Sunday, March 3, 2013
कंपनियां करेंगी खेती, सरकार देगी मदद
आंखों देखी, न कि कानों सुनी...
Friday, February 22, 2013
सपना ही रहेगा गांवों को शहर बनाने का सपना
Tuesday, February 19, 2013
प्रधानमंत्री बनने का रास्ता कूछ यूं था....
एक दिसंबर 2012 को गुजराल के निधन पर
अठारह-उन्नीस अप्रैल 1997। आंध्र भवन इतिहास का हिस्सा बनने जा रहा है। प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के 11 अप्रैल को दिए गए त्यागपत्र के बाद यूनाइटेड फ्रंट नेताओं के घरों पर देर रात तक राजनीतिक गुफ्तगू की चलती रहती थी। उस समय यूनाइटेड फ्रंट की धुरी की भूमिका में हरिकिशन सिंह सुरजीत थे। सुरजीत और मुलायम के राजनीतिक रिश्ते जगजाहिर थे। सुरजीत ने चंद्रबाबू नायडू, माकपा, भाकपा एजीपी व जनता दल के नेताओं को मुलायम सिंह के नाम पर राजी कर लिया था। राजनीतिक सहमति हो जाने के बाद सुरजीत संभवत: 16 अप्रैल को मास्को उड़ गए और फिर दिल्ली में जो राजनीतिक दांव पेंच का खेल चला उसका गवाह बना आंध्र भवन।
सुरजीत के मास्को की उड़ान भरते ही उनकी बनाई सहमति को नजरंदाज कर लालू यादव, चंद्रबाबू नायडू, प्रफुल्ल महंत सहित और धड़ों ने मिलकर मुलायम के नाम पर न केवल पलीता लगाया बल्कि राजनीतिक रूप से और निरापद व्यक्ति की तलाश शुरू कर दी। इस खेमे ने राजनीति के जिस भद्र पुरुष को तलाशा वह थे इंद्र कुमार गुजराल। गुजराल के नाम पर ज्योति बसु को सहमत करने की जिम्मेदारी चंद्रबाबू को मिली जरूर, लेकिन उन्होंने कृष्णकांत से फौरन संपर्क साधा। कृष्णकांत उन दिनों आंध्र प्रदेश के राज्यपाल थे। चंद्रबाबू ने उनसे यह आग्र्रह भी किया कि कामरेड ज्योति बसु से गुजराल के नाम पर सहमति की मुहर लगवाने का प्रयास करें। देर रात तक हैदराबाद, कोलकाता और दिल्ली स्थित आंध्र भवन के बीच लगातार हाट लाइन पर बात होती रही।
एक बार गुजराल का नाम आते ही मुलायम सिंह ने सुरजीत सिंह से मास्को में संपर्क साधा और दिल्ली में आंध्र भवन में चल रही गहमागहमी व इनके नाम के खिलाफ चल रही साजिश की जानकारी दी। सुरजीत मास्को में भौंचक थे। उन्होंने चंद्रबाबू नायडू जो यूनाइटेड फ्रंट के संयोजक थे, उनसे संपर्क भी साधा। दोनों के बीच क्या बात हुई, इस पर कयास ही लगाया जा सकता है। 18/19 अप्रैल की पूरी रात आंध्र भवन में पंचायत चलती रही। 19 अप्रैल को तो गुजराल को नेताओं ने आंध्र भवन के एक कमरे में रोके भी रखा। अंतत: देर रात जब सहमति बनी, उस समय गुजराल आंध्र भवन के कमरे में सो चुके थे। उन्हें जगाकर उनके नाम पर सहमति और फैसले की जानकारी दी गई। साथ ही चंद्रबाबू नायडू को यह जिम्मा सौंपा गया कि वह मास्को में सुरजीत को लिए गए फैसले की जानकारी दें। उधर, सुरजीत नये घटनाक्रम के चलते अपना दौरा बीच में ही छोड़कर दिल्ली लौटने की तैयारी में थे। मास्को एयरपोर्ट पहुंचने पर उनकी चंद्रबाबू से बात कराई गई। बाबू ने साफ कर दिया था कि बहुमत गुजराल के पक्ष में फैसला कर चुका है। बाजी निकलते देख सुरजीत ने भी गुजराल के नाम पर मुहर लगा दी। फिर क्या था, प्रधानमंत्री बनने की शुरुआती दौड़ में आगे चल रहे मुलायम सिंह यादव अब पीछे छूट चुके थे। आंध्र भवन की इन्हीं बैठकों का फलीतार्थ था, 21 अप्रैल 1997 को इंद्र कुमार गुजराल का प्रधानमंत्री पद पर शपथ ग्र्रहण समारोह।
