Friday, April 22, 2011

बात पते की.....

कांच की बरनी और दो कप
जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी-जल्दी करने की इच्छा होती है। सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं। उस समय ये प्यारी-सी कथा हमें याद आती है।

दर्शन-शास्त्र के एक प्रोफ़ेसर क्लास में आए और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं। उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी (जार) टेबल पर रखी और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची …

उन्होंने छात्रों से पूछा – क्या बरनी पूरी भर गई ?
हाँ … आवाज आई …
फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे-छोटे कंकड़ उसमें भरने शुरू किए। धीरे-धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकड़ उसमें जहां जगह खाली थी, समा गये। फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा – क्या अब बरनी भर गई है। छात्रों ने एक बार फ़िर कहा – हाँ…
अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरू किया। वह रेत भी उस जार में जहां संभव था बैठ गई। अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे …
फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा – क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना?
हाँ, अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा।
प्रोफेसर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें भरी चाय जार में उड़ेल दी। चाय भी बरनी में गई रेत के बीच थोडी़-सी जगह में सोख ली गई।

प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरू किया।
इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो … टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान, परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य और शौक हैं। छोटे कंकड़ मतलब तुम्हारी नौकरी, कार, बडा़ मकान आदि हैं। और रेत का मतलब और भी छोटी-छोटी बेकार सी बातें, मनमुटाव, झगडे़ हैं। अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकड़ो के लिए जगह ही नहीं बचती। या, कंकड़ भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते, रेत जरूर आ सकती थी …

ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है। अगर तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिए अधिक समय नहीं रहेगा।

मन के सुख के लिए क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है। अपने बच्चों के साथ खेलो, बगीचे में पानी डालो, सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ। घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको। मेडिकल चेक-अप करवाओ…

टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो। वही महत्वपूर्ण है। पहले तय करो कि क्या जरूरी है … बाकी सब तो रेत है ..

छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे। अचानक एक ने पूछा – सर, लेकिन आपने यह नहीं बताया कि चाय के दो कप क्या हैं?

प्रोफ़ेसर मुस्कराए। बोले – मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया। इसका उत्तर यह है कि जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे। लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिए।

Thursday, April 14, 2011

खाद्यान्न की बर्बादी पर विस्तृत रिपोर्ट

अप्रैल के पहले सप्ताह से गेहूं की सरकारी खरीद चालू हो गई है। लेकिन गोदामों के अभाव के चलते भंडारण का संकट गहरा गया है। खुले में रखे अनाज सड़ने का मुद्दा पिछले सालों में गंभीर विवादों में रहा है। सरकार गंभीर फजीहत झेल चुकी है। सरकार की खाद्यान्न प्रबंधन नीति को खंगालती एक विस्तृत रिपोर्ट समाचार अभियान के रूप मे तीन किश्तों पेश है। (एसपी सिंह)

निजी व्यापारियों के पौ बारह

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एफसीआई उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड व मध्य प्रदेश में गेहूं खरीद से रहेगी दूर
बेबस किसानों का लाभ उठायेंगी निजी कंपनियां
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दिखाने के लिए भले ही सरकारी खरीद के लंबे चौड़े लक्ष्य तय किये गये हों, लेकिन सरकार इस दिशा में कुछ खास करने नहीं जा रही है। गेहूं की सरकारी खरीद में एफसीआई समेत अन्य सरकारी एजेंसियां ढीला रवैया अपनाएंगी। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड समेत लगभग एक दर्जन राज्यों में एफसीआई गेहूं खरीद से दूर ही रहने वाली है। ये राज्य केंद्रीय पूल वाली खरीद में नहीं आते हैं। गेहूं खरीद में इन राज्यों में निजी व्यापारियों का दबदबा होगा, जिसके आगे किसान बेबस नजर आएंगे।
गेहूं की सरकारी खरीद शुरु होने से पहले ही एफसीआई ने पंजाब और हरियाणा के गोदामों को खाली करने के लिहाज से दूसरे राज्यों में गेहूं व चावल का स्टॉक शिफ्ट करना शुरु कर दिया था। इसे लेकर उन राज्यों ने तीखा विरोध जताना शुरु कर दिया जहां बिना जरूरत के अनाज की आपूर्ति शुरु कर दी गई थी। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारों ने इस बारे में खाद्य मंत्रालय और एफसीआई को पत्र लिखकर ऐसा करने से मना किया है।
भंडारण की समस्या से जूझ रही एफसीआई ने कारण बताए बगैर डिसेंट्रलाइज प्रोक्योरमेंट (डीसीपी) वाले राज्यों में चावल की खरीफ पर रोक लगा दी है। यही वजह है कि चावल की खरीद का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया है। डीसीपी राज्यों में एफसीआई अनाज की सीधी खरीद नहीं करती है। राज्यों की खरीद एजेंसियां एफसीआई के लिए अनाज खरीदती हैं। इस अनाज का उपयोग वहां की सार्वजनिक राशन प्रणाली में किया जाता है, जिससे लागत कम हो जाती है।
निजी व्यापारी व कंपनियों ने इस अहम समस्या को भांप लिया है। इसीलिए उन्होंने खरीद शुरु होने के साथ ही इन 11 राज्यों में अपना तंत्र फैला लिया है। गेहूं का सर्वाधिक उत्पादन करने वाले राज्य उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में कारगिल और आईटीसी जैसी बड़ी कंपनियों ने अपना खरीद केंद्र खोलना शुरु कर दिया है। मंडियों के आढ़तियों को इन कंपनियों ने अपना खरीद एजेंट बना दिया है, जिसके मार्फत ये खरीद करेंगे।
पुराने अनाज के भारी स्टॉक की वजह से गोदामों की कमी है। इसके मद्देनजर खरीद एजेंसियां गेहूं खरीद की गति धीमी ही रखेंगी। ताकि किसानों की ओर से विरोध के स्वर न उठें। इस बार निजी कंपनियों पर गेहूं खरीद के लिए कोई रोक नहीं है।
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गोदाम नहीं बनवा पाई सरकार

