ब्यूरोक्रेट से कांग्रेस के नेता बने मणिशंकर अय्यर का विवादों से नाता पुराना है। मंत्री रहें अथवा नहीं। न उन्हें विवाद छोड़ता और न ही वो विवादों से नाता तोड़ते हैं। उनके मुंह से निकली बातों के इसी अंदाज मे मायने भी लगाए जाते रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के सिपहसालार रहे अय्यर पर आज भी उस दौर की खुमारी चढ़ी रहती है। उनके ज्यादातर मित्र उन्हें मणि नाम से ही पुकारते हैं। उनके साथ संसद की लॉबी में बिताए दस मिनट का ब्यौरा पेश कर रहा हूं। मौका था २९ दिसंबर। स्थान- राज्यसभा की लॉबी। और वक्त था रात के करीब ९.३० बजे। मणि अपनी रौ में थे। साथ में गिने चुने कुछ पत्रकार उनके इर्द गिर्द खड़े थे।
तभी राज्यसभा की गैलरी से निकलकर जाने-माने फिल्मकार श्याम बेनेगल निकल रहे थे। बेनेगल ने मणि को देखा तो नमस्ते भी ठोंक दी। फिर क्या था मणि ने उनके समक्ष एक प्रस्ताव रख दिया। बेनेगल साहब एक फिल्म बनाइए। शीर्षक भी दे डाला....उल्लूवालियों की अमर कथाएं, बेनेगल परेशान भई यह कैसा शीर्षक है। पूछ भी दिया, इसके मायने...'एमएस' और 'एसएस' (मोंटेक व सुरंदर सिंह)। बेचारे श्याम थोड़ा सहमें पर चलते बने। उनके भीतर क्या चल रहा था राम जानें। लेकिन वहां खड़े पत्रकारों के हंसी छूट पड़ी। अभी हंसी रुकी नहीं कि इसी बीच कांग्रेस के उत्तर प्रदेश के एक दिन के मुख्यमंत्री रहे और मौजूदा सांसद जगदंबिका पाल दिख गए। पाल साहब ने मणि को देखा और हाथ मिलाया और चलते बने। बस इतने में मणि फिर फूट पड़े। कहा, इन महाशय का देखिए, राजीव जी प्रधानमंत्री थे, तो ये साहब मेरे पांव के हाथ लगाते थे और आज हाथ मिला रहे हैं। उनके चेहरे पर थोड़ा गुस्सा और बेचैनी थी।
अगला सीन कुछ यूं था कि इसी बीच पंजाब विधानसभा चुनाव में वहां की संगरुर सीट से प्रत्याशी बनने का एक दावेदार आ धमका। उसने मणि के आगे दोनों हाथ जोड़ते हुए थोड़ी पंजाबी तड़के वाली हिंदी में आग्रह करना शुरु कर दिया। बेखौफ बोलता रहा। उसके चुप होने के बाद बड़े इत्मीनान से मणि ने कहा कि भाई टिकट चाहिए तो कांग्रेस के किसी और नेता से संपर्क करो। संभव हो सके तो अहमद पटेल से मिलो। मेरी पैरव्वी का मतलब मिलता टिकट भी कट जाएगा। लेकिन दावेदार भी कहां थमता, हार माने बगैर उसने कहा, सरजी आप ही हमारे माईबाप है। आप पैरवी करिए टिकट मिले या न मिले। इसकी चिंता छोड़िए। मणि ने उसी से पूछा, अच्छा तो बोलो भाई, किससे कह दूं। कुछ नहीं सर जी। सिर्फ सीपी जोशी से बोल दो काम हो जाएगा। अरे बाप रे। लगा किसी ने डंक मार दिया। मणि ने उसका आवेदन उसके हाथ में पकड़ाते हुए झिड़की दी और कहा, जाओ यहां से हटो। कांग्रेस में मेरे दो दुश्मन है, इनमें एक सीपी और दूसरा जयराम। भला मैं इनसे कुछ कह सकता हूं।
Saturday, December 31, 2011
Tuesday, December 20, 2011
कहीं पीडीएस के 'मुन्नाभा' न मार ले जाएं रियायती अनाज
खाद्य सुरक्षा विधेयक की खामियां-2
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- 31 दिसंबर 2011 तक पूरी नहीं हो पाएगी गरीबों की पहचान और गणना
- गरीबों की संख्या को लेकर केंद्र व राज्यों के बीच टकराव बरकरार
- गैर सरकारी संगठनों ने भी गरीबों की गणना पर जताई आपत्ति
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सुरेंद्र प्रसाद सिंह
खाद्य सुरक्षा विधेयक के अमल में गरीबों की पहचान को लेकर सरकार के सामने बड़ी चुनौती है। इस मसले का व्यावहारिक समाधान न हुआ तो गरीबों के रियायती अनाज की लूट में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के 'मुन्नाभाईÓ बाजी मार ले जाएंगे। कई राज्य सरकारों और संगठनों ने केंद्र को इस तरह से होने वाली गड़बड़ी की जानकारी दे दी है।
राजनीतिक वजहों से सरकार खाद्य सुरक्षा विधेयक लाने की भारी हड़बड़ी में है, जिसका लाभ अनाज के चोर उठा सकते हैं। गरीबों की पहचान करने के लिए आर्थिक-सामाजिक जनगणना-2011 लांच की गई है, जिसे हर हाल में 31 दिसंबर 2011 तक पूरा करना था। इसी जनगणना के आंकड़ों के आधार पर गरीबों की पहचान की जाएगी। लेकिन उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में यह जनगणना शुरू ही नहीं हो सकी है। जबकि महाराष्ट्र में सिर्फ एक फीसदी और आंध्र प्रदेश में 15 फीसदी काम पूरा हो पाया है। बिहार ने इस पूरी प्रक्रिया पर सवाल खड़ा किया था।
जनगणना के ताजा आंकड़ों के आधार पर खाद्य सुरक्षा विधेयक को लागू की जाएगी। ग्रामीण विकास मंत्रालय के सूत्रों की मानें तो जनगणना इतनी धीमी गति से हो रही है कि इसके आंकड़ों के आधार पर राशन प्रणाली किसी भी हाल में अप्रैल 2012 से चालू नहीं हो सकती है। अव्वल तो यह है कि गरीबों की पहचान वाली यह पूरी प्रक्रिया ही विवादों से घिरी है। इसमें एपीएल, बीपीएल और एएवाई जैसी श्रेणियां खत्म हो जाएंगी। इसमें सिर्फ सामान्य और प्राथमिकता क्षेत्र वाले उपभोक्ता शामिल होंगे। निर्धारित सात मानकों को आधार बनाया गया है, जिन पर गैर सरकारी संगठनों का प्रबल विरोध है।
गरीबों की पहचान और उनकी संख्या को लेकर केंद्र व राज्यों के बीच भी लगातार विरोध के स्वर उभरते रहे हैं। गरीबों की संख्या पहले ही 37.2 फीसदी मान ली गई है, जिसे राज्य सरकारें मानने को तैयार नहीं हैं। हालांकि खाद्य सुरक्षा विधेयक में इस आंकड़े से कहीं अधिक परिवारों को रियायती अनाज देने का प्रावधान है। योजना आयोग के आंकड़ों में फिलहाल जहां 6.52 करोड़ परिवारों को गरीब माना गया है, वहीं राज्य सरकारें 10.76 करोड़ परिवारों को गरीब मानती हैं। उन्हें राशनकार्ड भी जारी किया गया है।
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- 31 दिसंबर 2011 तक पूरी नहीं हो पाएगी गरीबों की पहचान और गणना
- गरीबों की संख्या को लेकर केंद्र व राज्यों के बीच टकराव बरकरार
- गैर सरकारी संगठनों ने भी गरीबों की गणना पर जताई आपत्ति
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सुरेंद्र प्रसाद सिंह
खाद्य सुरक्षा विधेयक के अमल में गरीबों की पहचान को लेकर सरकार के सामने बड़ी चुनौती है। इस मसले का व्यावहारिक समाधान न हुआ तो गरीबों के रियायती अनाज की लूट में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के 'मुन्नाभाईÓ बाजी मार ले जाएंगे। कई राज्य सरकारों और संगठनों ने केंद्र को इस तरह से होने वाली गड़बड़ी की जानकारी दे दी है।
राजनीतिक वजहों से सरकार खाद्य सुरक्षा विधेयक लाने की भारी हड़बड़ी में है, जिसका लाभ अनाज के चोर उठा सकते हैं। गरीबों की पहचान करने के लिए आर्थिक-सामाजिक जनगणना-2011 लांच की गई है, जिसे हर हाल में 31 दिसंबर 2011 तक पूरा करना था। इसी जनगणना के आंकड़ों के आधार पर गरीबों की पहचान की जाएगी। लेकिन उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में यह जनगणना शुरू ही नहीं हो सकी है। जबकि महाराष्ट्र में सिर्फ एक फीसदी और आंध्र प्रदेश में 15 फीसदी काम पूरा हो पाया है। बिहार ने इस पूरी प्रक्रिया पर सवाल खड़ा किया था।
जनगणना के ताजा आंकड़ों के आधार पर खाद्य सुरक्षा विधेयक को लागू की जाएगी। ग्रामीण विकास मंत्रालय के सूत्रों की मानें तो जनगणना इतनी धीमी गति से हो रही है कि इसके आंकड़ों के आधार पर राशन प्रणाली किसी भी हाल में अप्रैल 2012 से चालू नहीं हो सकती है। अव्वल तो यह है कि गरीबों की पहचान वाली यह पूरी प्रक्रिया ही विवादों से घिरी है। इसमें एपीएल, बीपीएल और एएवाई जैसी श्रेणियां खत्म हो जाएंगी। इसमें सिर्फ सामान्य और प्राथमिकता क्षेत्र वाले उपभोक्ता शामिल होंगे। निर्धारित सात मानकों को आधार बनाया गया है, जिन पर गैर सरकारी संगठनों का प्रबल विरोध है।
गरीबों की पहचान और उनकी संख्या को लेकर केंद्र व राज्यों के बीच भी लगातार विरोध के स्वर उभरते रहे हैं। गरीबों की संख्या पहले ही 37.2 फीसदी मान ली गई है, जिसे राज्य सरकारें मानने को तैयार नहीं हैं। हालांकि खाद्य सुरक्षा विधेयक में इस आंकड़े से कहीं अधिक परिवारों को रियायती अनाज देने का प्रावधान है। योजना आयोग के आंकड़ों में फिलहाल जहां 6.52 करोड़ परिवारों को गरीब माना गया है, वहीं राज्य सरकारें 10.76 करोड़ परिवारों को गरीब मानती हैं। उन्हें राशनकार्ड भी जारी किया गया है।
अनाज की खुली लूट का रास्ता खोल देगा खाद्य सुरक्षा विधेयक
खाद्य सुरक्षा विधेयक की खामियां
-मौजूदा राशन प्रणाली केभरोसे खाद्य सुरक्षा के मायने दोगुनी लूट
-राशन प्रणाली में 60 फीसदी चावल व 20 फीसदी गेहूं हो जाता है चोरी
सुरेंद्र प्रसाद सिंह
