पूर्वांचल का नाम आते ही जेहन में अपराध, अपराधी, गोली, बंदूक, राइफल, आतंक और आतंकी उभरने लगते हैं। संजरपुर, सैदपुर, आजमगढ़, गाजीपुर व मऊ दिखने लगता है। न बनारस का विद्वत मंडल न मऊ की अद्भुत रेशमी साडि़यों के ताने-बाने और न जौनपुर की शान सुनाई पड़ती है। जिला जवांर, गांव-गिरांव और कस्बे व चट्टियों के मोड़ और चौराहों पर चौतरफा अपराध व अपराधियों की चर्चा आम है। यानी, लोगों में चर्चा का विषय यही सब है। वजह जो भी हो, लेकिन सबसे बड़ी वजह है बेरोजगारी, गरीबी और बदलते परिवेश वाली शिक्षा का अभाव। कहने को कहा जाता है, सघन शिक्षालयों की भरमार है। बनारस में तीन विश्वविद्यालय और न जाने कितने महाविद्यालय हैं। पड़ोस के जौनपुर में पूर्वांचल विश्वविद्यालय, कोई २०० किमी दूर गोरखपुर विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय। इनसे जुड़े सैकड़ों की संख्या में महाविद्यालय। सब कुछ तो है। इससे इनकार कौन कर सकता है। रोजी-रोटी की जरूरत वाली शिक्षा का अभाव है। आगे बढ़ने के प्रयास अभी भी शुरु नहीं हो सका है। कुछ निजी संस्थान खुले जरूर लेकिन गुणवत्ता के स्तर पर बहुत पीछे हैं। यानी शिक्षा के स्तर पर आगे रहने वाला पूर्वांचल पिछड़ रहा है। ध्यान किसी का आखिर इस ओर क्यों नहीं है। समाज को आगे लेने जाने वाला दूसरा वर्ग राजनीतिकों का है जो गर्त में समाता जा रहा है। ग्राम प्रधानी, ब्लॉक प्रमुखी, जिला परिषदी ही नहीं विधा्यक और सांसद भी अपराधी चुने जाने लगे हैं। बड़े शान से लोगों में उन्हीं चर्चा भी होती है। अफजल, मुख्तार, उमानाथ, रमानाथ, धनंजय, हरिशंकर, शाही और न जाने कितनों के नाम हैं, जिनके नामों को चौराहों की दुकानों पर महिमामंडित किया जाता है। युवा वर्ग उन्हीं से प्रेरणा भी लेता है। बस हो गया कल्याण? गिरावट का अंदाजा लगाया जा सकता है। सभी विकास के कार्यों में परसेंट यानी हिस्सा मांगते हैं। यही उनकी हनक भी है। गिरावट इस स्तर तक पहुंच गई है, जो लोगों में घर करते जा रही है। रोकने वाला कोई नहीं है। राजनीति के मार्फत जिन्हें नेतृत्व करना था, उस पर इन अपराधियों का कब्जा है। कबीर, गौतम बुद़ध और गुरु गोरक्ष के इस पूर्वांचल में अब दुख ही दुख है। इसके माथे पर कहीं संजरपुर है तो कहीं गरीबी, बेकारी और भुखमरी का कलंक। पूर्वांचल की उपेक्षा पर यहां के लोग भी शायद ही सोचते हैं। और सोचते हैं तो फिर मन मसोस कर उसी भीड़ का हिस्सा बन जातें हैं तो इन अपराधियों का रोज सुबह-शाम महिमामंडित करती रहती है। मैं आपको पूर्वजों की गौरवगाथा सुनाकर अपना ज्ञान नहीं परोसना चाहता, जिससे शायद सभी परिचित हैं। ब्यूरोक्रेशी में अपनी मजबूत पैठ के बूते हम पूरे देश में जाने जाते थे। अपने ज्ञान-विज्ञान के लिए। लेकिन अब तो हालात बिगड़े नहीं बल्कि बदतर हो गये हैं। गरीबों की एक बड़ी फौज रोजाना ट्रेन में लदकर दिल्ली, मुम्बई, कलकत्ता अथवा हरियाणा के शहरों की ओर रुख कर देते हैं। लेकिन वहां भी दुख ही उठाते हैं। लेकिन यह दुख तब और बढ जाता है जब परदेस गये युवा एड़स लेकर लौटते हैं। उनकी ही नहीं बल्कि युवा पत्नियों की जवानी तिल-तिल कर मरने लगती है।