Thursday, May 17, 2012
गरीबों की गिनती में उत्तर भारत के राज्य पिछड़े
यूपी, उत्तराखंड समेत छह राज्यों में बीपीएल गणना का काम बहुत पीछे
हमने तय कर रखा है कि हर जगह पीछ रहेंगे, चाहे कुछ बंट रहा हो तो भी। कुछ करना हो तो भी। ऐसे में भला उद्धार कैसे होगा? कोई सवाल भी तो नहीं करता। जाति, वर्ग और संप्रदाय में बंटे उत्तरी राज्यों की राजनीति भी इसी पर स्थापित है। लीजिए बानगी। जब सारा देश जातीय व आर्थिक जनगणना में आगे दर आगे की होड़ में है, तब भी हम पीछे रहने को आतुर हैं।
उत्तर प्रदेश समेत आधा दर्जन राज्यों में गरीबों की गणना के साथ ही जातीय जनगणना पिछड़ गई है। जहां देश के ज्यादातर राज्यों में काफी पहले पूरी हो चुकी है, वहीं उत्तर प्रदेश में अभी इसका आगाज तक नहीं हुआ है। उत्तराखंड, उड़ीसा, मणिपुर, महाराष्ट्र और गोवा में भी यह जनगणना देर से शुरू हुई है। देश के सभी राज्यों में दिसंबर 2011 तक इस जनगणना को समाप्त होना था। लेकिन कुछ राज्यों के पिछडऩे से केंद्र सरकार चिंतित हो गई है।
दरअसल प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक के अमल का दारोमदार इसी जनगणना पर टिका है। यही वजह है कि इस स्थिति से चिंतित खाद्य मंत्री केवी थामस ने ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश को पत्र लिखकर जातीय व सामाजिक-आर्थिक जनगणना के बारे में विस्तार से जानकारी मांगी थी। जिसके जवाब में जयराम ने सभी राज्यों में जुलाई तक कार्य समाप्त होने को कहा है। ग्र्रामीण विकास मंत्री ने पिछले दिनों अपने लखनऊ दौरे समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से इस बारे में पूछा था। राज्य सरकार की ओर से बताया गया कि सामाजिक-आर्थिक जनगणना हर हाल में जून 2012 में शुरू हो जाएगी। यहां जनगणना तीन चरणों में होगी।
खाद्य सुरक्षा कानून के तहत 74 फीसदी ग्र्रामीण और 46 फीसदी शहरी उपभोक्ताओं को कानूनी तौर पर रियायती दरों पर खाद्यान्न प्राप्त करने का हक मिल जाएगा। लेकिन इसका निर्धारण उक्त जनगणना पर निर्भर करेगा। इसमें भी लगभग 50 फीसदी ग्रामीण और 28 फीसदी शहरी उपभोक्ता वरीयता वर्ग के होंगे, जिन्हें अति सस्ता अनाज वितरित किया जाएगा।
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