Wednesday, November 28, 2012
सरकार नहीं रोक सकी लाख भूमिहीनों का कारवां
विशेष
ग्वालियर।
सरकार की साख गिरने के बाद अब भूमिहीन खेतिहर मजदूर भी उस पर भरोसा करने को तैयार नहीं हैं। ऐसे ही एक लाख पद यात्रियों को समझाने गए दो केंद्रीय मंत्रियों को ग्वालियर से आज खाली हाथ लौटना पड़ा। वजह सिर्फ यह थी कि चार साल पहले जब इसी दिल्ली में इन्हीं एक लाख लोगों ने जमघट लगाया था, तब प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद का गठन कर दिया गया था। चार साल बीत गए लेकिन परिषद की एक मीटिंग तक नहीं हुई। इसीलिए खफा भूमिहीन आदिवासियों ने फिर दिल्ली की ओर कूच कर दिया है।
सरकार ने आज भी उनके साथ छलावा किया। ग्वालियर जाने वाली टीम में पहले मुद्दे से जुड़े चार बड़े मंत्रियों को जाना था, जिसमें नोडल मंत्री किशोरचंद्र देव भी शामिल थे। लेकिन वो नहीं भेजे गए। सिंधिया को तो ग्वालियर का होने के नाते भेजा गया। झोपड़ी बनाने भर को जमीन की मांग कर रहे भूमिहीन खेतिहर मजदूर और आदिवासियों का हुजूम केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक से शुरू होकर देश के 25 राज्यों के कुल 352 जिलों की पांच हजार किमी की पदयात्रा कर चुका है।
ग्वालियर पहुंचे इन पद यात्रियों का फाइनल पड़ाव राजधानी दिल्ली है, जहां पहुंचने में 16 दिन और लगेंगे। इसका एलान उन्होंने बहुत पहले ही कर दिया था। लेकिन केंद्र सरकार की आंख तब खुली, जब इन गरीबों व मजलूमों का हुजूम दिल्ली के नजदीक आ धमका।
पिछले साल डेढ़ साल से सिविल सोसाइटी के आंदोलनों से आजिज प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एकता परिषद के नेतृत्व में दिल्ली की ओर बढ़ रही इस मुसीबत को रोकने का जिम्मा संबंधित विभागों के मंत्रियों को सौंपा। भूमि संसाधन, ग्र्रामीण विकास, आदिवासी मामले, सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता के मंत्रियों को इनसे वार्ता करने को कहा गया। ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश के नेतृत्व में बुधवार को किशोरचंद्र देव, मुकुल वासनिक और ज्योतिरादित्य सिंधिया को ग्वालियर जाना था। लेकिन ऐन वक्त पर सिर्फ जयराम रमेश और सिंधिया को चार्टर्ड हवाई जहाज से ग्वालियर भेजा गया।
ग्वालियर के मेला मैदान में अनुशासित तरीके से बैठे लाखों भूमिहीन व आदिवासियों के समक्ष दो घंटे से अधिक चली भाषणबाजी के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकला। दरअसल जिस परिपत्र पर हस्ताक्षर होना था, उसे पेश नहीं किया जा सका। दोनों ओर से एक दूसरे के लिए विस्तार से लिखे पत्र जारी किए गए। सरकार की ओर से जहां 11 अक्तूबर को दिल्ली में एक और बड़ी बैठक का प्रस्ताव रखा गया, वहीं आंदोलनकारियों ने इसे स्वीकार करते हुए तब तक पदयात्रा जारी रखने का एलान कर दिया। पदयात्रियों को पटाने में केंद्रीय मंत्रियों का राजनीतिक व रणनीतिक कौशल काम नहीं आया।
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दूध से जला, मट्ठा भी.....
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कहते हैं, दूध से जला म_ा भी फूंक फूंक कर पीता है। कुछ ऐसा ही केंद्र सरकार के साथ भी हुआ। ग्वालियर तक चढ़ आए आंदोलनकारियों को लौटाने के लिए जाने वाले केंद्रीय मंत्रियों का दल ऐन मौके पर छोटा कर दिया गया। पद यात्रियों ने इसे सरकार की पेशबंदी मानते हुए सही अर्थों में नहीं लिया और वहां गए केंद्रीय मंत्रियों को बिना समझौते के लौटा दिया। आंदोलनकारियों को सरकार की मंशा पर संदेह पैदा हो गया। उनका कहना था कि सरकार जानबूझकर लंबा समय खींच रही है।
सूत्रों की मानें तो सरकार ने फजीहत के डर से मंत्रियों का बड़ा समूह वहां नहीं भेजा। क्योंकि बाबा रामदेव को मनाने के लिए तीन बड़े केंद्रीय मंत्री एयरपोर्ट पहुंचे थे, जिसे लेकर बड़ी थू थू हुई थी।
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