Sunday, March 3, 2013

आंखों देखी, न कि कानों सुनी...


गहरे हरे रंग की साड़ी में लिपटी एक लड़की धड़धड़ाते बेरोकटोक मंच पर चढ़ती गई। तमतमाते चेहरे वाली वह लड़की आव देखा न ताव बेलौस बोलने लगी। (हाथ उठाकर) क्या मैं आपकी बेटी नहीं हूं? अगर हूं तो एक बेटी अपने लोगों से सिर्फ शिकायत करने आयी है। क्या रिश्ता है आपका इस विश्वासघाती (अरुण नेहरू) से, जिसने हमारे परिवार के साथ गद्दारी की। मेरे पिताजी के मंत्रिमंडल में उनके खिलाफ साजिश की। कांग्रेस में रहकर सांप्रदायिक शक्तियों के साथ हाथ मिलाया। जिसने अपने भाई (राजीव गांधी) की पीठ में छुरी मारी है। इसे रायबरेली की सीमा में घुसने कैसे दिया आप लोगों ने? हैरान हूं। लेकिन फैसला तो अब आपको करना है, मुझे जो कहना था कह दिया। फिर मिलूंगी चुनाव बाद। अऱुण नेहरु पर छोड़े उसके शब्दवाण वहां के लोगों के दिलों में धंसा तो धंसता चला गया। दिनभर के चुनावी दौरे में प्रियंका की दो टूक बोली रायबरेली के लोगों के सिर चढ़कर बोली। अधिकार सहित जो शिकायत रायबरेली के लोगों से वह (प्रियंका गांधी) दर्ज करा गई, इससे तो लोगों का मिजाज क्या फिरा, भाजपा प्रत्याशी अरुण नेहरु चुनाव हारे ही नहीं बल्कि जमानत भी जब्त करा बैठे। नतीजा आया तो चौथे नंबर पर पाये गए। यह तब हुआ जब 1996 और 1998 में भाजपा ने कांग्रेस से यह सीट छीन चुकी थी। अमेठी और बेल्लारी संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ रही अपनी मां सोनिया गांधी के चुनाव प्रचार से एक दिन की फुर्सत निकालकर यहां आई थीं, अपने पारिवारिक संबंधी सतीश शर्मा की डूबती चुनावी नैया को पार लगाने। उनके संक्षिप्त बेबाक भाषण लोगों के अंतर्मन को छू गए और सारे पूर्वानुमान और चुनावी समीकरण ध्वस्त हो गए। प्रियंका जब भी जनसमुदाय से मुखातिब होती हैं तो आत्मविश्वास लबरेज होती हैं। अपने सहज जवाब से आलोचकों को भी निरुत्तर करने की सामर्थ्य रखती हैं। यह है प्रियंका गांधी का करिश्माई राजनतिक व्यक्तित्व। मौके पर मौजूद मीडिया के लोगों को लगा कि देश को इंदिरा गांधी का विकल्प मिल गया। लेकिन न जाने क्यों, कांग्रेस ने इस करिश्मा को कब के लिए बचा कर रखा है। उसे हर पांच साल बाद मां सोनिया और भाई राहुल के चुनावी पोस्टर की तरह उतारा जाता है। कहीं धीरे धीरे उनका यह करिश्मा डूब न जाए। कांग्रेस की राजनीतिक रणनीति क्या है?? -------------------

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