ध्वस्त राशन प्रणाली पर खाद्य सुरक्षा विधेयक का बोझ डालने का सीधा मतलब खाद्य सब्सिडी में दोगुनी लूट है। सरकार इसी मरी राशन प्रणाली के भरोसे देश की तीन चौथाई जनता को रियायती मूल्य पर अनाज बांटने का मंसूबा पाले बैठी है। जबकि उसी की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक 60 फीसदी रियायती दर वाला गेहूं और 20 फीसदी चावल गरीबों तक पहुंचने से पहले ही लूट लिया जाता है।
पिछले वित्त वर्ष के आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक राशन प्रणाली ध्वस्त हो चुकी है। इसमें आधे से ज्यादा अनाज का लीकेज (चोरी) हो जाता है। अनाज की यह लूट एफसीआइ के गोदामों से लेकर राशन के दुकानदारों तक होती है। प्रणाली में सुधार के सारे उपाय नाकाफी साबित हुए हैं। इन तथ्यों से वाकिफ होने के बावजूद सरकार इसी चरमराई प्रणाली पर दोहरा बोझ डालने का मंसूबा पाले बैठी है।
राशन प्रणाली में फिलहाल 35 करोड़ लोगों को राशन वितरित किया जाता है। जबकि प्रस्तावित विधेयक में अब 80 करोड़ लोगों को राशन देने का प्रावधान है। जाहिर है मौजूदा राशन प्रणाली के लिए यह बड़ा बोझ होगा। दूसरे शब्दों में कहें तो राशन अनाज की लूट बढ़कर दोगुनी हो जाएगी।
इन तथ्यों के बावजूद सरकार ने राशन प्रणाली में आमूल सुधार करने पर बहुत जोर नहीं दिया है। प्रस्तावित विधेयक में राशन प्रणाली को सुधारने का जिम्मा राज्य सरकारों पर छोड़ दिया गया है। इससे खाद्य सुरक्षा विधेयक के रियायती अनाज में खुली लूट की आशंका है। इक्का-दुक्का राज्यों को छोड़कर बाकी राज्यों में राशन प्रणाली में भारी खामियां गिनाई गई हैं। संसद में सरकार के एक जवाब के मुताबिक पूर्वोत्तर राज्यों के राशन का पूरा अनाज खुले बाजार में बिकने के लिए पहुंच जाता है।
खाद्य सुरक्षा विधेयक में कुछ प्रावधान जरूर किया गया है, लेकिन इसके अमल को लेकर संदेह है। विधेयक के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों के 75 फीसदी जिन लोगों को रियायती अनाज देना है, उनमें से 46 फीसदी गरीबों को अनाज इसी पुरानी प्रणाली पर देने की व्यवस्था है। लेकिन 29 फीसदी सामान्य उपभोक्ताओं को रियायती अनाज देने के लिए राशन प्रणाली में सुधार जरूरी होगा। इसी तरह 50 फीसदी शहरी उपभोक्ताओं में 22 फीसदी सामान्य उपभोक्ताओं के लिए सुधार करना होगा। लेकिन विधेयक में सुधार का जिम्मा राज्यों के ऊपर छोड़ दिया गया है। सुधार के लिए राशन प्रणाली का कंप्यूटरीकरण, राशन कार्ड को 'आधारÓ से जोडऩे और कूपन व्यवस्था शुरू करने की व्यवस्था दी गई है। लेकिन राशन प्रणाली में सुधार के लिए वित्तीय मदद को लेकर प्रावधान में स्पष्ट निर्देश नहीं हैं। इसे लेकर केंद्र व राज्यों के बीच तकरार होनी तय है। इसी तरह अभी तक 'आधारÓ का भविष्य भी अनिश्चित है।
-मौजूदा राशन प्रणाली केभरोसे खाद्य सुरक्षा के मायने दोगुनी लूट
-राशन प्रणाली में 60 फीसदी चावल व 20 फीसदी गेहूं हो जाता है चोरी
सुरेंद्र प्रसाद सिंह
ध्वस्त राशन प्रणाली पर खाद्य सुरक्षा विधेयक का बोझ डालने का सीधा मतलब खाद्य सब्सिडी में दोगुनी लूट है। सरकार इसी मरी राशन प्रणाली के भरोसे देश की तीन चौथाई जनता को रियायती मूल्य पर अनाज बांटने का मंसूबा पाले बैठी है। जबकि उसी की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक 60 फीसदी रियायती दर वाला गेहूं और 20 फीसदी चावल गरीबों तक पहुंचने से पहले ही लूट लिया जाता है।
पिछले वित्त वर्ष के आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक राशन प्रणाली ध्वस्त हो चुकी है। इसमें आधे से ज्यादा अनाज का लीकेज (चोरी) हो जाता है। अनाज की यह लूट एफसीआइ के गोदामों से लेकर राशन के दुकानदारों तक होती है। प्रणाली में सुधार के सारे उपाय नाकाफी साबित हुए हैं। इन तथ्यों से वाकिफ होने के बावजूद सरकार इसी चरमराई प्रणाली पर दोहरा बोझ डालने का मंसूबा पाले बैठी है।
राशन प्रणाली में फिलहाल 35 करोड़ लोगों को राशन वितरित किया जाता है। जबकि प्रस्तावित विधेयक में अब 80 करोड़ लोगों को राशन देने का प्रावधान है। जाहिर है मौजूदा राशन प्रणाली के लिए यह बड़ा बोझ होगा। दूसरे शब्दों में कहें तो राशन अनाज की लूट बढ़कर दोगुनी हो जाएगी।
इन तथ्यों के बावजूद सरकार ने राशन प्रणाली में आमूल सुधार करने पर बहुत जोर नहीं दिया है। प्रस्तावित विधेयक में राशन प्रणाली को सुधारने का जिम्मा राज्य सरकारों पर छोड़ दिया गया है। इससे खाद्य सुरक्षा विधेयक के रियायती अनाज में खुली लूट की आशंका है। इक्का-दुक्का राज्यों को छोड़कर बाकी राज्यों में राशन प्रणाली में भारी खामियां गिनाई गई हैं। संसद में सरकार के एक जवाब के मुताबिक पूर्वोत्तर राज्यों के राशन का पूरा अनाज खुले बाजार में बिकने के लिए पहुंच जाता है।
खाद्य सुरक्षा विधेयक में कुछ प्रावधान जरूर किया गया है, लेकिन इसके अमल को लेकर संदेह है। विधेयक के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों के 75 फीसदी जिन लोगों को रियायती अनाज देना है, उनमें से 46 फीसदी गरीबों को अनाज इसी पुरानी प्रणाली पर देने की व्यवस्था है। लेकिन 29 फीसदी सामान्य उपभोक्ताओं को रियायती अनाज देने के लिए राशन प्रणाली में सुधार जरूरी होगा। इसी तरह 50 फीसदी शहरी उपभोक्ताओं में 22 फीसदी सामान्य उपभोक्ताओं के लिए सुधार करना होगा। लेकिन विधेयक में सुधार का जिम्मा राज्यों के ऊपर छोड़ दिया गया है। सुधार के लिए राशन प्रणाली का कंप्यूटरीकरण, राशन कार्ड को 'आधारÓ से जोडऩे और कूपन व्यवस्था शुरू करने की व्यवस्था दी गई है। लेकिन राशन प्रणाली में सुधार के लिए वित्तीय मदद को लेकर प्रावधान में स्पष्ट निर्देश नहीं हैं। इसे लेकर केंद्र व राज्यों के बीच तकरार होनी तय है। इसी तरह अभी तक 'आधारÓ का भविष्य भी अनिश्चित है।
Tuesday, August 30, 2011
यूरिया संकट, धान की खेती के प्रभावित होने का खतरा
उर्वरक मंत्रालय के रुख से कृषि मंत्रालय भी नाखुश
राज्यों ने केंद्र से यूरिया की आपूर्ति बढ़ाने की मांग की
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खेती के लिए आयातित विलायती खाद चाहिए। ताकि उत्पादन बढ़े और खाद्य सुरक्षा मिले। इसके लिए सरकार पर भारी सब्सिडी का बोझ पड़ता है। किसानों को सब्सिडी का लाभ मिले अथवा नहीं, खाद बनाने वाली कंपनियां जरूर जमकर फलफूल रही हैं। चालू खरीफ सीजन में धान की फसल खेतों में खड़ी है। उर्वरक मंत्रालय के आंकड़ों में सभी राज्यों में पर्याप्त खाद की आपूर्ति की जा चुकी है। लेकिन किसानों और उसके धान के खेत को खाद मयस्सर नहीं हो पा रही है। इससे फसल की पैदावार के प्रभावित होने का खतरा पैदा हो गया है।
खरीफ फसलों की बुवाई के समय जहां डीएपी और एनपीके जैसी मिश्रित खादों की किल्लत थी, वहीं अब यूरिया की कमी ने धान किसानों की मुश्किलें बढ़ा दी है। धान उत्पादक पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार में यूरिया की कमी से धान की पैदावार पर विपरीत असर पडऩे का अंदेशा है। धान की फसल पर यूरिया के छिड़काव का यह सबसे उपयुक्त समय है। इन राज्य सरकारों ने केंद्र से तत्काल यूरिया आपूर्ति बढ़ाने का आग्र्रह किया है।
खाद की आपूर्ति को लेकर उर्वरक मंत्रालय के रुख से कृषि मंत्रालय भी संतुष्ट नहीं है। खरीफ अभियान सम्मेलन में कृषि मंत्रालय ने जितनी खाद की जरूरतें बताई थी, उर्वरक मंत्रालय ने उतनी आपूर्ति करने से हाथ खड़े कर दिये थे। चालू सीजन में 280 लाख टन यूरिया की मांग की गई थी, जबकि पिछले साल मांग 266 लाख टन थी। इसी आधार पर यूरिया की आपूर्ति की गई है। मंत्रालय ने उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से लगी अंतरराष्ट्रीय सीमा से खादों की तस्करी को लेकर अपनी चिंता जताई है।
उत्तर प्रदेश में आपूर्ति कम होने से यूरिया की कालाबाजारी की खबरें आ रही हैं। नेपाल की सीमा से लगे जिलों से यूरिया की तस्करी के मामले भी सामने आये हैं। उर्वरक मंत्रालय ने प्रदेश सरकार को पत्र भेजकर इस पर सख्त कार्रवाई करने को भी कहा है। लेकिन खाद की कमी राज्य के दूसरे जिलों में भी है। राज्य सरकार ने केंद्र को पत्र लिखकर यूरिया की आपूर्ति करने का आग्रह किया है। उत्तर प्रदेश ने कुल 25 लाख टन यूरिया की मांग की थी, लेकिन उसे केवल 22.86 लाख टन यूरिया की आपूर्ति हुई है।
बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में धान की खेती पहले से ही बाढ़ की भेंट चढ़ी हुई है, दूसरे अब यूरिया की किल्लत से धान के किसानों को दो चार होना पड़ रहा है। लेकिन इन दोनों राज्यों की मुश्किलें इसलिए और भी बढ़ गई हैं कि यहां खाद वितरण की कोई सरकारी मशीनरी ही नहीं है। कहने को बिहार में प्राथमिक सहकारी साख समितियां हैं, जो खादों के वितरण और अनाज की सरकारी खरीद करने के लिए नामित हैं। लेकिन उनकी व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त है। बिहार ने 9.6 लाख टन यूरिया की जरूरत बताई थी, लेकिन उसके यहां केवल 5.75 लाख टन यूरिया ही पहुंची है।
झारखंड के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा खुद पिछले दिनों केंद्रीय उर्वरक राज्य मंत्री श्रीकांत जेना से मुलाकात कर आपूर्ति बढ़ाने का आग्र्रह किया था। लेकिन उस दिशा में कोई पहल नहीं हुई है। धान के प्रमुख उत्पादक राज्य पंजाब और हरियाणा भी यूरिया की कमी झेल रहे हैं। हरियाणा को उसकी जरूरत से एक लाख टन कम यूरिया भेजी गई है। जबकि पंजाब में यूरिया की कम आपूर्ति से उसका बफर स्टॉक रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है।
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Sunday, August 28, 2011
अन्ना के आंदोलन में गुम हो गई नदियों की बाढ़
भारी बारिश से उत्तरी क्षेत्रों की नदियां उफनाईं
गंगा और ब्रह्मïपुत्र के मैदानी क्षेत्रों में बाढ़ का कहर शुरु
संसद में भी सुनाई पड़ी बाढ़ की तबाही की गूंज
बाढ़ से लाखों हेक्टेयर धान की फसल तबाह
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अन्ना की चपेट में नदियों की बाढ़ कहीं गुम हो गई हैं। डेढ़ सौ से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। सैकड़ों पशु बह गये। खेती उजड़ गई। घर मटियामेट हो गये। लेकिन मीडिया से लेकर संसद तक में उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। ब्रह्मपुत्र की विभीषिका से समूचा पूर्वोत्तर चीख व चीत्कार रहा है। उत्तरी व पूर्वी भारत का हाल बेहाल है। नेपाल के बांधों से बेहिसाब पानी छोड़े जाने से पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार की नदियां बौराने की ओर हैं।..........
उत्तर और पूर्वी क्षेत्र में लगातार हो रही बारिश से उफनाई नदियों की बाढ़ से खरीफ फसलें तबाह हुई हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में लाखों हेक्टेयर भूमि में खड़ी धान की फसलें बाढ़ में डूबी हुई हैं। इन राज्यों में फसलों के हुए नुकसान का जायजा लेने जल्दी ही केंद्रीय दल जाएगा।
कृषि मंत्रालय के मुताबिक उत्तर प्रदेश में बहने वाली लगभग सभी नदियां खतरे के निशान को पार कर चुकी हैं। बाढ़ से खरीफ की फसलें चौपट हो रही हैं। राज्य के 26 जिलों में बाढ़ का प्रकोप हो गया है, जिससे ढाई लाख हेक्टेयर धान की फसल बाढ़ में डूब गई है। बाराबंकी, बहराइच, फैजाबाद, गोंडा, फरुखाबाद, लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, सीतापुर, बलिया, बिजनौर, मुरादाबाद, गोरखपुर और गाजीपुर समेत दो दर्जन से अधिक जिलों में बाढ़ का असर पड़ा है।
बिहार की सभी नदियां उफना चुकी हैं। उनकी बाढ़ से लगभग एक लाख हेक्टेयर में खड़ी धान की फसल पानी में डूब गई है। राज्य के 25 जिलों में बाढ़ की तबाही शुरू हो गई है। जबकि दलहन व तिलहन की फसल तो पहले ही भारी बारिश की भेंट चढ़ चुकी है। नेपाल में बने बांधों से छोड़े गये अतिरिक्त पानी से राज्य की कुछ नदियां उफना गई हैं, जिससे कई जिलों में स्थिति नाजुक होने के कगार पर है।
उधर पश्चिम बंगाल के 15 जिलों के 171 विकास खंड बाढ़ की चपेट में हैं। यहां की खेती पर इसका बुरा असर पड़ा है। राज्य आपदा प्रबंधन के अनुमान के मुताबिक राज्य की लगभग पौने तीन लाख हेक्टेयर धान की फसल को भारी नुकसान पहुंचा है। मौसम विभाग की मानें तो राज्य में पिछले तीन सालों बाद भारी बारिश हुई है, जिससे राज्य की छोटी और बड़ी नदियां उफना रही हैं। केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के अनुसार धान की फसल के लिए 700 मिलीमीटर बारिश की जरूरत होती है, जबकि यहां 1000 मिलीमीटर से अधिक बारिश हो चुकी है।
केंद्रीय कृषि मंत्रालय की नजर इन राज्यों की नदियों में बाढ़ और खरीफ फसलों के होने वाले नुकसान पर है। राज्यों के आग्रह पर मंत्रालय के अफसरों की टीम जल्दी ही प्रभावित जिलों का दौरा करेगी।
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एक सप्ताह पूर्व की खबर
उत्तर भारत और पूर्वी क्षेत्रों में भारी बारिश से ऊफनाई नदियों ने तबाही मचाना शुरु कर दिया है। इससे गंगा व ब्रह्मïपुत्र का मैदानी क्षेत्र बाढ़ की चपेट में आ गया है। गंगा और ब्रह्मïपुत्र की सहायक नदियों में आई बाढ़ से पूर्वोत्तर के राज्यों समेत समूचा उत्तर भारत और केंद्रीय मध्य प्रदेश और राजस्थान में बाढ़ का कहर शुरु हो गया है। इसकी गूंज आज संसद में भी सुनाई पड़ी। बाढ़ से प्रभावित राज्यों में जान माल की सुरक्षा के लिए तत्काल मदद पहुंचाने की गुहार लगाई गई।
हिमालयी राज्यों उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश के साथ पूर्वोत्तर के राज्यों में हो रही भारी बारिश से भूस्खलन और नदियों में बाढ़ की स्थिति पैदा हो गई है। इसका असर मैदानी क्षेत्रों में भीषण दिखाई देने लगा है। गंगा और उसकी सहायक नदियां लगभग सभी जगह खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। गंगा की सहायक नदियों में घाघरा, गंडक, बूढ़ी गंडक, रामगंगा, यमुना सभी जगहों पर खतरे का निशान पार कर चुकी है। शारदा, सरयू और ताप्ती नदियों में बाढ़ है, जिसका असर लखीमपुर खीरी, गोंडा और बलरामपुर जिलों के जनजीवन पर पडऩे लगा है।
केंद्रीय जल आयोग के केंद्रीय बाढ़ नियंत्रण केंद्र के अनुसार गंगा नदी में बाढ़ का पानी कन्नौज से लेकर बलिया तक खतरे के निशान से ऊपर बह रहा है। समूचे उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल से गुजरने वाली गंगा नदी में बाढ़ का पानी लगातार बढ़ रहा है। हरियाणा मेंयमुना के हथिनी कुंड बैराज से लगातार पानी छोड़े जाने से दिल्ली और साथ के लगे शहरों में बाढ़ का खतरा पैदा हो गया है, जहां अलर्ट जारी कर दिया गया है। हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश कई शहरों के निचले हिस्से में पानी भर गया है। जानमाल की सुरक्षा के लिए उन्हें सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है। उत्तराखंड की बरसाती नदियों के खतरनाक तरीके से ऊफनाने से हालात तंग है। निचले भागों में जहां पानी का स्तर बढ़ गया है, वहीं ऊंचाई वाले हिस्सों में भूस्खलन का खतरा और बढ़ गया है। उत्तर प्रदेश के नरोरा बांध लबालब भर चुका है।
उत्तरी बिहार में बहने वाली गंडक, बूढ़ी गंडक, बारामती, कोसी, महानदी और पुनपुन नदियों में बाढ़ आ गई है। महानंदा जहां कटिहार में खतरे के निशान से एक मीटर ऊपर बह रही है, वहीं खगडिय़ा में बूढ़ी गंडक की बाढ़ ने फसलों को अपनी चपेट में ले लिया है। गोपालगंज, मुजफ्फरपुर सीतामढ़ी और बगहा के निचले इलाकों में पानी भर गया है।
बाढ़ की तबाही का मामला बृहस्पतिवार को यहां राज्यसभा में भी उठाया गया। भाजपा के कलराज मिश्र और मुख्तार अब्बास नकवी ने उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और देश के अन्य हिस्सों में आई बाढ़ पर चिंता जताते हुए प्रभावित लोगों तक तत्काल मदद पहुंचाने की गुहार लगाई। राजस्थान में भारी बारिश से वहां की छोटी बड़ी नदियों का पानी गांवों में घुस आया है। इस बिन बुलाई दैवीय आपदा के लिए राज्यसभा में भाजपा के रामदास अग्र्रवाल ने वहां की दयनीय स्थिति का जिक्र करते हुए केंद्र सरकार को आगे आने की अपील की।
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गंगा और ब्रह्मïपुत्र के मैदानी क्षेत्रों में बाढ़ का कहर शुरु
संसद में भी सुनाई पड़ी बाढ़ की तबाही की गूंज
बाढ़ से लाखों हेक्टेयर धान की फसल तबाह
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अन्ना की चपेट में नदियों की बाढ़ कहीं गुम हो गई हैं। डेढ़ सौ से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। सैकड़ों पशु बह गये। खेती उजड़ गई। घर मटियामेट हो गये। लेकिन मीडिया से लेकर संसद तक में उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। ब्रह्मपुत्र की विभीषिका से समूचा पूर्वोत्तर चीख व चीत्कार रहा है। उत्तरी व पूर्वी भारत का हाल बेहाल है। नेपाल के बांधों से बेहिसाब पानी छोड़े जाने से पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार की नदियां बौराने की ओर हैं।..........