Wednesday, November 28, 2012
बिना खाद के गेहूं बुवाई से हिचक रहे किसान
-खाद की किल्लत से गेहूं खेती के प्रभावित का खतरा
-उत्तरी राज्यों में बुवाई प्रभावित, अकेले उत्तर प्रदेश में 10 लाख हेक्टेयर पीछे
-खाद की कमी वाले राज्यों में डीएपी और एनपीके की कालाबाजारी
नई दिल्ली।
रबी सीजन की फसलों की बुवाई के शुरुआती सप्ताह में ही खादों की बढ़ी किल्लत सेगेहूं किसान सकते में हैं। देश में कुल तीन करोड़ हेक्टेयर रकबे में गेहूं की खेती होती है, लेकिन अभी तक केवल 49 लाख हेक्टेयर में ही गेहूं की खेती हो सकी है। किसानों को गेहूं बुवाई के लिए जरूरी डीएपी और एनपीके पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पा रही है, जिससे वह गेहूं बुवाई करने से हिचक रहा है।
उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, हरियाणा और मध्य प्रदेश में गेहूं बुवाई के लिए जरूरी डीएपी और एनपीके की भारी किल्लत है। नवंबर के तीसरे सप्ताह में गेहूं की बुवाई 20 लाख हेक्टेयर पीछे चल रही है। इसमें अकेले उत्तर प्रदेश में गेहूं की बुवाई 10 लाख हेक्टेयर पीछे चल रही है। राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में भी बुवाई पिछड़ी है।
गेहूं बुवाई में हो रहे विलंब से कृषि मंत्रालय की चिंताएं बढ़ गई हैं। बुवाई में देरी की वजह गिनाते हुए कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि खादों की किल्लत एक बड़ा कारण बन रहा है। गैर यूरिया खादों के मूल्य का तीन गुना तक अधिक बढ़ जाना भी किसानों के लिए बड़ी मुश्किल बन गया है। इसके बावजूद खादों की अनुपलब्धता गेहूं की खेती के लिए खतरा है। मंत्रालय के मुताबिक केंद्र सरकार खादों की उपलब्धता बनाने के लिए राज्यों से लगातार से संपर्क में है। कृषि मंत्रालय के मुताबिक रबी सीजन की खेती के लिए गेहूं उत्पादक राज्यों ने जितनी खाद की मांग की थी, लगभग उतनी आपूर्ति कर दी गई है। लेकिन किसी राज्य की ओर से अभी तक अतिरिक्त खाद की मांग नहीं की गई है।
उवर्रक मंत्रालय के मुताबिक उत्तर प्रदेश ने पिछले रबी सीजन के 31 लाख टन के मुकाबले 34 लाख टन यूरिया और पिछले साल के 10 लाख टन के मुकाबले केवल नौ लाख टन डीएपी मांगा था। डीएपी की जगह सवा लाख टन अतिरिक्त एनपीके मांग लिया था। बिहार को यूरिया 11 लाख टन, डीएपी पौने तीन लाख टन, एनपीके दो लाख टन और एमओपी डेढ़ लाख टन की दी जानी है। खाद की यह मात्रा राज्य की मांग के मुकाबले कहीं कम है। हरियाणा को 11 लाख टन यूरिया और चार लाख टन डीएपी की आपूर्ति की चुकी है। राज्यों में खाद की मांग का आकलन केंद्रीय एजेंसियों ने किया है।
-----------
शैवाल व सीपियों से बनी गठिया की दवा से दर्द छूमंतर
महत्त्वपूर्ण खबर नई खोज
----------
