Friday, February 22, 2013

सपना ही रहेगा गांवों को शहर बनाने का सपना


कलाम की 'पुराÓ को आखिरी सलाम करेगी सरकार सपना तो सपना ही होता है। तभी तो पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम का सपना भी साकार होने से पहले ही टूटने की कगार पर खड़ा है। भला कौन बताए ऐसे भलामानुषों को, कि कारपोरेट घराने आखिर क्यों जाएंगे गवांर होने। सपने में देखी योजना में कारपोरेट घरानों को देश के कुछ गांवों को अपनाकर उन्हें शहर जैसी सुविधा मुहैया करानी थी। इसकी एवज में उन्हें अपनी वसूली भी करने की छूट दी गई है। लेकिन जिन गांव वालों की जेब में ही पैसे नहीं हैं, भला उनसे ये कंपनी वाले लेंगे क्या? तभी तो उन्होंने तौबा कर ली। सरकार भी अभूतपूर्व राष्ट्रपति कलाम के सपनों को डिब्बे में बंद करने की तैयारी में है। राजग के शासनकाल में शुरु हुई बेहद महत्त्वाकांक्षी परियोजना 'पुरा' अपने प्रायोगिक दौर में ही दम तोडऩे के करीब है। गांवों को शहरों जैसी सुविधा के सपनों के साथ चालू हुई पुरा पिछले नौ साल से प्रायोगिक तौर पर ही चल रही है। ग्र्रामीण क्षेत्रों के विकास कराने की इस परियोजना में निजी क्षेत्रों के रुचि न दिखाने से अब यह बंद होने के कगार पर है। प्रॉविजन ऑफ अर्बन एमिनिटीज इन रूरल एरिया (पुरा) पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के सपनों के रूप में भी जाना जाता है। कलाम की पहल पर इसकी शुरुआत हुई थी। सरकार पर अब और पायलट प्रोजेक्ट न चलाने के लिए दबाव बढ़ रहा है। संसद की स्थायी समिति ने इस बारे में मंत्रालय को फटकार लगाई है। ग्रामीण विकास मंत्रालय योजना को बंद करने को लेकर गंभीरता से विचार भी कर रहा है। पुरा स्कीम 2003-04 में प्रायोगिक परियोजना के रूप में शुरु होकर 2009-10 तक चली। पिछले अनुभवों के आधार पर सरकार ने 2010 में पुरा में संशोधन कर इसे सरकारी-निजी भागीदारी (पीपीपी) के आधार पर चलाने का फैसला किया। संशोधित योजना में निजी क्षेत्र की भागीदारी को खास अहमियत दी गई। सरकार ने इस योजना के लिए 2010-11 और 2011-12 में डेढ़ सौ करोड़ रुपये आवंटित किये। जबकि इसके पहले के सालों में यह केवल 30 करोड़ रुपये से शुरु की गई थी। लेकिन इन सारे प्रयासों पर तब पानी फिर गया, जब निजी क्षेत्रों ने इसमें हिस्सा लेने में रुचि नहीं दिखाई। संशोधित योजना में ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन स्तर बेहतर बनाने के लिए आजीविका के मौके सृजित करने और शहरी सुविधाएं मुहैया कराने के लिए पीपीपी के जरिये चलाने का प्रावधान किया गया। ग्राम पंचायतों के समूह को विकसित करने के लिए निजी क्षेत्र की कंपनियों को आमंत्रित किया गया। लगभग एक सौ कंपनियों ने आवेदन किया। इनमें से केवल 45 कंपनियों के आवेदन उचित पाए गए। आखिर में मात्र छह कंपनियां ही विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत कर सकीं। हैरानी तब हुई जब अंतर मंत्रालयी समिति ने केवल दो को मंजूरी दी। ये दोनों समूह केरल में थालीकुलम और थिरुरंगाडी पंचायतों को हरी झंडी मिल पाई। योजना के खराब प्रदर्शन से आजिज सरकार इसे किसी भी समय बंद करने का फरमान जारी कर सकती है। --------------------

1 comment:

Dr Mandhata Singh said...

गांवों को शहर नहीं बनाएंगे बल्कि गांवों को खरीदना इनका मकसद है। शहरों को अपना गुलाम बना चुके हैं अब गांवों की स्वायत्तता पर है इनकी नजर ?

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