उत्तर और पूर्वी क्षेत्र में लगातार हो रही बारिश से उफनाई नदियों की बाढ़ से खरीफ फसलें तबाह हुई हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में लाखों हेक्टेयर भूमि में खड़ी धान की फसलें बाढ़ में डूबी हुई हैं। इन राज्यों में फसलों के हुए नुकसान का जायजा लेने जल्दी ही केंद्रीय दल जाएगा।
कृषि मंत्रालय के मुताबिक उत्तर प्रदेश में बहने वाली लगभग सभी नदियां खतरे के निशान को पार कर चुकी हैं। बाढ़ से खरीफ की फसलें चौपट हो रही हैं। राज्य के 26 जिलों में बाढ़ का प्रकोप हो गया है, जिससे ढाई लाख हेक्टेयर धान की फसल बाढ़ में डूब गई है। बाराबंकी, बहराइच, फैजाबाद, गोंडा, फरुखाबाद, लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, सीतापुर, बलिया, बिजनौर, मुरादाबाद, गोरखपुर और गाजीपुर समेत दो दर्जन से अधिक जिलों में बाढ़ का असर पड़ा है।
बिहार की सभी नदियां उफना चुकी हैं। उनकी बाढ़ से लगभग एक लाख हेक्टेयर में खड़ी धान की फसल पानी में डूब गई है। राज्य के 25 जिलों में बाढ़ की तबाही शुरू हो गई है। जबकि दलहन व तिलहन की फसल तो पहले ही भारी बारिश की भेंट चढ़ चुकी है। नेपाल में बने बांधों से छोड़े गये अतिरिक्त पानी से राज्य की कुछ नदियां उफना गई हैं, जिससे कई जिलों में स्थिति नाजुक होने के कगार पर है।
उधर पश्चिम बंगाल के 15 जिलों के 171 विकास खंड बाढ़ की चपेट में हैं। यहां की खेती पर इसका बुरा असर पड़ा है। राज्य आपदा प्रबंधन के अनुमान के मुताबिक राज्य की लगभग पौने तीन लाख हेक्टेयर धान की फसल को भारी नुकसान पहुंचा है। मौसम विभाग की मानें तो राज्य में पिछले तीन सालों बाद भारी बारिश हुई है, जिससे राज्य की छोटी और बड़ी नदियां उफना रही हैं। केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के अनुसार धान की फसल के लिए 700 मिलीमीटर बारिश की जरूरत होती है, जबकि यहां 1000 मिलीमीटर से अधिक बारिश हो चुकी है।
केंद्रीय कृषि मंत्रालय की नजर इन राज्यों की नदियों में बाढ़ और खरीफ फसलों के होने वाले नुकसान पर है। राज्यों के आग्रह पर मंत्रालय के अफसरों की टीम जल्दी ही प्रभावित जिलों का दौरा करेगी।
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एक सप्ताह पूर्व की खबर
उत्तर भारत और पूर्वी क्षेत्रों में भारी बारिश से ऊफनाई नदियों ने तबाही मचाना शुरु कर दिया है। इससे गंगा व ब्रह्मïपुत्र का मैदानी क्षेत्र बाढ़ की चपेट में आ गया है। गंगा और ब्रह्मïपुत्र की सहायक नदियों में आई बाढ़ से पूर्वोत्तर के राज्यों समेत समूचा उत्तर भारत और केंद्रीय मध्य प्रदेश और राजस्थान में बाढ़ का कहर शुरु हो गया है। इसकी गूंज आज संसद में भी सुनाई पड़ी। बाढ़ से प्रभावित राज्यों में जान माल की सुरक्षा के लिए तत्काल मदद पहुंचाने की गुहार लगाई गई।
हिमालयी राज्यों उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश के साथ पूर्वोत्तर के राज्यों में हो रही भारी बारिश से भूस्खलन और नदियों में बाढ़ की स्थिति पैदा हो गई है। इसका असर मैदानी क्षेत्रों में भीषण दिखाई देने लगा है। गंगा और उसकी सहायक नदियां लगभग सभी जगह खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। गंगा की सहायक नदियों में घाघरा, गंडक, बूढ़ी गंडक, रामगंगा, यमुना सभी जगहों पर खतरे का निशान पार कर चुकी है। शारदा, सरयू और ताप्ती नदियों में बाढ़ है, जिसका असर लखीमपुर खीरी, गोंडा और बलरामपुर जिलों के जनजीवन पर पडऩे लगा है।
केंद्रीय जल आयोग के केंद्रीय बाढ़ नियंत्रण केंद्र के अनुसार गंगा नदी में बाढ़ का पानी कन्नौज से लेकर बलिया तक खतरे के निशान से ऊपर बह रहा है। समूचे उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल से गुजरने वाली गंगा नदी में बाढ़ का पानी लगातार बढ़ रहा है। हरियाणा मेंयमुना के हथिनी कुंड बैराज से लगातार पानी छोड़े जाने से दिल्ली और साथ के लगे शहरों में बाढ़ का खतरा पैदा हो गया है, जहां अलर्ट जारी कर दिया गया है। हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश कई शहरों के निचले हिस्से में पानी भर गया है। जानमाल की सुरक्षा के लिए उन्हें सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है। उत्तराखंड की बरसाती नदियों के खतरनाक तरीके से ऊफनाने से हालात तंग है। निचले भागों में जहां पानी का स्तर बढ़ गया है, वहीं ऊंचाई वाले हिस्सों में भूस्खलन का खतरा और बढ़ गया है। उत्तर प्रदेश के नरोरा बांध लबालब भर चुका है।
उत्तरी बिहार में बहने वाली गंडक, बूढ़ी गंडक, बारामती, कोसी, महानदी और पुनपुन नदियों में बाढ़ आ गई है। महानंदा जहां कटिहार में खतरे के निशान से एक मीटर ऊपर बह रही है, वहीं खगडिय़ा में बूढ़ी गंडक की बाढ़ ने फसलों को अपनी चपेट में ले लिया है। गोपालगंज, मुजफ्फरपुर सीतामढ़ी और बगहा के निचले इलाकों में पानी भर गया है।
बाढ़ की तबाही का मामला बृहस्पतिवार को यहां राज्यसभा में भी उठाया गया। भाजपा के कलराज मिश्र और मुख्तार अब्बास नकवी ने उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और देश के अन्य हिस्सों में आई बाढ़ पर चिंता जताते हुए प्रभावित लोगों तक तत्काल मदद पहुंचाने की गुहार लगाई। राजस्थान में भारी बारिश से वहां की छोटी बड़ी नदियों का पानी गांवों में घुस आया है। इस बिन बुलाई दैवीय आपदा के लिए राज्यसभा में भाजपा के रामदास अग्र्रवाल ने वहां की दयनीय स्थिति का जिक्र करते हुए केंद्र सरकार को आगे आने की अपील की।
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एफसीआई का वित्तीय संकट
वित्तीय संकट से उबरने के लिए एफसीआई को 35 हजार करोड़ की दरकार
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खाद्य कुप्रबंधन के चलते एफसीआई का खर्च बढ़कर हुआ 95 हजार करोड़
वित्तीय संकट से उबारने के लिए केंद्र से मदद की गुहार
सीसीए की अगली बैठक में इस पर विचार किये जाने की संभावना
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खाद्य कुप्रबंधन के चलते एफसीआई गंभीर वित्तीय संकट में जूझ रही है। इससे उबरने के लिए उसे केंद्र सरकार से तत्काल 35 हजार करोड़ रुपये की सख्त दरकार है। यह धन उसे गोदामों में अटे पड़े अनाज के रखरखाव, रबी सीजन में गेहूं खरीद के बकाये की अदायगी और चालू खरीफ में धान की खरीद के लिए चाहिए। उसने केंद्र सरकार से तत्काल मदद करने की गुहार लगाई है।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी मुताबिक एफसीआई की जरूरतों के मद्देनजर यह प्रस्ताव वित्त मंत्रालय को भेज दिया गया है। अगले सप्ताह होने वाली केंद्रीय मंत्रिमंडल की आर्थिक समिति में इस मुद्दे पर विचार किये जाने की संभावना है।
खाद्यान्न की कम निकासी और खरीद जारी रहने से एफसीआई के गोदामों में 6.5 करोड़ टन अनाज भर गया। अनाज की यह भारी मात्रा ही उसकी मुश्किलों का सबब बन चुकी है। वित्तीय हालत डांवाडोल है। चालू वित्त वर्ष के आम बजट में खाद्य सब्सिडी के मद में 60,084 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था। जिन राज्यों में एफसीआई के बजाय राज्य खुद अनाज की खरीद करते हैैं, उनके लिए 12,845 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था। लेकिन खर्च इससे कहीं अधिक हो गया है।
विकेंद्रीकृत खरीद करने वाले राज्यों (डीसीपी) ने रबी सीजन में गेहूं की जो खरीद की है, उसमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों का एफसीआई पर 11 हजार करोड़ रुपये से अधिक का बकाया हो गया है। इस वित्तीय संकट से उबरने के लिए उसने वित्त मंत्रालय से 35 हजार करोड़ रुपये की अतिरिक्त मांग की है। इसमें डीसीपी राज्यों के बकाया चुकाने और आगामी खरीफ सीजन में धान की खरीद का खर्च भी शामिल है। ऐसे राज्यों को अनाज की सरकारी खरीद के लिए एफसीआई धन मुहैया कराता है।
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खाद्य कुप्रबंधन के चलते एफसीआई का खर्च बढ़कर हुआ 95 हजार करोड़
वित्तीय संकट से उबारने के लिए केंद्र से मदद की गुहार
सीसीए की अगली बैठक में इस पर विचार किये जाने की संभावना
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खाद्य कुप्रबंधन के चलते एफसीआई गंभीर वित्तीय संकट में जूझ रही है। इससे उबरने के लिए उसे केंद्र सरकार से तत्काल 35 हजार करोड़ रुपये की सख्त दरकार है। यह धन उसे गोदामों में अटे पड़े अनाज के रखरखाव, रबी सीजन में गेहूं खरीद के बकाये की अदायगी और चालू खरीफ में धान की खरीद के लिए चाहिए। उसने केंद्र सरकार से तत्काल मदद करने की गुहार लगाई है।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी मुताबिक एफसीआई की जरूरतों के मद्देनजर यह प्रस्ताव वित्त मंत्रालय को भेज दिया गया है। अगले सप्ताह होने वाली केंद्रीय मंत्रिमंडल की आर्थिक समिति में इस मुद्दे पर विचार किये जाने की संभावना है।