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गोदामों की भारी किल्लत से आखिर गेहूं का भंडारण होगा कहां?
केंद्र ने फिर अलापा 1.50 करोड़ टन अतिरिक्त क्षमता बढ़ाने का राग
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देश की खाद्यान्न सुरक्षा के लिए सरकार के पास न गोदाम हैं और न ही भंडारण क्षमता बढ़ाने की कोई पुख्ता योजना है। भंडारण की किल्लत से एफसीआई मुश्किलों का सामना कर रही है। हर साल खुले में रखा करोड़ों का अनाज सड़ रहा है। इसके लिए सरकार अदालत की फटकार से लेकर संसद में फजीहत झेल चुकी है। लेकिन पिछले दो सालों से सरकार भंडारण क्षमता में 1.50 करोड़ टन की वृद्धि का राग अलाप रही है। कई दौर के टेंडर के बावजूद अभी तक किसी प्रस्ताव को मंजूरी नहीं मिल पाई है।
प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक के अमल के साथ खाद्यान्न की जितनी जरूरत होगी, देश में उतना अनाज रखने का बंदोबस्त नहीं है। भंडारण क्षमता के इस अंतर को पाटने के लिए सरकार की ओर से कोशिशें जरूर हुईं, लेकिन आधे अधूरे मन से। निजी क्षेत्रों के प्रस्ताव नियम-कानून के मकडज़ाल के चलते सरकारी दफ्तरों में धूल फांक रहे हैं। खाद्य मंत्रालय की तरफ से दो चरणों में टेंडर मांगा गया, जिसमें एक सौ से अधिक निवेशकों ने हिस्सा लिया। लेकिन किसी परियोजना प्रस्ताव को हरी झंडी नहीं मिल पाई है।
एफसीआई पंजाब और हरियाणा में ही सबसे अधिक अनाज की खरीद करती है। उसके 80 फीसदी गोदाम भी इन्हीं राज्यों में हैं। यहीं से पूरे देश के लिए अनाज भेजा जाता है। लेकिन नई व्यवस्था में सरकार ने गोदाम बनाने के लिए उन राज्यों को भी प्राथमिकता दी है, जहां अनाज की ज्यादा जरुरत है। ग्र्रामीण गोदामों का विचार भी आया है। लेकिन इन्हें अमली जामा अभी तक नहीं पहनाया जा सका है। इन्हीं मुश्किलों से गुजर रही सरकार की चिंताएं कम होने का नाम नहीं ले रही है।
भंडारण क्षमता बढ़ाने की दिशा में आ रही मुश्किलों के समाधान के लिए अधिकार प्राप्त मंत्री समूह का गठन भी किया गया है। केंद्रीय मंत्री शरद पवार ने भंडारण क्षेत्र के निवेशकों के साथ बैठक कर समस्या समाधान की कोशिश शुरु की। इसके तहत नियमों को सरल बनाते हुए गोदाम बनाने वाली निजी निवेशकों को पहले सात सालों की निश्चित अवधि तक भंडारण की गारंटी का प्रस्ताव दिया गया। लेकिन अब इसे बढ़ाकर 10 साल कर दिया गया है।
नियमों को सरल बनाने का नतीजा यह हुआ कि गोदाम निर्माण के प्रस्तावों की ढेर लग गई। एफसीआई के उतावले प्रबंधन ने इन प्रस्तावों पर विचार करने का जिम्मा राज्य एजेंसियों और सेंट्रल वेयर हाऊसिंग कॉरपोरेशन (सीडब्लूसी) को सौंप दिया है। इन्हें स्थानीय स्तर पर नोडल एजेंसी नियुक्त कर दिया गया। लेकिन संतोषजनक प्रगति नहीं हो सकी है। सीडब्लूसी ने तो पिछले सालों में खुद की भंडारण की क्षमता में वृद्धि कर ली है। इसी तरह रेलवे के साथ मिलकर उसने सेंट्रल रेलवे साइड वेयर हाऊसिंग कंपनी स्थापित की है। लेकिन निजी निवेशकों के लिए चलाई गई योजना सिरे नहीं चढ़ पा रही है। जबकि संसद में सरकार ने फिर दो सालों में डेढ़ सौ लाख टन भंडारण क्षमता बना लेने का भरोसा दिया है।
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बर्बादी खरीदने की तैयारी

