Friday, February 14, 2014

इजराइल दौरे की पहली किश्तः


इजराइल की प्रौद्योगिकी दुनिया में अनूठी है । नन्हा सा देश, जो साइज में हरियाणा से भी छोटा और आबादी दिल्ली की सिर्फ एक तिहाई है। आबादी सिर्फ अस्सी लाख है। लेकिन वहां के लोगों का जज्बा और जुनून किसी से भी अधिक। सुरक्षा बंदोबस्त इतना तगड़ा कि सांस तक गिन लेते हैं वहां के सुरक्षा कर्मचारी। इजराइल जाना बिल्कुल आसान नहीं। मुझे इजराइल एंबेसी ने खुद वहां जाने का न्यौता दिया था। वहां का सारा खर्च, जिसमें आने जाने का हवाई किराया और रहने घूमने का सब कुछ शामिल था। दिल्ली में उसकी एंबेसी से दनादन वीजा मिल गया। जाने का पूरा इंतजाम हो गया। वहां की सुरक्षा एजेंसियां आपकोी बहुत जांच न करें कि आप तंग हो जाएं,इसके लिए एक खास तरह का टिकट यानी पास मुहैया कराया था। लेकिन वाह...हुआ क्या? फ्लाइट मुंबई से थी, लिहाजा वहां पहुंचा तो बाप रे....। बोर्डिंग पास तो बाद में मिलेगा, पहले इतनी कड़ी जांच परख कि सांस उखड़ जाए। ऐसे ऐसे सवाल कि आदमी पिनक जाए। एक-एक चीज को तार तार कर जांचा परखा गया। तब कहीं बोर्डिंग पास यानी टिकट मिला। जहाज में सवार होने से पहले भी पूछ पछोर...। चलिए जहाज में चढ़े तो सात आठ घंटे बाद तेलअवीव के डेविड बेन गुरियन हवाई अड्डे पर जहाज लैंड किया। उतरने के साथ कोई आधा किमी सुरंग टाइप का रास्ता बेल्ट पर पूरा कर इमीग्रेशन पर पहुंचे। जांच परख, पूछ पछोर के बाद एक टिकटनुमा पास दिया, जिसके कोडबार से गेट खुला और बाहर निकले । बाहर नाम की तख्ती लिए एक ड्राइवर खड़ा मिला, जो होटल क्राउन प्लाजा का था। छोटी बस से हमे कोई २५ मिनट की ड्राइव के बाद होटल पहुंचाया, जहां सब कुछ पहले से ही तय था। रिशेप्शन पर कुछ नहीं करना था। कमरे की चाभी लेकर कमरे में धमक गए। सुबह नौ बजे रिशेप्शन पर कोई मिलेगा, जो हमे आगे के तयशुदा गंतव्य पर ले जाएगा। सो गए। फिर जगे तो नाश्ता इंटरनेशनल स्टाइल का। साथ में गए पत्रकारों में मुझे छोड़कर लगभग सभी वेजीटेरियन थे। थोडी़ मुश्किल हुई। लेकिन जल्दी ही फल, सलाद, फ्रूट जूस और दुग्ध उत्पादों को देख उनके चेहरे खिल गए। निकल पड़े पहले दिन के पर्यटन पर। हम लोग येरुसलम शहर की दीदार को निकल गए। नया शहर कुछ नया नया पर जल्दी ही हम उस ऐतिहासिक गेट पर पहुंच गए जहां से पुराना शहर शुरु होता है। बताया गया कि १९७६ तक यह पुराना शहर जोर्डन के कब्जे में था। लेकिन छह दिनों की भीषण लड़ाई के बाद यह इजराइल के कब्जे में आ गया। सच में प्राचीन, धार्मिक और परंपरागत तौर तरीके देख दिल्ली का चांदनी चौक और बनारस की गलियां याद आने लगीं। ठेले पर बेक की हुई मोटी मोटी सफेद तिल से लिपटी ब्रेड बिक रही थी। तेज धूप पर सर्द हवा ओं का कब्जा था। उन गलियों से गुजरते हुए, जिसमें मिठाइयां, पकौड़ियां, काफी और चाय की सुगंध नथुनों में भर रही थीं। लोगों का काफिला शांत, मौन चुपचाप लेकिन बुदबुदाते होंठों से लोग गलियों में गुजर रहे थे। गलियों की फर्श का जिक्र न करना बेमानी होगा। उन्हीं चमकदार, चिकनी पर टेढ़े मेढ़े पत्थर इतिहास के गवाह थे।............

1 comment:

Dr Mandhata Singh said...

इजरायल तो वर्षों खुद कट्टरपंथ से जूझता रहा और सारी मुस्लिम दुनिया को अपनी कट्टरपंथी को लोहा मनवाया। ऐसे देश में सतर्कता तो संस्कृति बन गयी है। भारत जैसे आजादखयाल देश के नागरिक को तो ऐसा माहौल कठिन लगेगा ही। इस मायने में आपका अनुभव अच्छा रहा। और भी कुछ जानकारी व मनोरंजक बातें बताइए। संभवतः आपका जन्मदिन भी सामने है इसलिए-----------
आपके जन्मदिन पर आपको ढेरों शुभकामनाएं। जीवन की सारी खुशियां आपको मिलें। मान्धाता

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