खाद्यान्न की कम निकासी और खरीद जारी रहने से एफसीआई के गोदामों में 6.5 करोड़ टन अनाज भर गया। अनाज की यह भारी मात्रा ही उसकी मुश्किलों का सबब बन चुकी है। वित्तीय हालत डांवाडोल है। चालू वित्त वर्ष के आम बजट में खाद्य सब्सिडी के मद में 60,084 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था। जिन राज्यों में एफसीआई के बजाय राज्य खुद अनाज की खरीद करते हैैं, उनके लिए 12,845 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था। लेकिन खर्च इससे कहीं अधिक हो गया है।
विकेंद्रीकृत खरीद करने वाले राज्यों (डीसीपी) ने रबी सीजन में गेहूं की जो खरीद की है, उसमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों का एफसीआई पर 11 हजार करोड़ रुपये से अधिक का बकाया हो गया है। इस वित्तीय संकट से उबरने के लिए उसने वित्त मंत्रालय से 35 हजार करोड़ रुपये की अतिरिक्त मांग की है। इसमें डीसीपी राज्यों के बकाया चुकाने और आगामी खरीफ सीजन में धान की खरीद का खर्च भी शामिल है। ऐसे राज्यों को अनाज की सरकारी खरीद के लिए एफसीआई धन मुहैया कराता है।
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भूमि अधिग्रहण विधेयक
बहुफसली जमीन के अधिग्रहण में सशर्त छूट देने की संभावना
भूमि अधिग्रहण विधेयक का संशोधित मसौदा जारी
पुराने अधिग्रहण वाली जमीनों को भी मिलेगा नये कानून का लाभ
जनहित की परिभाषित कर एक नया वर्ग जोड़ा गया
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सिंचित और बहुफसली भूमि के अधिग्र्रहण के मुद्दे पर प्रस्तावित विधेयक में सख्त रुख दिखा चुकी सरकार कुछ राज्यों के दबाव में नरम पड़ सकती है। इस बात के स्पष्ट संकेत हैं कि सरकार ऐसी जमीनों के अधिग्र्रहण के लिए सशर्त छूट दे सकती है। विधेयक का संशोधित मसौदा जारी करते हुए केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने जनहित को पुन: परिभाषित कर इसमें एक नया वर्ग जोड़ दिया गया।
विधेयक का मसौदा सितंबर के पहले सप्ताह में केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष पेश किये जाने की संभावना है। ग्र्रामीण विकास मंत्री ने कहा कि उनकी पूरी कोशिश होगी कि प्रस्तावित विधेयक चालू सत्र में ही पेश कर दिया जाए। विधेयक का मसौदा 29 जुलाई को आम लोगों की राय जानने के लिए सार्वजनिक कर दिया गया था। संशोधित मसौदे के अनुसार विधेयक के कानून बन जाने के बाद यह कानून उन विवादित जमीनों पर भी लागू होगा, जिनका अधिग्र्रहण 1894 के कानून के अनुच्छेद 11 के आधार पर हो चुका है। लेकिन भूस्वामियों ने उसका मुआवजा नहीं लिया है। अधिग्रहीत जमीन पर संबंधित पक्ष का कब्जा न होने की दशा में भी नया कानून लागू होगा। किसान संगठनों और राजनीतिक दलों की यही सबसे प्रमुख मांग थी।
बहुफसली जमीन का अधिग्र्रहण किसी हाल में न होने के प्रावधान को लेकर सरकार पशोपेश में है। पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसमें संशोधन करने की अपील की है। हालांकि आज के संशोधित मसौदे में इसे जगह नहीं दी गई है। इस पर ग्र्रामीण विकास मंत्री रमेश ने कहा कि इसमें सशर्त छूट दी जा सकती है। सरकार इन राज्यों की मांग पर विचार कर रही है।
पुनर्वास व पुनसर््थापन पैकेज को संशोधित करते हुए ग्र्रामीण क्षेत्रों के लिए इसकी सीमा जहां 100 एकड़ रहेगी, वहीं शहरी क्षेत्रों के लिए इसकी सीमा घटाकर 50 एकड़ कर दी गई है। अधिग्रहीत जमीन के बदले जमीन देने का प्रावधान जहां लागू होगा, वहां प्रभावित अनुसूचित जन जाति के भूस्वामी को एक एकड़ के मुकाबले पांच एकड़ देने का प्रावधान होगा। यही लाभ अनुसूचित जाति के भूस्वामी को भी मिलेगा।
मुआवजे के साथ प्रभावित जमीन के मालिक को नौकरी देने की अनिवार्यता पूरी न करने पर जहां दो लाख रुपये का मुआवजा देने का प्रावधान था, उसे बढ़ाकर अब पांच लाख रुपये कर दिया गया है। जनहित की परिभाषित करते हुए इसके दायरे को सीमित कर दिया गया है। लेकिन इसमें एक नया वर्ग भी जोड़ दिया गया, जिसमें विद्युत संयंत्र, रेलवे, बंदरगाह और सिंचाई परियोजनाएं प्रमुख हैं। इसे जनहित में शामिल कर लिया गया है। लेकिन ऐसी परियोजनाएं शत प्रतिशत सरकारी होनी चाहिए। निजी भागीदारी वाली परियोजनाएं जनहित के दायरे में नहीं आएंगी।
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भूमि अधिग्रहण विधेयक का संशोधित मसौदा जारी
पुराने अधिग्रहण वाली जमीनों को भी मिलेगा नये कानून का लाभ
जनहित की परिभाषित कर एक नया वर्ग जोड़ा गया
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सिंचित और बहुफसली भूमि के अधिग्र्रहण के मुद्दे पर प्रस्तावित विधेयक में सख्त रुख दिखा चुकी सरकार कुछ राज्यों के दबाव में नरम पड़ सकती है। इस बात के स्पष्ट संकेत हैं कि सरकार ऐसी जमीनों के अधिग्र्रहण के लिए सशर्त छूट दे सकती है। विधेयक का संशोधित मसौदा जारी करते हुए केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने जनहित को पुन: परिभाषित कर इसमें एक नया वर्ग जोड़ दिया गया।
विधेयक का मसौदा सितंबर के पहले सप्ताह में केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष पेश किये जाने की संभावना है। ग्र्रामीण विकास मंत्री ने कहा कि उनकी पूरी कोशिश होगी कि प्रस्तावित विधेयक चालू सत्र में ही पेश कर दिया जाए। विधेयक का मसौदा 29 जुलाई को आम लोगों की राय जानने के लिए सार्वजनिक कर दिया गया था। संशोधित मसौदे के अनुसार विधेयक के कानून बन जाने के बाद यह कानून उन विवादित जमीनों पर भी लागू होगा, जिनका अधिग्र्रहण 1894 के कानून के अनुच्छेद 11 के आधार पर हो चुका है। लेकिन भूस्वामियों ने उसका मुआवजा नहीं लिया है। अधिग्रहीत जमीन पर संबंधित पक्ष का कब्जा न होने की दशा में भी नया कानून लागू होगा। किसान संगठनों और राजनीतिक दलों की यही सबसे प्रमुख मांग थी।
बहुफसली जमीन का अधिग्र्रहण किसी हाल में न होने के प्रावधान को लेकर सरकार पशोपेश में है। पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसमें संशोधन करने की अपील की है। हालांकि आज के संशोधित मसौदे में इसे जगह नहीं दी गई है। इस पर ग्र्रामीण विकास मंत्री रमेश ने कहा कि इसमें सशर्त छूट दी जा सकती है। सरकार इन राज्यों की मांग पर विचार कर रही है।
पुनर्वास व पुनसर््थापन पैकेज को संशोधित करते हुए ग्र्रामीण क्षेत्रों के लिए इसकी सीमा जहां 100 एकड़ रहेगी, वहीं शहरी क्षेत्रों के लिए इसकी सीमा घटाकर 50 एकड़ कर दी गई है। अधिग्रहीत जमीन के बदले जमीन देने का प्रावधान जहां लागू होगा, वहां प्रभावित अनुसूचित जन जाति के भूस्वामी को एक एकड़ के मुकाबले पांच एकड़ देने का प्रावधान होगा। यही लाभ अनुसूचित जाति के भूस्वामी को भी मिलेगा।
मुआवजे के साथ प्रभावित जमीन के मालिक को नौकरी देने की अनिवार्यता पूरी न करने पर जहां दो लाख रुपये का मुआवजा देने का प्रावधान था, उसे बढ़ाकर अब पांच लाख रुपये कर दिया गया है। जनहित की परिभाषित करते हुए इसके दायरे को सीमित कर दिया गया है। लेकिन इसमें एक नया वर्ग भी जोड़ दिया गया, जिसमें विद्युत संयंत्र, रेलवे, बंदरगाह और सिंचाई परियोजनाएं प्रमुख हैं। इसे जनहित में शामिल कर लिया गया है। लेकिन ऐसी परियोजनाएं शत प्रतिशत सरकारी होनी चाहिए। निजी भागीदारी वाली परियोजनाएं जनहित के दायरे में नहीं आएंगी।
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Friday, April 22, 2011
बात पते की.....
कांच की बरनी और दो कप
जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी-जल्दी करने की इच्छा होती है। सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं। उस समय ये प्यारी-सी कथा हमें याद आती है।
दर्शन-शास्त्र के एक प्रोफ़ेसर क्लास में आए और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं। उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी (जार) टेबल पर रखी और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची …
उन्होंने छात्रों से पूछा – क्या बरनी पूरी भर गई ?
हाँ … आवाज आई …
फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे-छोटे कंकड़ उसमें भरने शुरू किए। धीरे-धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकड़ उसमें जहां जगह खाली थी, समा गये। फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा – क्या अब बरनी भर गई है। छात्रों ने एक बार फ़िर कहा – हाँ…
अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरू किया। वह रेत भी उस जार में जहां संभव था बैठ गई। अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे …
फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा – क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना?