भारतीय वैज्ञानिकों ने बनाईं बिना साइड इफेक्ट वाली गठिया की दवाएं
समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान को कृषि मंत्रालय ने सराहा
--------------------
नई दिल्ली।
मुद्दतों से सुनते चले आए हैं कि गठिया है तो दर्द होगा ही। इस दर्द का कोई मुकम्मल इलाज नहीं है। इस जुमले को भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने झूठा साबित कर दिया है। उन्होंने समुद्री सीपों और शैवाल से ऐसी अनोखी दवा तैयार की है जो असहनीय पीड़ा से तड़पते गठिया रोगियों को दर्द से निजात दिलाएगी। शत-प्रतिशत प्राकृतिक होने की वजह के इस दवा का कोई साइड इफेक्ट नहीं है।
गठिया यानी आर्थराइटिस के रोगियों के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) के वैज्ञानिकों ने नायाब नुस्खा तैयार किया है। समुद्री सीपों और हरी शैवाल घास से तैयार उनकी दवाएं किसी भी अंग्रेजी दवा के मुकाबले अधिक कारगर साबित हुई हैं। पूर्ण रूप से प्राकृतिक होने की वजह से इन दवाओं का साइड इफेक्ट बिल्कुल नहीं है। अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरा उतरने के बाद इन दवाओं का पेटेंट भी करा लिया गया है।
कोच्चि में केंद्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान आइसीएआर का एक संस्थान है। यहां के वैज्ञानिकों को इस दवा को तैयार करने में लंबा समय लगा। बाजार में उपलब्ध देसी-विदेशी दवाओं से अस्थायी आराम ही मिलता है, साथ ये बहुत खर्चीली भी हैं। लेकिन अब भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के केंद्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों के नायाब नुस्खे ने गठिया रोगियों में उम्मीद की किरण जगाई है।
इन वैज्ञानिकों ने समुद्री शैवाल और सीपों से आर्थराइटिस की ऐसी दवाएं तैयार की हैं, जो न सिर्फ इस रोग के प्रसार को रोकने में कामयाब होंगी, बल्कि जिनका खर्च वहन करना भी आसान होगा। आइसीएआर के समुद्र मात्स्यिकी वैज्ञानिकों ने पहले सीप अथवा घोंघे (म्यूजेल्स) से गठिया की जो दवा बनाई तो वह कारगर तो रही, लेकिन उसे मांसाहारी मानकर शाकाहारी रोगियों ने खाने से मना कर दिया। इस पर सामुद्रिक मात्स्यिकी वैज्ञानिकों ने साल भर के भीतर ही समुद्री घास, हरी शैवाल से उतनी ही कारगर शाकाहारी दवाएं तैयार कर दीं। वैज्ञानिकों ने पाया कि सीपों के वही गुण इन हरी शैवाल में भी मौजूद हैं। इस तरह अब मांसाहारी और शाकाहारी दोनों के लिए आर्थराइटिस की कारगर दवाएं उपलब्ध हैं। दोनों के कैप्सूल और टिकियां तैयार हो चुकी हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक इन दवाओं के प्रयोग से असह्यï पीड़ा से तत्काल मुक्ति मिल जाती है। यह एस्पिरिन के मुकाबले कई गुना अधिक कारगर साबित हुई है। सबसे बड़ी बात यह है कि इन दवाओं का कोई साइड इफेक्ट नहीं है। मालूम हो कि देश में 20 करोड़ से अधिक आबादी गठिया रोग की असह्यï पीड़ा सहने को मजबूर है। उनके लिए उपयुक्त दवाएं उपलब्ध नहीं हैं।
---------
समझौते के बाद भी केंद्र की मुश्किलें नहीं होंगी कम
-राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति को लागू करना भी राज्यों का अधिकार क्षेत्र
-ज्यादातर मांगों का ताल्लुक राज्यों से, छह महीने में पूरा करने का वायदा
----------------
नई दिल्ली।
सत्याग्रहियों से समझौता कर केंद्र सरकार भूमिहीन आदिवासियों को मनाने में भले ही सफल हो गई हो, लेकिन अब उसकी राह और कठिन हो गई है। राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति तैयार करने पर सहमति तो बन गई है, लेकिन जमीन संबंधी मसलों को सुलझाने के लिए राज्यों को ही आगे आना होगा। समझौता-पत्र में दर्ज मांगों में ज्यादातर का ताल्लुक राज्यों से है, जिन्हें पूरा कर पाना अकेले केंद्र के बस की बात नहीं है। और तो और, जो काम केंद्र सरकार अब तक नहीं कर पाई, उसे अगले छह महीने में पूरा करना होगा।
आगरा के समझौता-पत्र में सभी 10 मांगों को पूरा करने के लिए समयबद्ध कार्यक्रम निश्चित किया गया है। इसी निर्धारित समय में केंद्र सरकार राज्यों को मनाएगी भी। गैर कांग्र्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री और उनकी सरकारें भला केंद्र की मंशा कैसे पूरा होने देंगी? इससे आने वाले दिनों में राजनीतिक रार के बढऩे के आसार हैं। हालांकि भाजपा शासित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक दिन पहले ही भूमिहीन आदिवासी और अनुसूचित जाति के लोगों की मांगों को पूरा करने के लिए तमाम वायदे दोनों हाथों से उलीचे
समझौते के मुताबिक भूमिहीन आदिवासी और अनुसूचित जाति के लोगों के लिए राज्यों को जो कुछ करना है, उसमें एक दर्जन से अधिक मांगे शामिल हैं। एकता परिषद के नेता पीवी राजगोपाल का स्पष्ट कहना है कि केंद्र सरकार इन मांगों के लिए राज्यों पर दबाव बनाए। इसके लिए राज्य के मुख्यमंत्री, राजस्व मंत्री और उनके आला अफसरों के साथ विचार-विमर्श करे।
मौजूदा नियम व कानूनों को धता बताकर बड़ी संख्या में आदिवासियों की जमीनों पर गैर आदिवासियों के कब्जे को हटाकर उन्हें उनका हक दिलाना एक बड़ी समस्या है। अनुसूचित जातियों और आदिवासियों को आवंटित जमीनों का हस्तांतरण करना भी राज्यों के अधिकार क्षेत्र का मसला है। उद्योगों को लीज अथवा अन्य विकास परियोजनाओं के लिए अधिग्रहीत जमीनों का बड़ा हिस्सा सालों-साल से उपयोग नहीं हो रहा है। खाली पड़ी इन जमीनों को दोबारा भूमिहीनों में वितरित करना होगा और आदिवासी और अनुसूचित जाति के लोगों की परती और असिंचित भूमि को सिंचित बनाने के लिए मनरेगा के माध्यम के उपजाऊ बनाने पर जोर देना होगा।
बटाईदार और पट्टाधारकों को भी भूस्वामियों की तरह अधिकार हो, ताकि उन्हें बैंकों से कृषि ऋण आदि मिल सके। भूमि संबंधी सभी दस्तावेजों को पारदर्शी तरीके से ग्राम स्तर पर ही प्रबंधन किया जाए। भूमिहीनों के घर के लिए जमीनों का अधिग्रहण किया जाए। भूदान की समस्त भूमि का पुनर्सर्वेक्षण और भौतिक सत्यापन करके उस पर हुए अतिक्रमण को हटाया जाए। खाली हुई जमीन भूमिहीनों और वंचित वर्ग में वितरित की जाए।
-----------
Subscribe to:
Posts (Atom)