Tuesday, August 30, 2011
यूरिया संकट, धान की खेती के प्रभावित होने का खतरा
उर्वरक मंत्रालय के रुख से कृषि मंत्रालय भी नाखुश
राज्यों ने केंद्र से यूरिया की आपूर्ति बढ़ाने की मांग की
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खेती के लिए आयातित विलायती खाद चाहिए। ताकि उत्पादन बढ़े और खाद्य सुरक्षा मिले। इसके लिए सरकार पर भारी सब्सिडी का बोझ पड़ता है। किसानों को सब्सिडी का लाभ मिले अथवा नहीं, खाद बनाने वाली कंपनियां जरूर जमकर फलफूल रही हैं। चालू खरीफ सीजन में धान की फसल खेतों में खड़ी है। उर्वरक मंत्रालय के आंकड़ों में सभी राज्यों में पर्याप्त खाद की आपूर्ति की जा चुकी है। लेकिन किसानों और उसके धान के खेत को खाद मयस्सर नहीं हो पा रही है। इससे फसल की पैदावार के प्रभावित होने का खतरा पैदा हो गया है।
खरीफ फसलों की बुवाई के समय जहां डीएपी और एनपीके जैसी मिश्रित खादों की किल्लत थी, वहीं अब यूरिया की कमी ने धान किसानों की मुश्किलें बढ़ा दी है। धान उत्पादक पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार में यूरिया की कमी से धान की पैदावार पर विपरीत असर पडऩे का अंदेशा है। धान की फसल पर यूरिया के छिड़काव का यह सबसे उपयुक्त समय है। इन राज्य सरकारों ने केंद्र से तत्काल यूरिया आपूर्ति बढ़ाने का आग्र्रह किया है।
खाद की आपूर्ति को लेकर उर्वरक मंत्रालय के रुख से कृषि मंत्रालय भी संतुष्ट नहीं है। खरीफ अभियान सम्मेलन में कृषि मंत्रालय ने जितनी खाद की जरूरतें बताई थी, उर्वरक मंत्रालय ने उतनी आपूर्ति करने से हाथ खड़े कर दिये थे। चालू सीजन में 280 लाख टन यूरिया की मांग की गई थी, जबकि पिछले साल मांग 266 लाख टन थी। इसी आधार पर यूरिया की आपूर्ति की गई है। मंत्रालय ने उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से लगी अंतरराष्ट्रीय सीमा से खादों की तस्करी को लेकर अपनी चिंता जताई है।
उत्तर प्रदेश में आपूर्ति कम होने से यूरिया की कालाबाजारी की खबरें आ रही हैं। नेपाल की सीमा से लगे जिलों से यूरिया की तस्करी के मामले भी सामने आये हैं। उर्वरक मंत्रालय ने प्रदेश सरकार को पत्र भेजकर इस पर सख्त कार्रवाई करने को भी कहा है। लेकिन खाद की कमी राज्य के दूसरे जिलों में भी है। राज्य सरकार ने केंद्र को पत्र लिखकर यूरिया की आपूर्ति करने का आग्रह किया है। उत्तर प्रदेश ने कुल 25 लाख टन यूरिया की मांग की थी, लेकिन उसे केवल 22.86 लाख टन यूरिया की आपूर्ति हुई है।
बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में धान की खेती पहले से ही बाढ़ की भेंट चढ़ी हुई है, दूसरे अब यूरिया की किल्लत से धान के किसानों को दो चार होना पड़ रहा है। लेकिन इन दोनों राज्यों की मुश्किलें इसलिए और भी बढ़ गई हैं कि यहां खाद वितरण की कोई सरकारी मशीनरी ही नहीं है। कहने को बिहार में प्राथमिक सहकारी साख समितियां हैं, जो खादों के वितरण और अनाज की सरकारी खरीद करने के लिए नामित हैं। लेकिन उनकी व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त है। बिहार ने 9.6 लाख टन यूरिया की जरूरत बताई थी, लेकिन उसके यहां केवल 5.75 लाख टन यूरिया ही पहुंची है।
झारखंड के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा खुद पिछले दिनों केंद्रीय उर्वरक राज्य मंत्री श्रीकांत जेना से मुलाकात कर आपूर्ति बढ़ाने का आग्र्रह किया था। लेकिन उस दिशा में कोई पहल नहीं हुई है। धान के प्रमुख उत्पादक राज्य पंजाब और हरियाणा भी यूरिया की कमी झेल रहे हैं। हरियाणा को उसकी जरूरत से एक लाख टन कम यूरिया भेजी गई है। जबकि पंजाब में यूरिया की कम आपूर्ति से उसका बफर स्टॉक रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है।
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