हाँ, अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा।
प्रोफेसर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें भरी चाय जार में उड़ेल दी। चाय भी बरनी में गई रेत के बीच थोडी़-सी जगह में सोख ली गई।
प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरू किया।
इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो … टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान, परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य और शौक हैं। छोटे कंकड़ मतलब तुम्हारी नौकरी, कार, बडा़ मकान आदि हैं। और रेत का मतलब और भी छोटी-छोटी बेकार सी बातें, मनमुटाव, झगडे़ हैं। अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकड़ो के लिए जगह ही नहीं बचती। या, कंकड़ भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते, रेत जरूर आ सकती थी …
ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है। अगर तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिए अधिक समय नहीं रहेगा।
मन के सुख के लिए क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है। अपने बच्चों के साथ खेलो, बगीचे में पानी डालो, सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ। घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको। मेडिकल चेक-अप करवाओ…
टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो। वही महत्वपूर्ण है। पहले तय करो कि क्या जरूरी है … बाकी सब तो रेत है ..
छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे। अचानक एक ने पूछा – सर, लेकिन आपने यह नहीं बताया कि चाय के दो कप क्या हैं?
प्रोफ़ेसर मुस्कराए। बोले – मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया। इसका उत्तर यह है कि जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे। लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिए।
जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी-जल्दी करने की इच्छा होती है। सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं। उस समय ये प्यारी-सी कथा हमें याद आती है।
दर्शन-शास्त्र के एक प्रोफ़ेसर क्लास में आए और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं। उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी (जार) टेबल पर रखी और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची …
उन्होंने छात्रों से पूछा – क्या बरनी पूरी भर गई ?
हाँ … आवाज आई …
फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे-छोटे कंकड़ उसमें भरने शुरू किए। धीरे-धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकड़ उसमें जहां जगह खाली थी, समा गये। फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा – क्या अब बरनी भर गई है। छात्रों ने एक बार फ़िर कहा – हाँ…
अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरू किया। वह रेत भी उस जार में जहां संभव था बैठ गई। अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे …
फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा – क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना?
हाँ, अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा।
प्रोफेसर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें भरी चाय जार में उड़ेल दी। चाय भी बरनी में गई रेत के बीच थोडी़-सी जगह में सोख ली गई।
प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरू किया।
इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो … टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान, परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य और शौक हैं। छोटे कंकड़ मतलब तुम्हारी नौकरी, कार, बडा़ मकान आदि हैं। और रेत का मतलब और भी छोटी-छोटी बेकार सी बातें, मनमुटाव, झगडे़ हैं। अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकड़ो के लिए जगह ही नहीं बचती। या, कंकड़ भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते, रेत जरूर आ सकती थी …
ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है। अगर तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिए अधिक समय नहीं रहेगा।
मन के सुख के लिए क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है। अपने बच्चों के साथ खेलो, बगीचे में पानी डालो, सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ। घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको। मेडिकल चेक-अप करवाओ…
टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो। वही महत्वपूर्ण है। पहले तय करो कि क्या जरूरी है … बाकी सब तो रेत है ..
छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे। अचानक एक ने पूछा – सर, लेकिन आपने यह नहीं बताया कि चाय के दो कप क्या हैं?
प्रोफ़ेसर मुस्कराए। बोले – मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया। इसका उत्तर यह है कि जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे। लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिए।
Thursday, April 14, 2011
खाद्यान्न की बर्बादी पर विस्तृत रिपोर्ट
अप्रैल के पहले सप्ताह से गेहूं की सरकारी खरीद चालू हो गई है। लेकिन गोदामों के अभाव के चलते भंडारण का संकट गहरा गया है। खुले में रखे अनाज सड़ने का मुद्दा पिछले सालों में गंभीर विवादों में रहा है। सरकार गंभीर फजीहत झेल चुकी है। सरकार की खाद्यान्न प्रबंधन नीति को खंगालती एक विस्तृत रिपोर्ट समाचार अभियान के रूप मे तीन किश्तों पेश है। (एसपी सिंह)
निजी व्यापारियों के पौ बारह
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एफसीआई उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड व मध्य प्रदेश में गेहूं खरीद से रहेगी दूर
बेबस किसानों का लाभ उठायेंगी निजी कंपनियां
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दिखाने के लिए भले ही सरकारी खरीद के लंबे चौड़े लक्ष्य तय किये गये हों, लेकिन सरकार इस दिशा में कुछ खास करने नहीं जा रही है। गेहूं की सरकारी खरीद में एफसीआई समेत अन्य सरकारी एजेंसियां ढीला रवैया अपनाएंगी। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड समेत लगभग एक दर्जन राज्यों में एफसीआई गेहूं खरीद से दूर ही रहने वाली है। ये राज्य केंद्रीय पूल वाली खरीद में नहीं आते हैं। गेहूं खरीद में इन राज्यों में निजी व्यापारियों का दबदबा होगा, जिसके आगे किसान बेबस नजर आएंगे।
गेहूं की सरकारी खरीद शुरु होने से पहले ही एफसीआई ने पंजाब और हरियाणा के गोदामों को खाली करने के लिहाज से दूसरे राज्यों में गेहूं व चावल का स्टॉक शिफ्ट करना शुरु कर दिया था। इसे लेकर उन राज्यों ने तीखा विरोध जताना शुरु कर दिया जहां बिना जरूरत के अनाज की आपूर्ति शुरु कर दी गई थी। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारों ने इस बारे में खाद्य मंत्रालय और एफसीआई को पत्र लिखकर ऐसा करने से मना किया है।
भंडारण की समस्या से जूझ रही एफसीआई ने कारण बताए बगैर डिसेंट्रलाइज प्रोक्योरमेंट (डीसीपी) वाले राज्यों में चावल की खरीफ पर रोक लगा दी है। यही वजह है कि चावल की खरीद का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया है। डीसीपी राज्यों में एफसीआई अनाज की सीधी खरीद नहीं करती है। राज्यों की खरीद एजेंसियां एफसीआई के लिए अनाज खरीदती हैं। इस अनाज का उपयोग वहां की सार्वजनिक राशन प्रणाली में किया जाता है, जिससे लागत कम हो जाती है।
निजी व्यापारी व कंपनियों ने इस अहम समस्या को भांप लिया है। इसीलिए उन्होंने खरीद शुरु होने के साथ ही इन 11 राज्यों में अपना तंत्र फैला लिया है। गेहूं का सर्वाधिक उत्पादन करने वाले राज्य उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में कारगिल और आईटीसी जैसी बड़ी कंपनियों ने अपना खरीद केंद्र खोलना शुरु कर दिया है। मंडियों के आढ़तियों को इन कंपनियों ने अपना खरीद एजेंट बना दिया है, जिसके मार्फत ये खरीद करेंगे।
पुराने अनाज के भारी स्टॉक की वजह से गोदामों की कमी है। इसके मद्देनजर खरीद एजेंसियां गेहूं खरीद की गति धीमी ही रखेंगी। ताकि किसानों की ओर से विरोध के स्वर न उठें। इस बार निजी कंपनियों पर गेहूं खरीद के लिए कोई रोक नहीं है।
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एफसीआई उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड व मध्य प्रदेश में गेहूं खरीद से रहेगी दूर
बेबस किसानों का लाभ उठायेंगी निजी कंपनियां
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दिखाने के लिए भले ही सरकारी खरीद के लंबे चौड़े लक्ष्य तय किये गये हों, लेकिन सरकार इस दिशा में कुछ खास करने नहीं जा रही है। गेहूं की सरकारी खरीद में एफसीआई समेत अन्य सरकारी एजेंसियां ढीला रवैया अपनाएंगी। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड समेत लगभग एक दर्जन राज्यों में एफसीआई गेहूं खरीद से दूर ही रहने वाली है। ये राज्य केंद्रीय पूल वाली खरीद में नहीं आते हैं। गेहूं खरीद में इन राज्यों में निजी व्यापारियों का दबदबा होगा, जिसके आगे किसान बेबस नजर आएंगे।
गेहूं की सरकारी खरीद शुरु होने से पहले ही एफसीआई ने पंजाब और हरियाणा के गोदामों को खाली करने के लिहाज से दूसरे राज्यों में गेहूं व चावल का स्टॉक शिफ्ट करना शुरु कर दिया था। इसे लेकर उन राज्यों ने तीखा विरोध जताना शुरु कर दिया जहां बिना जरूरत के अनाज की आपूर्ति शुरु कर दी गई थी। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारों ने इस बारे में खाद्य मंत्रालय और एफसीआई को पत्र लिखकर ऐसा करने से मना किया है।
भंडारण की समस्या से जूझ रही एफसीआई ने कारण बताए बगैर डिसेंट्रलाइज प्रोक्योरमेंट (डीसीपी) वाले राज्यों में चावल की खरीफ पर रोक लगा दी है। यही वजह है कि चावल की खरीद का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया है। डीसीपी राज्यों में एफसीआई अनाज की सीधी खरीद नहीं करती है। राज्यों की खरीद एजेंसियां एफसीआई के लिए अनाज खरीदती हैं। इस अनाज का उपयोग वहां की सार्वजनिक राशन प्रणाली में किया जाता है, जिससे लागत कम हो जाती है।
निजी व्यापारी व कंपनियों ने इस अहम समस्या को भांप लिया है। इसीलिए उन्होंने खरीद शुरु होने के साथ ही इन 11 राज्यों में अपना तंत्र फैला लिया है। गेहूं का सर्वाधिक उत्पादन करने वाले राज्य उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में कारगिल और आईटीसी जैसी बड़ी कंपनियों ने अपना खरीद केंद्र खोलना शुरु कर दिया है। मंडियों के आढ़तियों को इन कंपनियों ने अपना खरीद एजेंट बना दिया है, जिसके मार्फत ये खरीद करेंगे।
पुराने अनाज के भारी स्टॉक की वजह से गोदामों की कमी है। इसके मद्देनजर खरीद एजेंसियां गेहूं खरीद की गति धीमी ही रखेंगी। ताकि किसानों की ओर से विरोध के स्वर न उठें। इस बार निजी कंपनियों पर गेहूं खरीद के लिए कोई रोक नहीं है।
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गोदाम नहीं बनवा पाई सरकार
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गोदामों की भारी किल्लत से आखिर गेहूं का भंडारण होगा कहां?
