Sunday, March 14, 2010

जो कुछ देखा पार्लियामेंट में..हैरानी, हैरानी और बस हैरानी

जो कुछ देखा पार्लियामेंट में। सिर्फ हैरानी, हैरानी और हैरानी ही हुई। शायद इसके पहले किसी ने नहीं देखा होगा। राज्यसभा का संसदीय इतिहास तो यही बता रहा है। मैं अंदर ही था, अपने संस्थान के लिए कवरेज पर था। कोई घटना चूक न जाये। इसलिए नजरें चौतरफा चौकस थीं। भरे बोरे के माफिक मार्शल माननीयों (सांसद) को उठाकर बाहर ले जा रहे थे। वो भी कम नहीं थे। चिल्लपों मचा ही रहे थे। धींगामुश्ती अलग से। समाजवादी पार्टी के एक सांसद कमाल अख्तर तो हिंसक भी हो उठे। शोर शराबा कर रहे पांच सांसदों को जब मार्शल बाहर तो उठा ले गये, लेकिन अख्तर विपक्ष की पहली कतार वाली बेंच में खड़े कुछ वरिष्ठ सांसदों के बीच घुस गये। निकलने का नाम ही न लें। राज्यसभा की पूरी वेल मार्शलों से भरी हुई थी। चारो ओर वही दिख रहे थे। चिरौरी-मिन्नत के बाद भी अख्तर बाहर नहीं आ रहे थे। इसी बीच उन्होंने पीने के लिए पानी मांगा। सीसे के गिलास में जब पानी दिया गया तो पीने के तत्काल बाद उन्होंने आव देखा न ताव गिलास को बेंच पर पटक कर तड़ाक से फोड़ दिया। असहाय खड़े मार्शल अब आक्रामक हो गये। फिर तो वे सांसद महोदय को एेसे पकड़े कि पूछो ना। जो जहां पाया, वहीं से उठा लिया, सिर के ऊपर उठाये, राम राम सत्य कर बाहर फेंक आये। भीतर खड़े माननीय तब तक तो चुप थे। अख्तर के बाहर जाने के बाद चिल्लाने लगे कि मार्शलों की क्या जरूरत। अब इन्हें बाहर करो। लेकिन उनसे कोई यह पूछने वाला नहीं था कि जिन सांसदों ने एसी हरकत की, उनके इस अमर्यादित आचरण के लिए किसी ने चूं तक नहीं कसी। सदन की प्रेस गैलरी में कुछ पत्रकार बंधुओं को भी मार्शलों की इस कार्रवाई पर सख्त आपत्ति थी।
उसके बाद अब क्या हो रहा है। सुनिये, अंदर-अंदर मेल मुलाकात, मान-मनौव्वल, माफी-नामाफी और न जाने कौन-कौन सी सियासी चालें चली जा रही हैं। उपसभापति भी हैरान होंगे क्योंकि गैर राजनीतिक होने से उन्हें भी भारी सांसत सहनी पड़ रही होगी। राजनीतिक दांव पेच की बात है। देखो भला। नेता विपक्ष यानी भाजपा नेता अरुण जेटली ने उनके इस कृत्य के लिए सदन में खेद ही नहीं व्यक्त किया, बल्कि माफी भी मांगी। प्रधानमंत्री को नागवार गुजरा, उन्होंने भी इसमें देऱ लगाई। लेकिन भइया उन्होंने माफी मांगना तो दूर खेद व्यक्त करना भी मुनासिब नहीं समझा, जो इसके लिए शत प्रतिशत जिम्मेदार थे। इसके विपरी अब उन्हें अपने निलंबन से बहाली चाहिए, जो शायद हो भी जाये। सियासी दांव के इस खेल में वहीं होगा जो राजनीतिक ऊंट कहेगा, यानी जिस करवट बैठेगा। राजनीतिकों के लिए न नियम है और न ही कानूनी बंदिश। भला कोई इस तरह सदन में गिलास तोड़ खुदकशी अथवा दूसरे पर हमला करने की कोशिश करे तो क्या कार्रवाई होगी। सभी को पता है। लेकिन ये माननीय सदन के भीतर संप्रभु हैं, उनके उपर न पुलिस की चलेगी और न ही किसी कानून का अंकुश है। जल्दी ही वे बाइज्ज बहाल भी हो सकते हैं। आप भी टीवी पर उन्हें लाइव देख सकते हैं।

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