चीनी, चावल व गेहूं पर उच्चतम कर का लगा रखा है राज्य सरकारों ने
राज्य सरकारें कमरतोड़ महंगाई में भी करों का शिकंजा ढीला करने को तैयार नहंी हैं। प्रमुख खाद्य वस्तुओं पर करों की अधिकतम दरें वसूली जा रही हैं, जो महंगाई की मुश्किलों को और बढ़ा रही हैं। जरुरी खाद्य वस्तुओं पर करों का यह बोझ उत्तर से लेकर सुदूर दक्षिणी राज्यों में लगभग एक समान है। केंद्र ने महंगाई पर नियंत्रण पाने के लिए खाद्य वस्तुओं के आयात पर लगने वाले कर व शुल्कों को शत प्रतिशत माफ कर रखा है। सस्ती दाल व खाद्य तेलों की आपूर्ति के लिए प्रति किलो 10 से 15 रुपये प्रति किलो की सब्सिडी भी राज्यों को दी जा रही है लेकिन महंगाई को लेकर केंद्र पर निशाना साधने वाले राज्यों ने अपने करों में थोड़ी भी मुरव्वत नहीं की है। चीनी, दाल, गेहूं व चावल जैसी आवश्यक वस्तुओं पर इन सरकारों ने करों का चाबुक कस रखा है। यहां तक कि उत्तराखंड और झारखंड जैसे गरीब राज्यों में करों की उच्चतम दर वसूली जा रही है। जिन राज्यों अनाज दूसरे प्रदेशों से मंगाये जाते हैं, वहां तो इन करों के चलते हालात और भी खराब हो गये हैं। कृषि व खाद्य मंत्री शरद पवार के गृह राज्य महाराष्ट्र में जरुरी खाद्य जिंसो पर 7.5 फीसदी तक की दर से टैक्स वसूला जा रहा है। यहां गेहूं व चावल पर चार फीसदी के वैट के साथ अन्य कई तरह के टैक्स लगाये गये हैं। खाद्य वस्तुओं पर मूल्य वर्धित कर के साथ उपकर, खरीद कर, मंडी शुल्क व प्रवेश शुल्क लगाकर महंगाई को और भड़का रही हैं। पिछले कुछ महीनों में चीनी के भाव यूं ही 50 रुपये प्रति किलो पर नहीं पहुंच गये हैं झारखंड, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में चीनी पर 12.5 प्रतिशत का वैट लगा हुआ है। जबकि हरियाणा, राजस्थान, तमिलनाडु चार फीसदी और बिहार में पांच फीसदी की टैक्स वसूली की जाती है। गेहूं, धान व चावल पर भी देश के लगभग सभी राज्यों में टैक्स वसूला जाता है। केंद्र सरकार लगातार राज्यों से महंगाई कम होने तक करों के प्रावधान को निलंबित रखने का आग्रह करता रहा है। लेकिन किसी के कान पर जूं नहीं रेंगी। अनाज पर हरियाणा में 10.50 प्रतिशत, पंजाब में 12.50 प्रतिशत, राजस्थान में 8.10 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 8 प्रतिशत और आंध्र प्रदेश में 11.50 प्रतिशत टैक्स वसूला जाता है। ------------
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