Wednesday, November 28, 2012
समझौते के बाद भी केंद्र की मुश्किलें नहीं होंगी कम
-राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति को लागू करना भी राज्यों का अधिकार क्षेत्र
-ज्यादातर मांगों का ताल्लुक राज्यों से, छह महीने में पूरा करने का वायदा
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नई दिल्ली।
सत्याग्रहियों से समझौता कर केंद्र सरकार भूमिहीन आदिवासियों को मनाने में भले ही सफल हो गई हो, लेकिन अब उसकी राह और कठिन हो गई है। राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति तैयार करने पर सहमति तो बन गई है, लेकिन जमीन संबंधी मसलों को सुलझाने के लिए राज्यों को ही आगे आना होगा। समझौता-पत्र में दर्ज मांगों में ज्यादातर का ताल्लुक राज्यों से है, जिन्हें पूरा कर पाना अकेले केंद्र के बस की बात नहीं है। और तो और, जो काम केंद्र सरकार अब तक नहीं कर पाई, उसे अगले छह महीने में पूरा करना होगा।
आगरा के समझौता-पत्र में सभी 10 मांगों को पूरा करने के लिए समयबद्ध कार्यक्रम निश्चित किया गया है। इसी निर्धारित समय में केंद्र सरकार राज्यों को मनाएगी भी। गैर कांग्र्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री और उनकी सरकारें भला केंद्र की मंशा कैसे पूरा होने देंगी? इससे आने वाले दिनों में राजनीतिक रार के बढऩे के आसार हैं। हालांकि भाजपा शासित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक दिन पहले ही भूमिहीन आदिवासी और अनुसूचित जाति के लोगों की मांगों को पूरा करने के लिए तमाम वायदे दोनों हाथों से उलीचे
समझौते के मुताबिक भूमिहीन आदिवासी और अनुसूचित जाति के लोगों के लिए राज्यों को जो कुछ करना है, उसमें एक दर्जन से अधिक मांगे शामिल हैं। एकता परिषद के नेता पीवी राजगोपाल का स्पष्ट कहना है कि केंद्र सरकार इन मांगों के लिए राज्यों पर दबाव बनाए। इसके लिए राज्य के मुख्यमंत्री, राजस्व मंत्री और उनके आला अफसरों के साथ विचार-विमर्श करे।
मौजूदा नियम व कानूनों को धता बताकर बड़ी संख्या में आदिवासियों की जमीनों पर गैर आदिवासियों के कब्जे को हटाकर उन्हें उनका हक दिलाना एक बड़ी समस्या है। अनुसूचित जातियों और आदिवासियों को आवंटित जमीनों का हस्तांतरण करना भी राज्यों के अधिकार क्षेत्र का मसला है। उद्योगों को लीज अथवा अन्य विकास परियोजनाओं के लिए अधिग्रहीत जमीनों का बड़ा हिस्सा सालों-साल से उपयोग नहीं हो रहा है। खाली पड़ी इन जमीनों को दोबारा भूमिहीनों में वितरित करना होगा और आदिवासी और अनुसूचित जाति के लोगों की परती और असिंचित भूमि को सिंचित बनाने के लिए मनरेगा के माध्यम के उपजाऊ बनाने पर जोर देना होगा।
बटाईदार और पट्टाधारकों को भी भूस्वामियों की तरह अधिकार हो, ताकि उन्हें बैंकों से कृषि ऋण आदि मिल सके। भूमि संबंधी सभी दस्तावेजों को पारदर्शी तरीके से ग्राम स्तर पर ही प्रबंधन किया जाए। भूमिहीनों के घर के लिए जमीनों का अधिग्रहण किया जाए। भूदान की समस्त भूमि का पुनर्सर्वेक्षण और भौतिक सत्यापन करके उस पर हुए अतिक्रमण को हटाया जाए। खाली हुई जमीन भूमिहीनों और वंचित वर्ग में वितरित की जाए।
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