बहुफसली जमीन के अधिग्रहण में सशर्त छूट देने की संभावना
भूमि अधिग्रहण विधेयक का संशोधित मसौदा जारी
पुराने अधिग्रहण वाली जमीनों को भी मिलेगा नये कानून का लाभ
जनहित की परिभाषित कर एक नया वर्ग जोड़ा गया
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सिंचित और बहुफसली भूमि के अधिग्र्रहण के मुद्दे पर प्रस्तावित विधेयक में सख्त रुख दिखा चुकी सरकार कुछ राज्यों के दबाव में नरम पड़ सकती है। इस बात के स्पष्ट संकेत हैं कि सरकार ऐसी जमीनों के अधिग्र्रहण के लिए सशर्त छूट दे सकती है। विधेयक का संशोधित मसौदा जारी करते हुए केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने जनहित को पुन: परिभाषित कर इसमें एक नया वर्ग जोड़ दिया गया।
विधेयक का मसौदा सितंबर के पहले सप्ताह में केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष पेश किये जाने की संभावना है। ग्र्रामीण विकास मंत्री ने कहा कि उनकी पूरी कोशिश होगी कि प्रस्तावित विधेयक चालू सत्र में ही पेश कर दिया जाए। विधेयक का मसौदा 29 जुलाई को आम लोगों की राय जानने के लिए सार्वजनिक कर दिया गया था। संशोधित मसौदे के अनुसार विधेयक के कानून बन जाने के बाद यह कानून उन विवादित जमीनों पर भी लागू होगा, जिनका अधिग्र्रहण 1894 के कानून के अनुच्छेद 11 के आधार पर हो चुका है। लेकिन भूस्वामियों ने उसका मुआवजा नहीं लिया है। अधिग्रहीत जमीन पर संबंधित पक्ष का कब्जा न होने की दशा में भी नया कानून लागू होगा। किसान संगठनों और राजनीतिक दलों की यही सबसे प्रमुख मांग थी।
बहुफसली जमीन का अधिग्र्रहण किसी हाल में न होने के प्रावधान को लेकर सरकार पशोपेश में है। पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसमें संशोधन करने की अपील की है। हालांकि आज के संशोधित मसौदे में इसे जगह नहीं दी गई है। इस पर ग्र्रामीण विकास मंत्री रमेश ने कहा कि इसमें सशर्त छूट दी जा सकती है। सरकार इन राज्यों की मांग पर विचार कर रही है।
पुनर्वास व पुनसर््थापन पैकेज को संशोधित करते हुए ग्र्रामीण क्षेत्रों के लिए इसकी सीमा जहां 100 एकड़ रहेगी, वहीं शहरी क्षेत्रों के लिए इसकी सीमा घटाकर 50 एकड़ कर दी गई है। अधिग्रहीत जमीन के बदले जमीन देने का प्रावधान जहां लागू होगा, वहां प्रभावित अनुसूचित जन जाति के भूस्वामी को एक एकड़ के मुकाबले पांच एकड़ देने का प्रावधान होगा। यही लाभ अनुसूचित जाति के भूस्वामी को भी मिलेगा।
मुआवजे के साथ प्रभावित जमीन के मालिक को नौकरी देने की अनिवार्यता पूरी न करने पर जहां दो लाख रुपये का मुआवजा देने का प्रावधान था, उसे बढ़ाकर अब पांच लाख रुपये कर दिया गया है। जनहित की परिभाषित करते हुए इसके दायरे को सीमित कर दिया गया है। लेकिन इसमें एक नया वर्ग भी जोड़ दिया गया, जिसमें विद्युत संयंत्र, रेलवे, बंदरगाह और सिंचाई परियोजनाएं प्रमुख हैं। इसे जनहित में शामिल कर लिया गया है। लेकिन ऐसी परियोजनाएं शत प्रतिशत सरकारी होनी चाहिए। निजी भागीदारी वाली परियोजनाएं जनहित के दायरे में नहीं आएंगी।
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