Monday, March 15, 2010

भंडार भरे हैं पर पेट खाली

सरकारी भंडारों में निर्धारित मानक से तीन गुना ज्यादा अनाज, पिछले साल से बेहतर चीनी सत्र और सस्ते खाद्य तेलों की पर्याप्त उपलब्धता!... इसके बाद भी महंगाई मार रही है। यानी भंडार भरे हैं पर पेट खाली हैं। गरीबों की रसोई में आटे का डिब्बा खाली है। सरकारी गोदामों में अनाज रखने की जगह नहीं है। सरकारी खाद्य प्रबंधन पूरी तरह फेल है। महंगाई पर चर्चा का जवाब देते हुए संसद में चीनी की कीमतों में व़ृद्धि के बहाने प्रधानमंत्री ने इसे असफलता को स्वीकार भी कर लिया। उचित समय पर सही निर्णय लेने में खाद्य मंत्रालय से भी लगातार चूक हुई है। यही कारण है कि भंडारों में ठसाठस भरे अनाज के बावजूद वह महंगाई रोकने में इसका इस्तेमाल नहीं कर सका है। खुले बाजार में हस्तक्षेप करने की सरकारी नीतियों पर समय पर अमल नहीं करने से हालात और बिगड़ गये हैं। चीनी मिलों को कोटा जारी करने और उस पर सख्ती बरतने में भी चूक हुई है। कोटा इस्तेमाल को लेकर जब चीनी मिलों पर कड़ाई करने का समय था तब सरकार चीनी की कीमतों में स्वभाविक तौर पर कमी होने का इंतजार करती रही।अनाज भंडार इस कदर भरे हैं कि रबी का अनाज रखने की चुनौती है। लेकिन इन भरे गोदामों से महंगाई कतई नहीं डरती। एक जनवरी 2010 को सरकारी भंडारों में गेहूं 230 लाख टन था, जो निर्धारित बफर मानक 82 लाख टन से लगभग तीन गुना अधिक है। इसी तरह चावल 242 लाख टन था, जो बफर मानक 118 लाख टन से बहुत अधिक है। चीनी के इतने भड़कने की कोई वजह नहीं है। पेराई सत्र शुरु होते समय चीनी का कैरीओवर स्टॉक 24 लाख टन था। चालू पेराई सत्र में 160 लाख टन से अधिक चीनी उत्पादन का अनुमान है। घरेलू खपत के लिए 230 लाख टन चीनी चाहिए। कमी को पूरा करने के लिए 50 लाख टन चीनी का आयात सौदा पक्का हो चुका है। दूसरे शब्दों में कहें चालू वर्ष के लिए चीनी का पर्याप्त स्टॉक देश में है, फिर भी इसकी कीमतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं।अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मंदी के चलते घरेलू बाजार में भी खाद्य तेलों के मूल्य लगभग स्थिर है। आयातित खाद्य तेल का स्टॉक भी पिछले साल के 65 लाख टन के मुकाबले 85 लाख टन तक पहुंच चुका है। यानी जिंस बाजार में दाल को छोड़कर किसी और खाद्यान्न की उपलब्धता कम नहीं है। खाद्य मंत्रालय के पास इस सवाल का जवाब नहीं है कि आखिर इतने मजबूत आंकड़ों के बावजूद महंगाई बढ़ने की वजह क्या थी?---------

4 comments:

kshama said...

Aapke saath sahmat hun...yahee sawalat mere bhi manme ubharte hain!

sp singh said...

आपकी तात्कालिक प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद। विस्तृत प्रतिक्रिय का इंतजार रहेगा।

सम्वेदना के स्वर said...

sharad joshi ji ki baat quote karun to HAMARE DESH MEIN SAB KUCHH HAI MAGAR WO NAHIN HAI JISKE LIYE WO HAI..
nal hai par pani nahin aata, school hain par master nadarad, master hain par chhtra gairhazir, kanoon hai par enforce nahin ho pata, nyaay hai par badi der se milta hai..aur ek lambi fehrist..
aise mein BHANDAAR BHARE HAIN AUR PET KHAALI to koi tajjub nahin ..janata bhooki hai par WO so rahe hain..agar aapne adhik shor machaya to neend mein khalal padega..

http://samvedanakeswar.blogspot.com

Chandan Kumar Jha said...

जब सरकार निक्कमी हो जाय तो जनता को परेशानी झेलनी हीं परती है । बढ़िया लेख ।

कृप्या वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा दे टिप्पणी करने में सुविधा होती है । आभार

गुलमोहर का फूल

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