यह सब क्यों हुआ। सवालों का ढेर आज बस पूर्वांचल के दुखों को और बढ़ा रहा है, जिसका जवाब भला कौन देगा? वो नेता जो पूर्वांचल के अलग राज्य की मांग रख रहे हैं? झूठ-फरेब और झूठ.....। झांस में तो आ चुका है पूर्वांचल। अपराधियों के, धूर्त और मूर्ख राजनीतिकों के। इससे जाल बट्टे से निकलने में भी बड़े पेंच हैं।
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2 comments:
नहीं बिल्कुल सहमत नहीं हूं जौनपुर के इस महिमामंडन से। गाजीपुर में सिर्फ बदमाश बसते हैं ? यह किसने कह दिया आपसे। मऊ के अपराधियों को दरकिनार कर सिर्फ रेशमी साड़ियां ही क्यों याद आईँ? अपराधियों की जंग में वह जौनपुर भी रक्तरंजित है जिसमें आप शान खोज रहे हैं। राजनीति में ताकत की घुसपैठ ने सभी को बेहाल कर दिया है। अपराध के आंकड़े भी जौनपुर को वैसा शांतिपूर्ण नहीं बताते जैसा आप बता रहे हैं। लिखना ही था तो पूर्वांचल में राजनीति के अपराधीकरण पर लिखते। अपराध के मायने में गाजीपुर, बनारस, जौनपुर, आजमगढ़, मऊ, बलिया, देवरिया, मिर्जापुर कोई भी अछूता नहीं है। दागदार है दामन पूर्वांचल का।
मान्धाता जी। प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद। लेकिन हाथी की पूंछ को हाथी मान लेना ठीक नहीं है। पूरी पोस्ट पढ़ी होती तो अच्छा होता। गाजीपुर मे सिर्फ बदमाश बसते हैं, कहीं नहीं लिखा है। लेकिन पूरा पूर्वांचल इस असाध्य रोग से ग्रसित है, जिसे आप नकार नहीं सकते। जौनपुर को महिमामंडित करने का कोई प्रयास नहीं था, जौनपुर अथवा गाजीपुर जैसा है, उससे सभी परिचित हैं। चिंता इस बात की होनी चाहिए कि पूर्वांचल का भला कैसे हो। लेकिन इससे पहले इसके बिगड़े हालात को परखना जरूरी है। पोस्ट में धनंजय नाम के प्राणी का उल्लेख किया गया है, जो अपराध की दुनिया से ही संसद की देहरी तक पहुंच चुका है। वह जौनपुर का ही सांसद है। विश्लेषण गलत तरीके से नहीं होना चाहिए। पूर्वांचल के दागदार दामन को साफ करने के तरीके हो सके तो ढूढ़ने की कोशिश करनी चाहिए। यह पोस्ट पूर्वांचल के बिगड़ते माहौल पर एक चिंताभर नहीं है, बल्कि आप जैसे सुधी ब्लॉगरों से चर्चा को आगे बढ़ाने की अपेक्षा भी है। आपसे सहमत हैं कि जौनपुर भी उतना ही रक्तरंजित है, जितने पूर्वांचल के दूसरे जिले। लगता है आपका गाजीपुर से सीधा जु़ड़ाव है। शायद इसीलिए बात कुछ ज्यादा ही लग गई। भई रोग लग ही गया तो उसके आपरेशन कर ठीक करने के बारे में सोचते न कि रोगी कहने पर तुनके के।
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