Wednesday, June 13, 2012
'त्रिशंकु कस्बों के बुनियादी विकास के लिए अब नई योजना
न गांव रहे और न कस्बे बन पाए तो उन्हें क्या कहें। हमे तो सूझ नहीं रहा,लेकिन सरकार ने उन्हें त्रिशंकु की संज्ञा से नवाजा है। क्यों कि उन्हें न तो ग्रामीण विकास मंत्रालय से मदद मिलती है और न ही शहरी विकास से।
उनका विकास कैसे हो? सरकार ने अब उन्हें 'त्रिशंकु कस्बों के रूप में चिन्हित किया है। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 'पुरा को संशोधित कर इन त्रिशंकु कस्बों के विकास की योजना तैयार की है। निजी-सरकारी भागीदारी (पीपीपी) के आधार पर इन कस्बों का विकास किया जाएगा। सरकार ने इस मद में 1500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है।
आबादी के हिसाब से पिछले एक दशक में देश में ऐसे त्रिशंकु कस्बों की संख्या बढ़कर तीन गुना हो गई है। इस श्रेणी में ऐसे 'गांवों को रखा गया है, जिनकी आबादी पांच हजार से अधिक है। ऐसे कस्बों जिनके 75 फीसदी पुरुष गैर कृषि रोजगारों में हों और आबादी का घनत्व प्रति किलोमीटर 400 अथवा इससे अधिक हो उन्हें न तो शहरी विकास मंत्रालय से मदद मिल पाती है और न ही ग्रामीण विकास मंत्रालय से।
लिहाजा प्रॉविजन आफ अर्बन एमिनीटीज इन रूरल एरियाज (पुरा) वाली योजना में सरकार ने भारी संशोधन कर दिया गया है। अब इसका लाभ उन गांवों को मिलेगा, जिनका शहरीकरण तो हो गया है, लेकिन जो शहर की श्रेणी में नहीं आ पाए हैं। यहां सरकारी निजी भागीदारी (पीपीपी) के आधार पर योजनाएं संचालित होंगी। सरकार ऐसी प्रत्येक परियोजना पर 40 रुपये का अनुदान देगी बाकी खर्च निजी क्षेत्र को करना होगा।
कस्बे में सड़क, पेयजल, सफाई, स्ट्रीट लाइट और सीवर लाइन बिछाई जाएगी। निजी क्षेत्र अपने निवेश की वसूली शुल्क लगाकर अगले 10 सालों में कर सकेगा। जयराम रमेश ने बताया कि राज्य सरकार की देखरेख में ग्र्राम पंचायत और निजी कंपनी के बीच सभी शर्तों पर समझौता होगा, जिसमें कस्बे का विकास और शुल्क के प्रावधान का जिक्र होगा।
वर्ष 2001 में देश में ऐसे त्रिशंकु कस्बों की संख्या 1362 थी, जो 2011 में बढ़कर 3894 हो गई है। उत्तर प्रदेश में ऐसे कस्बों की संख्या 66 से बढ़कर 267 हो गई है। पश्चिम बंगाल और केरल में इनकी संख्या में सबसे ज्यादा वृद्धि हुई है। ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने कहा 'ऐसे त्रिशंकु कस्बों में बुनियादी ढांचे की हालत बहुत खराब है। इसी समस्या के समाधान के लिए मंत्रालय ने गांवों में शहरों जैसी सुविधा (पुरा) योजना को संशोधित कर दिया। अब यह योजना इन्हीं त्रिशंकु कस्बों के लिए होगी।Ó हैरानी जताते हुए रमेश ने कहा 'इन कस्बों के विकास के लिए इनका कोई माई बाप नहीं है।Ó चालू वित्त वर्ष में केरल के ऐसे दो कस्बों के विकास का कार्य निजी क्षेत्र के सहयोग से शुरू करा दिया गया है।
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