गेहूं की सरकारी खरीद और इसकी बर्बादी की तैयारी कर ली गई है। पहले से ही इफरात पुराने अनाज से भरे गोदाम एफसीआई की सांसत बढ़ाने वाले हैं। गेहूं की नई फसल के भंडारण के लिए गोदामों की भारी कमी है। रबी फसलों की बंपर पैदावार को देखकर खुश होने की जगह सरकारी एजेंसी एफसीआई के होश उड़ गये हैं। सुप्रीम कोर्ट से फजीहत झेलने के बावजूद खाद्य मंत्रालय ने पिछले दो सालों में मुट्ठीभर अनाज भंडारण की क्षमता नहीं विकसित की है। गेहूं की खरीद और भंडारण की बदइंतजामी इस बार सरकार पर भारी पडऩे वाली है।
पिछले दो सालों से खुले आसमान के नीचे रखे लाखों टन अनाज के सडऩे पर भी सरकार की सेहत पर कोई खास असर नहीं पड़ा है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर सरकार को आड़े हाथों लिया है। उसने यहां तक कह दिया कि अगर अनाज रखने की जगह नहीं है तो गरीबों में मुफ्त बांट दिया जाए। भंडारण की कमी के चलते इस बार भी अनाज सड़ेगा।
एफसीआई की खुद की कुल भंडारण क्षमता 1.54 करोड़ टन है। जबकि दूसरी एजेंसियों से वह सालाना आधार पर 1.33 करोड़ टन भंडारण क्षमता किराये पर है। इस तरह उसकी कुल भंडारण क्षमता 2.88 करोड़ टन ही है। इसमें केंद्रीय वेयर हाउसिंग निगम के अलावा राज्य एजेंसियों के गोदाम भी शामिल हैं। बाकी अनाज खुले में अस्थाई गोदामों (कैप) में रखा हुआ है।
वास्तविक तथ्य यह है कि चालू रबी सीजन में खाद्यान्न पैदावार 23.5 करोड़ टन से अधिक होने वाली है। जिसमें अकेले गेहूं की हिस्सेदारी 8.42 करोड़ टन है, जो अब तक की सर्वाधिक है। इसके मद्देनजर केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने चालू खरीद सीजन में 2.62 करोड़ टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य निर्धारित किया है। केंद्रीय एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को गेहूं खरीद और भंडारण के लिए पुख्ता इंतजाम करने को कहा गया है। लेकिन वास्तविक धरातल पर
एफसीआई के पास भंडारण के लिए जितने गोदाम हैं, वे पिछले सालों के गेहंू व चावल से भरे पड़े हैं। लगभग डेढ़ करोड़ टन अनाज अभी भी खुले में बने अस्थाई गोदामों में रखा पड़ा है। सरकारी स्टॉक में कुल 4.58 करोड़ टन पुराना गेहूं और चावल है। इसके खराब होने की आशंका लगातार बढ़ रही है। दरअसल तिरपाल से ढके अस्थाई गोदामों का रखा अनाज हर हाल में सालभर के भीतर खाली करा लिया जाना चाहिए। लेकिन महंगाई से भयाक्रांत खाद्य मंत्रालय अस्थाई गोदामों को खाली कराने से पीछे हट गई। ऐसी दशा में अनाज का फिर सडऩा लगभग तय है।
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