Sunday, April 11, 2010

मुट्ठीभर चारे के भरोसे श्वेतक्रांति का सपना

सरकार ने सचमुच में 'ऊंट के मुंह में जीरा' ही डाला है। पशुओं के चारा विकसा के लिए उसने प्रति पशु सिर्फ सवा दो रुपये का प्रावधान किया है। इसी मुट्ठीभर चारे से वह श्वेतक्रांति का स्वप्न देख रही है। जबकि दूध के मूल्य ४५ से ५० रुपये प्रति किलो पहुंच गये है। हालात यही रहे तो नौनिहालों के मुंह का दूध भी छिन जायेगा। बजट में चारा विकास, उन्नतशील बीज, चारागाहों को बचाने और उनकेरखरखाव के लिए 47 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। यह राशि देश के कुल 20 करोड़ से अधिक पशुओं के लिए होगी।
बजट आवंटन को पशुओं की संख्या के हिसाब से देखें तो प्रत्येक पशु के हिस्से सालाना सवा दो रुपये का खर्च आता है। यह आवंटन चारा विकास योजना के लिए किया गया है। डेयरी विकास से जुड़े लोगों का कहना है कि सरकार एक ओर तो इस क्षेत्र में छह प्रतिशत की विकास दर का लक्ष्य तय कर रही है, वहीं दूसरी ओर पशुओं को भरपेट चारे की व्यवस्था तक नहीं की गई है।
पशुओं के लिए घरेलू चारे की पैदावार जरूरत के मुकाबले 40 फीसदी ही होती है। हरा चारा तो दूर, पशुओं का पेट भरने को सूखा चारा भी उपलब्ध नहीं है। चारे की मांग व आपूर्ति में भारी असंतुलन है। एक आंकड़े के मुताबिक दुधारू पशुओं के लिए हरे चारे की सालाना मांग 106 करोड़ टन है, जबकि आपूर्ति केवल 40 करोड़ टन ही है। सूखे चारे की 60 करोड़ टन की मांग के मुकाबले आपूर्ति 45 करोड़ टन हो पाती है। हरा चारे में 63 फीसदी और सूखा चारे में 24 फीसदी की कमी बनी हुई है। मांग आपूर्ति का यह अंतर सालों साल बढ़ रहा है।
महंगाई के इस दौर में पशुओं के लिए मोटे अनाज, चूनी और खल के मूल्य भी बहुत बढ़ गये हैं। दुधारू पशुओं के लिए पौष्टिक तत्वों की भारी कमी है। ऐसी सूरत में दूध की उत्पादकता पर विपरीत असर पड़ रहा है। यही वजह है कि दूध की मांग के मुकाबले आपूर्ति नहीं बढ़ पा रही है, जिससे कीमतें पिछले एक साल में सात रुपये से 10 से १५ रुपये प्रति किलो तक बढ़ी हैं। देश में आधे से अधिक पशु भुखमरी के शिकार हैं।
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2 comments:

Unknown said...

वर्ड वेरिफिकेशन का शर्त को हटा लें तो आसानी रहेगी। श्वेतक्रांति पर यानी दूध की उपलब्धता पर आपकी रिपोर्ट काबिले तारीफ लगी।

sp singh said...

please comment in details
thnx

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