हड्डियों के कमजोर होने का खतरा, दांत पीले पड़कर गिरने का खतरा और ऐसे ही न जाने कितने और बीमारियों का अंदेशा। चौंकिये नहीं, हम धूम्रपान या नशीले पदार्थो की बात नहीं कर रहे। बल्कि यह मसला उस चावल का है जिसमें आर्सेनिक यानी संखिया के अंश मिले हैं। पूर्वी राज्यों के मुख्य भोजन में शामिल बोरो चावल आर्सेनिक की मौजूदगी के कारण खतरनाक हो चला है। यह जोखिम अन्य चावलों पर लागू नहीं होता है। सरकार ने यह चेतावनी उन राज्यों को दे दी है, जहां बोरो धान की सिंचाई आर्सेनिक युक्त भूजल से होती है।
पश्चिम बंगाल, असम, उड़ीसा, बिहार व पूर्वी क्षेत्रों में बोरो धान की खेती खरीफ की जगह रबी सीजन में होती है। पश्चिम बंगाल के कुल धान उत्पादन में बोरो धान की हिस्सेदारी 40 फीसदी है, जबकि असम में 35 फीसदी और बिहार में 20 फीसदी। असिंचित क्षेत्रों में नलकूप की सिंचाई के भरोसे पैदा होने वाले इस धान में आर्सेनिक की मात्रा खतरनाक स्तर से अधिक पाई गई है। इसका कुप्रभाव भी वहां देखने को मिल रहा है। इस बारे में पश्चिम बंगाल के कृषि विभाग के प्रमुख सचिव संजीव अरोड़ा ने बताया कि बोरो धान की खेती नदियों की घाटियों में होती है।
अरोड़ा का कहना है कि दरअसल खरीफ सीजन में धान की खेती मानसूनी बारिश से तैयार हो जाती है, लेकिन रबी सीजन में बोरो धान के लिए सिंचाई की सख्त जरूरत होती है। देश के पूर्वी राज्यों में गहरे नलकूप नहीं हैं, इसकी जगह कम गहराई से खींचे गये पानी में आर्सेनिक जैसा खतरनाक तत्व घुला हुआ है। उसकी सिंचाई से तैयार धान में भी आर्सेनिक पहुंचता है। उन्होंने बताया कि पश्चिम बंगाल के 75 विकास खंडों में बोरो धान की खेती होती है। सरकार ने इसे चरणबद्ध तरीके से बंद करने की योजना तैयार की है।
असम के ब्रह्मपुत्र नदी के इलाके में बोरो धान की जबर्दस्त खेती होती है, लेकिन नदियों के किनारे लगे नलकूपों से आर्सेनिक युक्त पानी से पूरी फसल दूषित हो गई है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इस सिंचाई से आलू की खेती पर आर्सेनिक का कोई असर नहीं है। यह समस्या सिर्फ बोरो धान में ही है। बिहार में गंगा व अन्य नदियों के किनारे के आर्सेनिक भूजल वाले इलाके में बोरो खेती अब खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है। बोरो खेती करने के विकल्पों में गहरे नलकूपों की जरूरत होगी, जिसके लिए किसान तैयार नहीं होते हैं। हालांकि केंद्र सरकार इसके लिए पर्याप्त सब्सिडी देने को राजी है।
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2 comments:
चिंतनीय मसला
शेखावत जी। टिप्पणी थोड़ी विस्तार से होती तो अच्छा लगता।
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