खपरैल वाली झोपड़ी सरकार के लिए 'पक्का' मकान
ईंट की दीवारों से बना आशियाना हुआ 'कच्चा' मकान
उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के गरीबों का नुकसान, इंदिरा आवास योजना के लाभ से वंचित
कबीरदास की उलटबांसियां पढ़ते थे तो लगता है बेवजह का मजाक बक रखा है कबीर ने। लेकिन आंखों से देखा तो टकटकी ही लगी रही, वह भी भारत सरकार की। कागज पर जो लिख उठा, उसे पत्थर की लकीर मानिये। पिछले एक दशक पहले मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाकों की झोपडि़यों को सरकारी मुलाजिमों ने पक्का मकान लिख रखा है। इसे ठीक कराने वहां के मुख्यमंत्री ने न जाने कितनी बार दिल्ली का चक्कर लगा लिया। लेकिन ग्रामीण विकास मंत्रालय वालों को कहना है कि इसे तो योजना आयोग ठीक करेगा, उससे पूछा तो जवाब टका सा। भाई यह गलती है तो इस पंचवर्षीय योजना में तो ठीक नहीं होती। इंतजार करिये १२वीं योजना की। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री ने भी चिट्ठियां लिख रखा है। आप भी उनकी कारस्तानी के कुछ नमूने देखिए....
कच्ची दीवार और खपरैल को आप क्या मानेंगे? कच्चा या पक्का। सरकार तो इसे 'पक्का मकान' मानती है जबकि ईंट की दीवारों से बने मकान को 'कच्चा'। उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश को गरीबों को इसी उलटबांसी का नुकसान उठाना पड़ा है। इंदिरा आवास योजना में सबसे वह गरीब बाहर हो गई जिन्होंने अपनी कच्ची मड़ैया को खपरैल से ढकने की 'गलती' की थी।
देश के इन दोनों बड़े सूबों के गरीब इंदिरा आवास योजना के लाभ का लेने में केरल और बिहार जैसे राज्यों से भी पिछड़ गये हैं। जबकि देश के कुछ दूसरे राज्यों के लोग समझदार निकले। उन्होंने अपने ईंट व सीमेंट से बने मकानों की छत पर पुआल व पशु चारा रख कर उसे कच्चे मकान की श्रेणी में दर्ज करा लिया। मकानों के वर्गीकरण में घालमेल का यह नतीजा सालों बाद समझ में आया, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के अनुसूचित जनजाति बहुल ब्लॉकों में 99 फीसदी मकान कच्ची मिट्टी अथवा घासफूस के बने हैं लेकिन ज्यादातर झोपडि़यों को खपरैल से ढका होने के कारण पक्का मान लिया गया है। ऐसे मकान वाले गरीबों को इंदिरा आवास योजना का लाभ नहीं मिल पाया है। मध्य प्रदेश ने पिछले साल 1.14 लाख बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया तो उत्तर प्रदेश ने 4.93 लाख इंदिरा आवास बनाने का। इसके मुकाबले बिहार जैसे राज्य में गरीबों के लिए मकानों का लक्ष्य 10.98 लाख रहा।
इंदिरा आवास योजना में उन्हीं गरीबों को मकान बनाने के लिए सरकारी मदद मिलती है, जिनके मकान कच्चे हों अथवा वे बेघर हों। इसका निर्धारण भी जनगणना के आंकड़ों और योजना आयोग सर्वेक्षण से होता है। कच्चे-पक्के मकानों की इस परिभाषा के चलते बड़े राज्यों के गरीब सस्ती आवास योजनाओं का लाभ लेने में लगातार पिछड़ रहे हैं।
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2 comments:
बहुत अछ्छा बलौग लगा। ज़ारी रखिए।
धन्यवाद।
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