केंद्र ने फिर अलापा 1.50 करोड़ टन अतिरिक्त क्षमता बढ़ाने का राग
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देश की खाद्यान्न सुरक्षा के लिए सरकार के पास न गोदाम हैं और न ही भंडारण क्षमता बढ़ाने की कोई पुख्ता योजना है। भंडारण की किल्लत से एफसीआई मुश्किलों का सामना कर रही है। हर साल खुले में रखा करोड़ों का अनाज सड़ रहा है। इसके लिए सरकार अदालत की फटकार से लेकर संसद में फजीहत झेल चुकी है। लेकिन पिछले दो सालों से सरकार भंडारण क्षमता में 1.50 करोड़ टन की वृद्धि का राग अलाप रही है। कई दौर के टेंडर के बावजूद अभी तक किसी प्रस्ताव को मंजूरी नहीं मिल पाई है।
प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक के अमल के साथ खाद्यान्न की जितनी जरूरत होगी, देश में उतना अनाज रखने का बंदोबस्त नहीं है। भंडारण क्षमता के इस अंतर को पाटने के लिए सरकार की ओर से कोशिशें जरूर हुईं, लेकिन आधे अधूरे मन से। निजी क्षेत्रों के प्रस्ताव नियम-कानून के मकडज़ाल के चलते सरकारी दफ्तरों में धूल फांक रहे हैं। खाद्य मंत्रालय की तरफ से दो चरणों में टेंडर मांगा गया, जिसमें एक सौ से अधिक निवेशकों ने हिस्सा लिया। लेकिन किसी परियोजना प्रस्ताव को हरी झंडी नहीं मिल पाई है।
एफसीआई पंजाब और हरियाणा में ही सबसे अधिक अनाज की खरीद करती है। उसके 80 फीसदी गोदाम भी इन्हीं राज्यों में हैं। यहीं से पूरे देश के लिए अनाज भेजा जाता है। लेकिन नई व्यवस्था में सरकार ने गोदाम बनाने के लिए उन राज्यों को भी प्राथमिकता दी है, जहां अनाज की ज्यादा जरुरत है। ग्र्रामीण गोदामों का विचार भी आया है। लेकिन इन्हें अमली जामा अभी तक नहीं पहनाया जा सका है। इन्हीं मुश्किलों से गुजर रही सरकार की चिंताएं कम होने का नाम नहीं ले रही है।
भंडारण क्षमता बढ़ाने की दिशा में आ रही मुश्किलों के समाधान के लिए अधिकार प्राप्त मंत्री समूह का गठन भी किया गया है। केंद्रीय मंत्री शरद पवार ने भंडारण क्षेत्र के निवेशकों के साथ बैठक कर समस्या समाधान की कोशिश शुरु की। इसके तहत नियमों को सरल बनाते हुए गोदाम बनाने वाली निजी निवेशकों को पहले सात सालों की निश्चित अवधि तक भंडारण की गारंटी का प्रस्ताव दिया गया। लेकिन अब इसे बढ़ाकर 10 साल कर दिया गया है।
नियमों को सरल बनाने का नतीजा यह हुआ कि गोदाम निर्माण के प्रस्तावों की ढेर लग गई। एफसीआई के उतावले प्रबंधन ने इन प्रस्तावों पर विचार करने का जिम्मा राज्य एजेंसियों और सेंट्रल वेयर हाऊसिंग कॉरपोरेशन (सीडब्लूसी) को सौंप दिया है। इन्हें स्थानीय स्तर पर नोडल एजेंसी नियुक्त कर दिया गया। लेकिन संतोषजनक प्रगति नहीं हो सकी है। सीडब्लूसी ने तो पिछले सालों में खुद की भंडारण की क्षमता में वृद्धि कर ली है। इसी तरह रेलवे के साथ मिलकर उसने सेंट्रल रेलवे साइड वेयर हाऊसिंग कंपनी स्थापित की है। लेकिन निजी निवेशकों के लिए चलाई गई योजना सिरे नहीं चढ़ पा रही है। जबकि संसद में सरकार ने फिर दो सालों में डेढ़ सौ लाख टन भंडारण क्षमता बना लेने का भरोसा दिया है।
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गोदामों की भारी किल्लत से आखिर गेहूं का भंडारण होगा कहां?
केंद्र ने फिर अलापा 1.50 करोड़ टन अतिरिक्त क्षमता बढ़ाने का राग
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देश की खाद्यान्न सुरक्षा के लिए सरकार के पास न गोदाम हैं और न ही भंडारण क्षमता बढ़ाने की कोई पुख्ता योजना है। भंडारण की किल्लत से एफसीआई मुश्किलों का सामना कर रही है। हर साल खुले में रखा करोड़ों का अनाज सड़ रहा है। इसके लिए सरकार अदालत की फटकार से लेकर संसद में फजीहत झेल चुकी है। लेकिन पिछले दो सालों से सरकार भंडारण क्षमता में 1.50 करोड़ टन की वृद्धि का राग अलाप रही है। कई दौर के टेंडर के बावजूद अभी तक किसी प्रस्ताव को मंजूरी नहीं मिल पाई है।
प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक के अमल के साथ खाद्यान्न की जितनी जरूरत होगी, देश में उतना अनाज रखने का बंदोबस्त नहीं है। भंडारण क्षमता के इस अंतर को पाटने के लिए सरकार की ओर से कोशिशें जरूर हुईं, लेकिन आधे अधूरे मन से। निजी क्षेत्रों के प्रस्ताव नियम-कानून के मकडज़ाल के चलते सरकारी दफ्तरों में धूल फांक रहे हैं। खाद्य मंत्रालय की तरफ से दो चरणों में टेंडर मांगा गया, जिसमें एक सौ से अधिक निवेशकों ने हिस्सा लिया। लेकिन किसी परियोजना प्रस्ताव को हरी झंडी नहीं मिल पाई है।
एफसीआई पंजाब और हरियाणा में ही सबसे अधिक अनाज की खरीद करती है। उसके 80 फीसदी गोदाम भी इन्हीं राज्यों में हैं। यहीं से पूरे देश के लिए अनाज भेजा जाता है। लेकिन नई व्यवस्था में सरकार ने गोदाम बनाने के लिए उन राज्यों को भी प्राथमिकता दी है, जहां अनाज की ज्यादा जरुरत है। ग्र्रामीण गोदामों का विचार भी आया है। लेकिन इन्हें अमली जामा अभी तक नहीं पहनाया जा सका है। इन्हीं मुश्किलों से गुजर रही सरकार की चिंताएं कम होने का नाम नहीं ले रही है।
भंडारण क्षमता बढ़ाने की दिशा में आ रही मुश्किलों के समाधान के लिए अधिकार प्राप्त मंत्री समूह का गठन भी किया गया है। केंद्रीय मंत्री शरद पवार ने भंडारण क्षेत्र के निवेशकों के साथ बैठक कर समस्या समाधान की कोशिश शुरु की। इसके तहत नियमों को सरल बनाते हुए गोदाम बनाने वाली निजी निवेशकों को पहले सात सालों की निश्चित अवधि तक भंडारण की गारंटी का प्रस्ताव दिया गया। लेकिन अब इसे बढ़ाकर 10 साल कर दिया गया है।
नियमों को सरल बनाने का नतीजा यह हुआ कि गोदाम निर्माण के प्रस्तावों की ढेर लग गई। एफसीआई के उतावले प्रबंधन ने इन प्रस्तावों पर विचार करने का जिम्मा राज्य एजेंसियों और सेंट्रल वेयर हाऊसिंग कॉरपोरेशन (सीडब्लूसी) को सौंप दिया है। इन्हें स्थानीय स्तर पर नोडल एजेंसी नियुक्त कर दिया गया। लेकिन संतोषजनक प्रगति नहीं हो सकी है। सीडब्लूसी ने तो पिछले सालों में खुद की भंडारण की क्षमता में वृद्धि कर ली है। इसी तरह रेलवे के साथ मिलकर उसने सेंट्रल रेलवे साइड वेयर हाऊसिंग कंपनी स्थापित की है। लेकिन निजी निवेशकों के लिए चलाई गई योजना सिरे नहीं चढ़ पा रही है। जबकि संसद में सरकार ने फिर दो सालों में डेढ़ सौ लाख टन भंडारण क्षमता बना लेने का भरोसा दिया है।
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बर्बादी खरीदने की तैयारी
गेहूं की सरकारी खरीद और इसकी बर्बादी की तैयारी कर ली गई है। पहले से ही इफरात पुराने अनाज से भरे गोदाम एफसीआई की सांसत बढ़ाने वाले हैं। गेहूं की नई फसल के भंडारण के लिए गोदामों की भारी कमी है। रबी फसलों की बंपर पैदावार को देखकर खुश होने की जगह सरकारी एजेंसी एफसीआई के होश उड़ गये हैं। सुप्रीम कोर्ट से फजीहत झेलने के बावजूद खाद्य मंत्रालय ने पिछले दो सालों में मुट्ठीभर अनाज भंडारण की क्षमता नहीं विकसित की है। गेहूं की खरीद और भंडारण की बदइंतजामी इस बार सरकार पर भारी पडऩे वाली है।
पिछले दो सालों से खुले आसमान के नीचे रखे लाखों टन अनाज के सडऩे पर भी सरकार की सेहत पर कोई खास असर नहीं पड़ा है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर सरकार को आड़े हाथों लिया है। उसने यहां तक कह दिया कि अगर अनाज रखने की जगह नहीं है तो गरीबों में मुफ्त बांट दिया जाए। भंडारण की कमी के चलते इस बार भी अनाज सड़ेगा।
एफसीआई की खुद की कुल भंडारण क्षमता 1.54 करोड़ टन है। जबकि दूसरी एजेंसियों से वह सालाना आधार पर 1.33 करोड़ टन भंडारण क्षमता किराये पर है। इस तरह उसकी कुल भंडारण क्षमता 2.88 करोड़ टन ही है। इसमें केंद्रीय वेयर हाउसिंग निगम के अलावा राज्य एजेंसियों के गोदाम भी शामिल हैं। बाकी अनाज खुले में अस्थाई गोदामों (कैप) में रखा हुआ है।
वास्तविक तथ्य यह है कि चालू रबी सीजन में खाद्यान्न पैदावार 23.5 करोड़ टन से अधिक होने वाली है। जिसमें अकेले गेहूं की हिस्सेदारी 8.42 करोड़ टन है, जो अब तक की सर्वाधिक है। इसके मद्देनजर केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने चालू खरीद सीजन में 2.62 करोड़ टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य निर्धारित किया है। केंद्रीय एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को गेहूं खरीद और भंडारण के लिए पुख्ता इंतजाम करने को कहा गया है। लेकिन वास्तविक धरातल पर
