भूमि अधिग्रहण अध्यादेश और किसानों के मसले पर 19 अप्रैल को दिल्ली के रामलीला मैदान में होने वाली कांग्रेस रैली को लेकर हरियाणा कांग्रेस अंतर्कलह से जूझ रही है। प्रदेश इकाई हरियाणा कांग्रेस और हुड्डा कांग्रेस में बंट गई है। दोनों के बीच सियासी जंग तेज हो गई है। इसमें एक का नेतृत्व युवा नेता अशोक तंवर कर रहे हैं तो दूसरे की कमान पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के हाथ है। तंवर और हुड्डा ने समर्थकों की ज्यादा से ज्यादा भीड़ जुटाने की तैयारी शुरू कर दी है। लेकिन हुड्डा की गुलाबी पगड़ी ने तंवर के साथ-साथ दिल्ली राज्य इकाई के अध्यक्ष अजय माकन, राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष पॉयलट और यूपी कांग्रेस के पर्टी मुखिया निर्मल खत्री की बेचैनी बढ़ा दी है। हुड्डा अपने समर्थकों को गुलाबी पगड़ी बांधकर ही आने का स्पष्ट निर्देश दिया है। एेसे में दूसरी की भीड़ को अपना बताकर पल्ला झाड़ने वाले नेताओं के इससे होश उड़े हुए हैं। हुड्डा की गुलाबी पगड़ी का खौफ स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। हुड्डा ने अपने एक दशक के कार्यकाल में कांग्रेसी जनसभाओं में गुलाबी पगड़ी से अपनी एक विशेष पहचान बना ली है। हरियाणा कांग्रेस राजनीति में इसे हुड्डा कांग्रेस कहा जाता है। दिल्ली हरियाणा से तीन तरफ से घिरी हुई है। जबकि राजस्थान और यूपी दिल्ली के साथ सटे हुए बड़े राज्य हैं। तंवर, माकन, पायलट व खत्री को गुलाबी पगड़ी बेचैन किए हुए है। गुलाबी पगड़ी से भीड़ का आंकड़ा बढ़ा तो हुड्डा व उसके सांसद पुत्र को श्रेय मिलेगा। हालांकि भीड़ कम हुई तो पिता-पुत्र की हवा बिगड़नी तय है। इसीलिए हुड्डा ने अपने विश्वासपात्रों को ज्यादा से ज्यादा भीड़ जुटाने के निर्देश दिया है। रैली स्थल तक ले जाने और वापसी के लिए वाहन, खाने-पीने के साथ साथ गुलाबी पगडिय़ों की व्यवस्था हुड्डा समर्थक ही करेंगे। राजनीतिक पंडित कांग्रेस की इस प्रस्तावित रैली को कई मायनों में अहम मानते है। लोकसभा चुनाव में दुर्गति के बाद निराशा के भंवर में फंसी कांग्रेस फिर से जनता, विशेषकर देश के करोड़ों किसानों से रूबरू होकर उन्हें कांग्रेस के करीब लाने का स्वपन संजोये हुए है। कांग्रेस को इस रैली से कितना फायदा पहुंचेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा, मगर ज्यों-ज्यों रैली का दिन नजदीक आ रहा है, त्यों-त्यों गुलाबी पगड़ी का खौफ भी बढ़ता जा रहा है। संकेत है कि गुलाबी पगड़ी का दिल्ली में जोर होने पर तंवर बड़े राजनीतिक भंवर में फंस सकते हैं। बाप-पूत (हुड्डा) का यह राजनीतिक दांव सभी पर भारी पड़ सकता है।
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