Wednesday, April 11, 2012
केंद्र व सूबों की लड़ाई में फंसी गरीबों की गणना
गरीबी में आटा गीला
केंद्र व राज्यों के बीच की राजनीतिक कलह के चलते गरीबों की जनगणना भी अधर में लटक गई है। केंद्र और सूबों की इस राजनीतिक लड़ाई में गरीबों के पिसने की आशंका बढ़ गई है। गैर कांग्रेसी सरकार वाले ज्यादातर राज्यों में सामाजिक-आर्थिक जनगणना की सुगबुगाहट भी नहीं शुरू हो पाई है। इसकी वजह से गरीबों की योजनाओं के अमल में समस्या आ सकती है।
ज्यादातर राज्यों में गरीबों की जनगणना के तरीके पर ही एतराज है। उनके हिसाब से इसमें तमाम तरह की खामियां है, जिन्हें लेकर उन्होंने अपनी आपत्तियां पहले ही दर्ज करा दी हैं। उत्तर प्रदेश में बसपा और कांग्र्रेस के बीच राजनीतिक तकरार बाधा बनी हुई है। राज्य सरकार ने इस दिशा में कोई पहल ही नहीं की है। बिहार सरकार ने गरीबों की संख्या और गणना की प्रक्रिया को दोषपूर्ण करार दिया है। इसमें सुधार करने के लिए अकेले बिहार ने केंद्र से अतिरिक्त 90 करोड़ रुपये की मदद मांगी है।
सामाजिक-आर्थिक जनगणना दिसंबर 2011 तक पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। लेकिन देश के किसी भी राज्य में जनगणना पूरी नहीं हो पाई है। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और गुजरात जैसे बड़े राज्यों में गरीबों की गणना चालू भी नहीं हो सकी है। यही नहीं, कांग्रेस शासित दिल्ली और केरल प्रदेश में भी जनगणना शुरू नहीं की जा सकी है। महाराष्ट्र में यह गणना पांच फीसदी क्षेत्रों में ही पूरी हो पाई है।
गरीबों की जनगणना में विलंब होने के बाबत ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, वहां देरी हो रही है। उनका कहना है कि महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय के चुनाव हैं। उड़ीसा में पंचायतों के चुनाव हो रहे हैं, जबकि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। लेकिन उनके इस दावे के विपरीत पंजाब में विधानसभा चुनाव होने हैं, पर वहां जनगणना अंतिम दौर में है। ग्रामीण विकास मंत्रालय को उम्मीद है कि जून 2012 तक सभी राज्यों में गरीबों की जनगणना का काम पूरा कर लिया जाएगा। सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से इस काम को प्राथमिकता के स्तर पर पूरा करने का आग्रह किया गया है।
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