एफसीआई के पास भंडारण के लिए जितने गोदाम हैं, वे पिछले सालों के गेहंू व चावल से भरे पड़े हैं। लगभग डेढ़ करोड़ टन अनाज अभी भी खुले में बने अस्थाई गोदामों में रखा पड़ा है। सरकारी स्टॉक में कुल 4.58 करोड़ टन पुराना गेहूं और चावल है। इसके खराब होने की आशंका लगातार बढ़ रही है। दरअसल तिरपाल से ढके अस्थाई गोदामों का रखा अनाज हर हाल में सालभर के भीतर खाली करा लिया जाना चाहिए। लेकिन महंगाई से भयाक्रांत खाद्य मंत्रालय अस्थाई गोदामों को खाली कराने से पीछे हट गई। ऐसी दशा में अनाज का फिर सडऩा लगभग तय है।
पिछले दो सालों से खुले आसमान के नीचे रखे लाखों टन अनाज के सडऩे पर भी सरकार की सेहत पर कोई खास असर नहीं पड़ा है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर सरकार को आड़े हाथों लिया है। उसने यहां तक कह दिया कि अगर अनाज रखने की जगह नहीं है तो गरीबों में मुफ्त बांट दिया जाए। भंडारण की कमी के चलते इस बार भी अनाज सड़ेगा।
एफसीआई की खुद की कुल भंडारण क्षमता 1.54 करोड़ टन है। जबकि दूसरी एजेंसियों से वह सालाना आधार पर 1.33 करोड़ टन भंडारण क्षमता किराये पर है। इस तरह उसकी कुल भंडारण क्षमता 2.88 करोड़ टन ही है। इसमें केंद्रीय वेयर हाउसिंग निगम के अलावा राज्य एजेंसियों के गोदाम भी शामिल हैं। बाकी अनाज खुले में अस्थाई गोदामों (कैप) में रखा हुआ है।
वास्तविक तथ्य यह है कि चालू रबी सीजन में खाद्यान्न पैदावार 23.5 करोड़ टन से अधिक होने वाली है। जिसमें अकेले गेहूं की हिस्सेदारी 8.42 करोड़ टन है, जो अब तक की सर्वाधिक है। इसके मद्देनजर केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने चालू खरीद सीजन में 2.62 करोड़ टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य निर्धारित किया है। केंद्रीय एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को गेहूं खरीद और भंडारण के लिए पुख्ता इंतजाम करने को कहा गया है। लेकिन वास्तविक धरातल पर
एफसीआई के पास भंडारण के लिए जितने गोदाम हैं, वे पिछले सालों के गेहंू व चावल से भरे पड़े हैं। लगभग डेढ़ करोड़ टन अनाज अभी भी खुले में बने अस्थाई गोदामों में रखा पड़ा है। सरकारी स्टॉक में कुल 4.58 करोड़ टन पुराना गेहूं और चावल है। इसके खराब होने की आशंका लगातार बढ़ रही है। दरअसल तिरपाल से ढके अस्थाई गोदामों का रखा अनाज हर हाल में सालभर के भीतर खाली करा लिया जाना चाहिए। लेकिन महंगाई से भयाक्रांत खाद्य मंत्रालय अस्थाई गोदामों को खाली कराने से पीछे हट गई। ऐसी दशा में अनाज का फिर सडऩा लगभग तय है।
Friday, January 7, 2011
ओबामा की उत्सुकता वाले फोटो
आप इसे देखकर हैरान न हो। आपने सही पहचाना है। दुनिया के सबसे ताकतवर देश संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ही हैं। मूंगफली छीलने की देसी मशीन देखकर सच में खुद हैरान हैं। उन्होंने इस मशीन बनाने वालों को सराहा और कहा कि असल प्रौद्योगिकी व तकनीक यही है, जो आम व गरीबों को मदद पहुंचा सकती है। उनकी इस टिप्पणी के बाद इस तरह की मूंगफली और मक्का छुड़ाने वाली मशीनों की मांग बढ़ी है। अमेरिकी अधिकारियों ने इसके आयात की संभावनाएं तलाशने में जुटे हैं। इन छोटे उपकरणों को अमेरिका अफ्रीकी गरीब देशों को भेजना चाहता है। है न कमाल की तरकीब। दूसरे फोटो में ओबामा खुद मक्के का दाना छुड़ा रहे हैं।
रबी पौध के खराब होने से प्याज खेती को झटका, प्याज निकालेगी और आंसू
प्याज की खरीफ फसल को नुकसान क्या हुआ चौतरफा हायतौबा मच गई। सरकार ने भी कहा ढाढ़स बंधाया कि घबराइये नहीं जल्दी ही रबी फसल वाली प्याज खेत से निकलने लगेगी और बात बन जाएगी। यानी प्याज की कीमतें सतह पर आ जाएंगी। लेकिन प्याज की खेती के सरकारी आंकड़े ने तो कान ही खड़े कर दिये। बताया गया है कि रबी फसल में रोपाई की जाने वाली प्याज की नर्सरी को २० फीसदी तक नुकसान हुआ है। अब इस जानकारी के बाद भी भला प्याज के मूल्य के नीचे आने की संभावना तो नहीं लगती। इसलिए सरकार हमे आपको भले ही झूठी दिलासा दिला रही हो, लेकिन माथे पर उसके भी बल पड़ने लगे हैं। उसी संबंधित कुछ जानकारी आपके लिए, ताकि आप किसी झांसे में न आयें।
प्याज के प्रमुख उत्पादक राज्यों में बेमौसम बारिश ने सिर्फ खरीफ सीजन की फसल को ही नुकसान नहीं पहुंचाया है, बल्कि रबी सीजन की पौध को भी चौपट किया है। सरकार ने माना है कि रबी सीजन की प्याज नर्सरी को 20 फीसदी तक का नुकसान हुआ है। पौध की कमी से प्याज की आगामी खेती का रकबा घटने का अंदेशा है, जिसे लेकर सरकार के माथे पर बल पडऩे हैं। उत्पादन घटने की आशंका से उपभोक्ताओं को प्याज आगे भी तंग करेगी।
प्याज को लेकर उपभोक्ताओं के साथ सरकार की मुश्किलें कम होती नहीं दिख रही हैं। खरीफ सीजन में प्याज के खेत से निकलने से पहले हुई बारिश ने फसल को भारी नुकसान पहुंचाया था, जिससे कीमतें सातवें आसमान पर पहुंच गईं। रबी फसल के लिए तैयार की जा रही नर्सरी पर भी बेमौसम बारिश का बुरा असर पड़ा है। रबी की पौध की तैयारी अक्टूबर के आखिरी सप्ताह में ही पूरी हो जाती है। सरकारी रिपोर्ट के अनुसार इन्हीं दिनों बेमौसम बारिश ने प्याज नर्सरी को 15 से 20 फीसदी तक नुकसान पहुंचाया है। इससे आगामी रबी फसल की प्याज की पैदावार के प्रभावित होने का पूरा खतरा है।
राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान व विकास फाउंडेशन के मुताबिक प्याज की कुल पैदावार में रबी सीजन की हिस्सेदारी लगभग 60 फीसदी होती है। नर्सरी के नुकसान का सीधा मतलब प्याज की खेती पर पडऩा तय है। रबी सीजन के लिए प्याज की रोपाई इस महीने से चालू हो गई है। प्याज की इस नई फसल की खुदाई मार्च से शुरू हो जाएगी।
खरीफ सीजन की प्याज की खेती को 40 फीसदी तक नुकसान होने का अनुमान है। यही वजह है कि प्याज के मूल्य पर काबू पाना मुश्किल होता जा रहा है। मांग व आपूर्ति के इस अंतर को कम करने के लिए सरकार ने आनन-फानन में पाकिस्तान समेत अन्य देशों से प्याज के आयात का फैसला ले लिया है। इसके चलते कीमतें थोड़े समय के लिए थमी जरुर, लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी प्याज के मूल्य बहुत बढ़ जाने से हालत में बहुत सुधार नहीं हुआ है।
प्याज के प्रमुख उत्पादक राज्यों में बेमौसम बारिश ने सिर्फ खरीफ सीजन की फसल को ही नुकसान नहीं पहुंचाया है, बल्कि रबी सीजन की पौध को भी चौपट किया है। सरकार ने माना है कि रबी सीजन की प्याज नर्सरी को 20 फीसदी तक का नुकसान हुआ है। पौध की कमी से प्याज की आगामी खेती का रकबा घटने का अंदेशा है, जिसे लेकर सरकार के माथे पर बल पडऩे हैं। उत्पादन घटने की आशंका से उपभोक्ताओं को प्याज आगे भी तंग करेगी।
प्याज को लेकर उपभोक्ताओं के साथ सरकार की मुश्किलें कम होती नहीं दिख रही हैं। खरीफ सीजन में प्याज के खेत से निकलने से पहले हुई बारिश ने फसल को भारी नुकसान पहुंचाया था, जिससे कीमतें सातवें आसमान पर पहुंच गईं। रबी फसल के लिए तैयार की जा रही नर्सरी पर भी बेमौसम बारिश का बुरा असर पड़ा है। रबी की पौध की तैयारी अक्टूबर के आखिरी सप्ताह में ही पूरी हो जाती है। सरकारी रिपोर्ट के अनुसार इन्हीं दिनों बेमौसम बारिश ने प्याज नर्सरी को 15 से 20 फीसदी तक नुकसान पहुंचाया है। इससे आगामी रबी फसल की प्याज की पैदावार के प्रभावित होने का पूरा खतरा है।
राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान व विकास फाउंडेशन के मुताबिक प्याज की कुल पैदावार में रबी सीजन की हिस्सेदारी लगभग 60 फीसदी होती है। नर्सरी के नुकसान का सीधा मतलब प्याज की खेती पर पडऩा तय है। रबी सीजन के लिए प्याज की रोपाई इस महीने से चालू हो गई है। प्याज की इस नई फसल की खुदाई मार्च से शुरू हो जाएगी।
खरीफ सीजन की प्याज की खेती को 40 फीसदी तक नुकसान होने का अनुमान है। यही वजह है कि प्याज के मूल्य पर काबू पाना मुश्किल होता जा रहा है। मांग व आपूर्ति के इस अंतर को कम करने के लिए सरकार ने आनन-फानन में पाकिस्तान समेत अन्य देशों से प्याज के आयात का फैसला ले लिया है। इसके चलते कीमतें थोड़े समय के लिए थमी जरुर, लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी प्याज के मूल्य बहुत बढ़ जाने से हालत में बहुत सुधार नहीं हुआ है।
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