Tuesday, August 10, 2010

सरकारी उलटबांसियां

खपरैल वाली झोपड़ी सरकार के लिए 'पक्का' मकान
ईंट की दीवारों से बना आशियाना हुआ 'कच्चा' मकान
उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के गरीबों का नुकसान, इंदिरा आवास योजना के लाभ से वंचित


कबीरदास की उलटबांसियां पढ़ते थे तो लगता है बेवजह का मजाक बक रखा है कबीर ने। लेकिन आंखों से देखा तो टकटकी ही लगी रही, वह भी भारत सरकार की। कागज पर जो लिख उठा, उसे पत्थर की लकीर मानिये। पिछले एक दशक पहले मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाकों की झोपडि़यों को सरकारी मुलाजिमों ने पक्का मकान लिख रखा है। इसे ठीक कराने वहां के मुख्यमंत्री ने न जाने कितनी बार दिल्ली का चक्कर लगा लिया। लेकिन ग्रामीण विकास मंत्रालय वालों को कहना है कि इसे तो योजना आयोग ठीक करेगा, उससे पूछा तो जवाब टका सा। भाई यह गलती है तो इस पंचवर्षीय योजना में तो ठीक नहीं होती। इंतजार करिये १२वीं योजना की। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री ने भी चिट्ठियां लिख रखा है। आप भी उनकी कारस्तानी के कुछ नमूने देखिए....
कच्ची दीवार और खपरैल को आप क्या मानेंगे? कच्चा या पक्का। सरकार तो इसे 'पक्का मकान' मानती है जबकि ईंट की दीवारों से बने मकान को 'कच्चा'। उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश को गरीबों को इसी उलटबांसी का नुकसान उठाना पड़ा है। इंदिरा आवास योजना में सबसे वह गरीब बाहर हो गई जिन्होंने अपनी कच्ची मड़ैया को खपरैल से ढकने की 'गलती' की थी।
देश के इन दोनों बड़े सूबों के गरीब इंदिरा आवास योजना के लाभ का लेने में केरल और बिहार जैसे राज्यों से भी पिछड़ गये हैं। जबकि देश के कुछ दूसरे राज्यों के लोग समझदार निकले। उन्होंने अपने ईंट व सीमेंट से बने मकानों की छत पर पुआल व पशु चारा रख कर उसे कच्चे मकान की श्रेणी में दर्ज करा लिया। मकानों के वर्गीकरण में घालमेल का यह नतीजा सालों बाद समझ में आया, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के अनुसूचित जनजाति बहुल ब्लॉकों में 99 फीसदी मकान कच्ची मिट्टी अथवा घासफूस के बने हैं लेकिन ज्यादातर झोपडि़यों को खपरैल से ढका होने के कारण पक्का मान लिया गया है। ऐसे मकान वाले गरीबों को इंदिरा आवास योजना का लाभ नहीं मिल पाया है। मध्य प्रदेश ने पिछले साल 1.14 लाख बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया तो उत्तर प्रदेश ने 4.93 लाख इंदिरा आवास बनाने का। इसके मुकाबले बिहार जैसे राज्य में गरीबों के लिए मकानों का लक्ष्य 10.98 लाख रहा।
इंदिरा आवास योजना में उन्हीं गरीबों को मकान बनाने के लिए सरकारी मदद मिलती है, जिनके मकान कच्चे हों अथवा वे बेघर हों। इसका निर्धारण भी जनगणना के आंकड़ों और योजना आयोग सर्वेक्षण से होता है। कच्चे-पक्के मकानों की इस परिभाषा के चलते बड़े राज्यों के गरीब सस्ती आवास योजनाओं का लाभ लेने में लगातार पिछड़ रहे हैं।
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अनाज के कटोरे का पानी सूखा

