछे है, जबकि पंजाब में डेढ़ लाख हेक्टेयर।
इसके विपरीत पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और छत्तीसगढ़ में पर्याप्त बारिश नहीं होने से खरीफ की फसलों पर विपरीत असर पड़ा था। जिससे खेतों में पलेवा (सिंचाई) करने के बाद ही बुवाई संभव हो पा रही है। परिणामस्वरूप यहां भूमि में नमी की कमी से बुवाई पिछड़ रही है।
कहीं सूखा कहीं बारिश के चलते उत्तर प्रदेश में पिछले साल अब तक जहां 30 लाख हेक्टेयर भूमि में गेहूं बो दिया गया था, वहां अभी तक केवल नौ लाख हेक्टेयर में ही गेहूं की बुवाई हो सकी है। कृषि मंत्रालय के लिए यह गंभीर चिंता का विषय है।
कृषि मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश में गेहूं बुवाई पांच लाख हेक्टेयर पीछे चल रही है। पिछले साल अब तक 17.71 लाख हेक्टेयर में गेहूं की बुवाई हो चुकी थी, जो चालू सीजन में 12.50 लाख हेक्टेयर ही हो पाई है। छत्तीसगढ़ में 80 फीसदी और महाराष्ट्र में 35 फीसदी कम रकबा में बुआई हुई है।
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