- पूर्वी उत्तर प्रदेश में पेयजल तक का संकट गहराया
- धान की रोपाई पर सबसे ज्यादा असर
मध्य प्रदेश की सोयाबीन पट्टी हुई सूनी
मानसून की बारिश से पूरा देश भले ही बल्ले-बल्ले कर रहा हो, लेकिन खाद्यान्न उत्पादन में अहम भूमिका निभाने वाले पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश के बड़े हिस्से में सूखे जैसी हालत पैदा हो गई है। बिहार में ४३ फीसदी कम बारिश हुई, लेकिन चुनावी साल होने के चलते वहां के राजनीतिक दल अपनी-अपनी रोटी सेंक रहे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश प्रधानमंत्री से पांच हजार करोड़ मांग गये है। राजनीतिक हासिये पर पहुंच चुके लोजपा नेता राम विलास पासवान राज्यसभा में केंद्र से बिहार के लिे १५ हजार करोड़ रुपये मांग रहे है। भला हो पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों का, जहां के ज्यादातर जिलों में ६५ फीसदी तक कम बारिश हुई है। धान की रोपाई तो दूर, खेत में पुनपुना रही जोन्हरी (मक्का) भी मुरझाये पड़ी है। लेकिन उनकी राज्य सरकार को उनके बारे में सोचने की फुर्सत ही नहीं है। संसद में सूखे रेवडि़यों के लिए मारा मारी मची है। केंद्र सरकार की कांग्रेस भी चुटकी लेने से बाज नहीं आई। कहा वहां से कोई मांग ही नहीं आ रही है। भला एसे में केंद्र क्या कर सकता है।
मौसम विभाग ने शुक्रवार को साफ कर दिया कि इन इलाकों में बारिश औसत से कम रहेगी। यहां बादल बरसेंगे भी तो सितंबर में। यानी तब तक खरीफ खेती की संभावनाएं खत्म हो चुकी होंगी।
मौसम विभाग ने अगस्त व सितंबर माह में होने वाली बारिश के पूर्वानुमान के बारे में बताया कि बंगाल की खाड़ी में बनने वाला कम दबाव का क्षेत्र पूरी तरह विकसित होकर आगे नहीं बढ़ पा रहा है। इसी वजह से पूरब से आने वाली मानसूनी हवाएं पूर्वी राज्यों में बारिश नहीं ला पा रही हैं। यही वजह है कि इस पूरे इलाके में अभी भी 24 फीसदी कम बारिश हुई है। जबकि बीते सप्ताह झारखंड में 46 फीसदी, बिहार में 29 फीसदी और पूर्वी उत्तर प्रदेश में 32 फीसदी कम बारिश हुई। जबकि पश्चिमी मध्य में 26 फीसदी और पूर्वी मध्य प्रदेश में 18 फीसदी कम बारिश रिकॉर्ड की गई। इससे धान की रोपाई बुरी तरह प्रभावित हुई है। मध्य प्रदेश में सोयाबीन की बुवाई नहीं हो पाई है।
इसके चलते धान की रोपाई में भारी कमी दर्ज की गई है। कृषि मंत्रालय पिछले साल के सूखे में हुई धान की रोपाई रकबा से तुलना कर अपनी पीठ ठोंक रहा है। जबकि वर्ष 2008 में इसी अवधि में हुई रोपाई से इस बार धान की खेती बहुत पीछे चल रही है। धान रोपाई का ताजा आंकड़ा 212 लाख हेक्टेयर है, जबकि वर्ष 2008 में यह आंकड़ा 231 लाख हेक्टेयर पहुंच गया है। मौसम विज्ञानियों ने कहा कि मानसून की विदाई के वक्त सितंबर के आखिर तक भी इस पूरे इलाके में बारिश 10 फीसदी कम रहेगी। बिहार और झारखंड में राजनीतिक दलों ने राज्य को सूखाग्रस्त घोषित करने में बाजी मार ली है। पिछड़ा तो पूर्वी उत्तर प्रदेश।
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